2013 से ही ‘वीर’ थे अनुराग, कॉन्ग्रेसी राज में भी टैक्स चोरी पर पड़े थे छापे, लोग पूछ रहे – ‘कागज दिखाए थे क्या’

बिना कागज दिखाए इतने 'वीर' कैसे बने अनुराग?

तब कॉन्ग्रेस की सरकार थी। मतलब ‘लोकतंत्र’ था। फिर भी ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ और ‘फ्रीडम ऑफ टैक्स चोरी’ जैसे ‘मूलभूत अधिकारों’ को कुचला गया था। देश में अंधेरा था… क्योंकि अनुराग कश्यप को मनमोहन सरकार ने 2013 में घेर लिया था।

55 लाख रुपए की टैक्स चोरी या छुपाने (जो भी तकनीकी शब्द लिखिए) के मामले में अनुराग कश्यप को श्रीलंका से शूटिंग छोड़ भारत आने का आदेश दिया गया था। 2013 का वो दिन लोकतंत्र के इतिहास का काला दिन था… आपातकाल की रातों से भी ज्यादा काला!

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खैर! 8 साल बाद 2021 आ गया है। ‘फ्रीडम ऑफ टैक्स चोरी’ निरंतर जारी है। बस अब ‘चोर’ बड़े हो गए हैं। 55 लाख रुपए वाले ‘चोर’ अब करोड़ों में खेलने लगे हैं। अब लोकतंत्र भड़भड़ा कर आए दिन गिर जाता है।

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टैक्स ‘चोरों’ के समर्थन में नेता खुलेआम उनकी वीरता और उनके नायाब और दुर्लभ कैरेक्टर के बारे में कविता लिखते हैं। 2 लाइन की कविता से मन नहीं भरता है तो फिर 10 लाइन का महाकाव्य भी लिख डालते हैं। अपनी पार्टी का तो पता नहीं लेकिन देश भर लोकतंत्र के खंभों को इन्हीं नेताओं ने बचा रखा है – क्योंकि इनके अनुसार ‘किसानों’ ने आत्मरक्षा में दिल्ली पुलिस पर हमला किया था।

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लोकतंत्र में जनता सब देखती है, देख रही है। सोशल मीडिया पर जवाब भी देती है। जो टैक्स चोर होते हैं, वो जनता के ही पैसे को चुराते हैं। इसलिए जनता कविता लिखने वाले नेताओं और टैक्स चोरों के साथ मिल कर ‘मर गया लोकतंत्र’ के गीत गाने वालों को जवाब दे रही है। पढ़ा जाए 2-4 मस्त जवाब… अंग्रेजी में इसको “befitting reply” कहते हैं।

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नोट: जहाँ-जहाँ ‘चोर’ लिखा गया है, उसे कृपया ‘टैक्स चोरी के आरोपित’ पढ़ें। वाक्य को छोटा और सहज करने के लिए ऐसा लिखा गया। कृपया इसका कोई अन्य आशय न निकालें।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया