यहूदियों के नरसंहार वाली फिल्म प्रोपगेंडा नहीं, हिंदुओं के रक्तपात वाली The Kashmir Files ‘अश्लील’: डायरेक्टर ने मारी पलटी

नदाव लैपिड (फोटो साभार: हिंदुस्तान टाइम्स)

घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और पलायन पर बनी ‘द कश्मीर फाइल्स’ को ‘भद्दी और प्रोपेगेंडा’ बताने के बाद IFFI जूरी हेड और इजरायल के फिल्म निर्माता नादव लैपिड (Nadav Lapid) ने पलटी मार दी है। उनके बयान को लेकर उठे विवाद के बाद उन्होंने कहा कि द कश्मीर फाइल्स एक ब्रिलियंट फिल्म है।

फिल्म निर्माता नादव लैपिड ने कश्मीर फाइल्स को बहुत लोग पसंद करते हैं और ब्रिलियंट फइल्म मानते हैं। उन्होंने कहा कि कोई यह निर्धारित निर्धारित नहीं कर सकता कि प्रोपेगेंडा क्या है। उन्होंने कहा कि IFFI के समापन समारोह में उन्होंने फिल्म के बारे में जो कुछ कहा, उस पर वे अब भी कायम हैं।

इंडिया टुडे से बातचीत करते हुए उन्होंने प्रोपेगेंडा को लेकर कहा, “कोई भी यह निर्धारित नहीं कर सकता कि प्रोपेगेंडा क्या है। मैं इस तथ्य को स्वीकार करता हूँ। यह एक शानदार फिल्म है। मैंने जो कहा वह मेरा कर्तव्य था कि मैं जो देखूँ उसे कहूँ। यह एक बहुत ही व्यक्तिपरक तरीका है।”

उन्होंने कहा कि हंगामा ‘लोगों को भड़काने के लिए उनकी टिप्पणियों में सस्ता हेरफेर’ किया गया और हंगामा कराया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि अन्य जूरी सदस्यों ने भी वही महसूस किया, जो उन्होंने किया लेकिन वे खुलकर नहीं बोले।

उन्होंने कहा, “कश्मीर में जो हुआ, ऐसे ट्रैजिक इवेंट हमें सीरियस फिल्म बनाने को प्रेरित करते हैं। ये फिल्म मेरे लिए चीप सिनेमैटिक मैनिपुलेशन है। इस फिल्म के जरिए राजनीतिक फायदा पहुँचाने की कोशिश की गई थी। मेरे बयान से दूसरे जूरी मेंबर्स भी सहमत थे। हालाँकि, डर या दबाव से वे बाद में बदल सकते हैं।”

नादव लैपिड ने कहा, “मैंने कभी भी कश्मीर और वहाँ के लोगोें के बारे में नहीं बात की। मैंने जो कुछ भी कहा, सिर्फ फिल्म को लेकर कहा था। अगर मेरे बयान से किसी को ठेस पहुँची है तो मैं माफी माँगता हूँ।”

लैपिड ने कश्मीर फाइल्स को ‘प्रोपेगेंडा और अश्लील’ बताया था। इसके साथ ही वे बाद में दो कदम आगे बढ़ते हुए कश्मीर में भारतीय नीति को ही गलत ठहरा दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि इसमें फासीवादी विशेषताएँ हैं। दरअसल, कश्मीर फाइल्स फिल्म 90 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं के पलायन पर आधारित है। नादव ने कहा कि अगर इस तरह की फिल्म आने वाले वर्षों में इजरायल में भी बनती है तो उन्हें आश्चर्य होगा।

उन्होंने स्थानीय मीडिया Ynet से बात करते हुए कहा, “इस तरह से बोलना और राजनीतिक बयान देना आसान नहीं था। मुझे पता था कि यह एक ऐसी घटना है, जो देश से जुड़ी हुई है। हर कोई यहाँ सरकार की प्रशंसा करता है। यह कोई आसान स्थिति नहीं है, क्योंकि आप एक अतिथि के तौर पर यहाँ पर हैं।”

उन्होंने आगे कहा, आगे कहा, “मैं यहाँ हजारों लोगों के साथ एक हॉल में मौजूद था। हर कोई स्थानीय सितारों को देखने और सरकार की जय-जयकार करने के लिए उत्साहित था। उन देशों में जो तेजी से अपने मन की बात कहने या सच बोलने की क्षमता खो रहे हैं, किसी को बोलने की जरूरत है। जब मैंने यह फिल्म देखी, तो मैं इसके साथ इजरायली परिस्थिति की कल्पना किए बिना नहीं रह सका, जो यहाँ मौजूद नहीं थे। लेकिन, वे निश्चित रूप से मौजूद हो सकते थे। इसलिए मुझे ऐसा लगा कि मुझे यह करना ही पड़ेगा, क्योंकि मैं एक ऐसी जगह से आया हूँ, जहाँ खुद में सुधार नहीं हुआ है। वह खुद भी इसी रास्ते पर है।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया