जब चमकी मारवाड़ी तलवार तो सलावत खान के दिल के हो गई पार, दरबार छोड़ नंगे पाँव भागा शाहजहाँ

अमर सिंह राठौड़ और उनके भतीजे राम सिंह राठौड़ की वीरता को आज भी याद करते हैं लोग

इतिहास में कई योद्धाओं के नाम प्रचलित हैं। उनमें से कई ऐसे भी थे, जिन्हें मज़बूरी में इस्लामिक आक्रांताओं की तरफ से लड़ाइयाँ लड़नी पड़ी थी। कुछ मज़बूरी में गए थे तो कुछ अपनों से ही बदला लेने के लिए। कुछ गद्दार भी थे, जिन्होंने विदेशियों के साथ लड़ते हुए अपनों का ख़ून बहाया। मेवाड़ के शक्ति सिंह ने अकबर के दरबार में हाजिरी लगाई, लेकिन जब उनका जमीर जागा तो उन्होंने बड़े भाई प्रताप के प्राणों की रक्षा की। इसी तरह नागौर के अमर सिंह राठौड़ का नाम भी लोकप्रिय है, जिसे राजस्थान में आज भी याद किया जाता है।

अमर सिंह ने मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के भरे दरबार में ऐसा कारनामा किया था कि ये ख़बर पूरे देश में पहुँची और उनके सहस को देख कर इस्लामिक आक्रांता थर्रा उठे। इस घटना के बारे में विस्तार से बताने से पहले अमर सिंह के बारे में बताना ज़रूरी है। वो राठौड़ राजवंश के राजा गज सिंह प्रथम के पुत्र थे। गज सिंह को ‘दलथम्मन’ भी कहा जाता था। ये उपाधि उन्हें तत्कालीन मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने दी थी। हालाँकि, गज सिंह की मृत्यु के बाद अमर सिंह बड़ा पुत्र होने के बावजूद मारवाड़ के सिंहासन पर नहीं बैठ पाए। सत्ता उनके छोटे भाई जसवंत के साथ में गई। अमर सिंह उनलोगों की नज़र में काफ़ी उद्दंड थे।

उन्हें मारवाड़ से निकाल दिया गया और वो मुगलों के पास गए। शाहजहाँ ने उन्हें नागौर की जागीर दी। लेकिन, अमर सिंह स्वतंत्र विचारों वाले और स्वाभिमानी किस्म के व्यक्ति थे। मारवाड़ में भले ही वो राजा नहीं बन पाए लेकिन वो राजा से भी ज्यादा लोकप्रिय थे। दक्षिण में उनके पिता ने जितने भी युद्ध लड़े थे, उसमें अमर सिंह ने अदम्य सहस और पराक्रम दिखाया था। फिर भी बाहर निकाले जाने पर उन्होंने आगरा के मुग़ल दरबाद में शरण ली। उनके साथ राठौड़ राजवंश के कई अन्य लोग भी अगवा आए।

https://twitter.com/DiscoveryIN/status/936875086119948290?ref_src=twsrc%5Etfw

अमर सिंह की बहादुरी से प्रभावित होकर शाहजहाँ ने उन्हें 3000 घोड़ों वाली सेना का कमांडर बनाया। उन्हें ‘मंसब’ और ‘राव’ के टाइटल से नवाजा गया। नागौर एक स्वतंत्र जागीर था, जिसे शाहजहाँ की गद्दी से चलाया जाता था। अमर सिंह का बढ़ता क़द कई दरबारियों को रास नहीं आया और वो उनसे जलने लगे। शाहजहाँ के दरबार के अन्य दरबारी उन्हें ठिकाना लगाने का उपाय तलाशने लगे। एक बार वो शिकार पर गए और 2 सप्ताह तक नहीं लौटे। अमर सिंह इस दौरान शाहजहाँ के दरबार से भी ग़ैर-हाजिर रहे।

अब यहाँ एक दूसरे किरदार की एंट्री होती है, जिसका नाम था सलावत ख़ान। सलावत ख़ान शाहजहाँ का कोषाधिकारी था। एक तरह से पूरे खजाने का इंचार्ज वही था। जब अमर सिंह वापस आए तो सलावत ख़ान उन पर हुक्म चलाने लगा। उसने दादागिरी दिखाते हुए पूछा कि वो इतने दिनों तक कहाँ थे और दरबार से अनुपस्थित क्यों रहे। अमर सिंह को ये पसंद नहीं आया और उन्होंने कहा कि वो सीधे बादशाह को जवाब देंगे। लेकिन, सलावत ख़ान उनसे जुर्माना वसूलने की बात करने लगा। अमर सिंह ने अपनी तलवार और म्यान दिखाते हुए कहा कि उनके पास यही एक धन है और अगर चाहिए तो सलावत ख़ान आकर ले जाए।

जब यह सब हो रहा था, तब पूरा दरबार भरा हुआ था। शाहजहाँ ख़ुद गद्दी पर बैठा हुआ था। सलावत ख़ान ने अमर सिंह को गँवार बताया और पूछा कि वो बादशाह के सामने अपनी आवाज़ ऊँची कैसे कर सकता है? इसके बाद अमर सिंह ने जो किया, वो इतिहास में दर्ज हो गया। गालियाँ न सिर्फ़ उन्हें बल्कि हिंदुत्व को भी दी गई थी, उनके धर्म को लेकर ओछी बातें कही गई थीं। अमर सिंह ने तुरंत अपने म्यान में से तलवार निकाली और अगले ही क्षण उनकी तलवार सलावत ख़ान के दिल को छेद कर उस पार निकल गई।

पूरे दरबार में हाहाकार मच गया। कुछ लोग वहाँ से उठ कर भागने लगे तो कुछ लोग सन्न रह गए। ख़ुद शाहजहाँ गद्दी से उठ कर अपने कक्ष में भाग खड़ा हुआ। मुग़ल सिपाहियों ने इसके बाद अमर सिंह को बंदी बनाने के लिए उन्हें घेर लिया। उसे एक पल के लिए ऐसा लगा कि अमर सिंह उस पर ही झपट रहे हैं, इसलिए वो वहाँ से नंगे पाँव भाग खड़ा हुआ। अमर सिंह वहाँ से भाग निकले। आगरा किले के दरवाजों को बंद कर दिया गया। लेकिन, बहादुर अमर सिंह घोड़ा सहित दीवार फाँद कर वहाँ से निकल लिए।

https://twitter.com/mahan_saria/status/1198605262375927808?ref_src=twsrc%5Etfw

जब-जब भारतीय सूरमाओं ने अपनी बहादुरी से इस्लामिक आक्रांताओं को चित कर दिया, तब-तब भारत-विरोधी ताक़तों ने धोखे और छल का तरीका अपनाया। इसलिए, शाहजहाँ ने भी छल का रास्ता अपनाया। अमर सिंह को संधि के बहाने आगरा बुलाया गया और फिर पीछे से मार डाला गया। अमर सिंह के घोड़े की प्रतिमा भी किले के पश्चिमी दरवाजे पर लगवाई गई। अमर सिंह की याद में उनकी बहादुरी को सलाम करने के लिए अकबर दरवाजा का नाम बदल कर अमर सिंह दरवाजा कर दिया गया।

लेकिन, मुगलों ने अमर सिंह जैसे वीर योद्धा के मृत शरीर के साथ जो किया, उसके लिए इतिहास उन्हें शायद ही माफ़ कर पाए। अमर सिंह के मृत शरीर को नदी में फेंक दिया गया- उस जगह पर, जहाँ पर भिखारियों की लाशें पड़ी रहती थीं। अमर सिंह के शरीर को चील-कौवों के खाने के लिए छोड़ दिया गया। अमर सिंह की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी को सती होना पड़ा। अमर सिंह की पत्नी ने पहले ख़ुद तलवार निकाल कर पति का मृत शरीर लाने की ठानी थी, लेकिन भतीजे राम सिंह के आग्रह पर उन्होंने उसे वहाँ जाने दिया। उस वक़्त राम सिंह की उम्र मात्र 15 वर्ष थी।

राम सिंह ने भी अपने चाचा की तरह ही बहादुरी का परिचय दिया और अमर सिंह का मृत शरीर लेकर आए। रोका, लेकिन वो नहीं रुके। हजारों मुग़ल सिपाहियों के बीच से अपने चाचा के पार्थिव शरीर को वे अंतिम संस्कार के लिए वापस लेकर आए। इतिहास में ऐसे योद्धा शायद कहीं गुम हो गए हैं। रह गया है तो शाहजहाँ और उसका ताजमहल। वही ताजमहल, जिसे अपने अंतिम दिनों में वह एक किले में नज़रबंद होकर देखा करता था। वहीं, नागौर और मारवाड़ में आज भी अमर सिंह और राम सिंह के किस्से सुनाए जाते हैं। आज भी ‘अमर सिंह दरवाजा’ उस वीरता की गाथा कहता है।

इतिहास में गुम हैं मुगलों को 17 बार हराने वाले अहोम योद्धा: देश भूल गया ब्रह्मपुत्र के इन बेटों को

‘मुगलों ने हिंदुस्तान को लूटा ही नहीं, माल बाहर भी भेजा, ये रहा सबूत’

पुणे में बैठ कर दिल्ली चलाने वाला मराठा: 16 की उम्र में सँभाली कमान, निज़ाम और मैसूर को किया चित

अनुपम कुमार सिंह: भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।