‘बाबरी मस्जिद… भगवान का घर तोड़ना पाप’ – शब्दों से खेल रही स्वरा भास्कर की हिंदी कमजोर या है पाखंड?

बाबरी मस्जिद पर स्वरा भास्कर

6 दिसंबर का दिन हिंदुओं के लिए शौर्य दिवस और वामपंथियों के लिए ब्लैक डे होता है। हिंदुओं के लिए शौर्य दिवस इसलिए क्योंकि साल 1992 में 6 दिसंबर को ही कारसेवकों ने बिना किसी की परवाह किए राम मंदिर के लिए एक रास्ता प्रशस्त किया था और वामपंथियों के लिए ब्लैक डे इसलिए, क्योंकि वह चाह कर भी इन कारसेवकों को नहीं रोक पाए थे।

6 दिसंबर 1992 का ही परिणाम था कि 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर का भूमिपूजन संपन्न हो पाया। यह दिन स्मृतियों से भुला पाना असंभव है। न जाने कितने हिंदू हृदय सम्राट बलिदान हुए, तब जाकर एक सपने का असली नक्शा इस साल तैयार हुआ।

इस साल भूमिपूजन के बाद वामपंथी 6 दिसंबर पर पहले से ज्यादा शोक मनाते दिखे, लेकिन बॉलीवुड अभिनेत्री स्वरा भास्कर का विलाप एक अलग ही स्तर का था। उनकी जानकारी के मुताबिक बाबरी मस्जिद भगवान का घर होता है और कारसेवकों ने इसे तोड़ कर पाप किया।

स्वरा ने 6 दिसंबर के अवसर पर अपने ट्वीट में लिखा, “चाहे जितनी लीपा पोती कर लो, भगवान का घर… किसी के भी भगवान का घर तोड़ना पाप होता है।”

https://twitter.com/ReallySwara/status/1335523825883074563?ref_src=twsrc%5Etfw

स्वरा भास्कर का यह ट्वीट किसके लिए है? ये एक बड़ा सवाल होना चाहिए, क्योंकि सदियों पहले भगवान का घर तोड़ा गया, इस बात में कोई संदेह नहीं है। लेकिन, जब उनका ट्वीट भगवान राम के संदर्भ में नहीं है… तो वह किस भगवान की बात कर रही हैं और किस भगवान के घर के लिए अपना रोना रो रही हैं। बाबरी मस्जिद के लिए? जिसकी नींव ही सदियों पहले राम मंदिर के मलबे पर रखी गई थी। 

स्वरा भास्कर की इसी प्रकार की अज्ञानता के कारण पिछले दिनों रुबिका लियाकत ने उन्हें अपने शो में जम कर लताड़ा था और अब उनकी ऐसी बेवकूफियों के कारण उनका दोबारा मजाक उड़ने लगा है। स्वरा भास्कर, अपने चंद फॉलोवर्स को बरकरार रखने के लिए ये जानती हैं कि उन्हें कैसे अपनी बातें बनानी हैं। लेकिन क्या उन्हें बात का अंदाजा है कि वह इस प्रक्रिया में मजहब का घालमेल कर रही हैं।

इस्लाम में मूर्ति पूजन की कोई जगह नहीं है, तो केवल इबादत करने के लिए बनाई गई इमारत भगवान का घर कैसे हो सकती है?

एक ऐसी जगह, जिसके ढाँचे और उसकी भूमि पर विवाद रहा हो और दूसरा समुदाय सबूतों के साथ उस पर अधिकार प्राप्त कर चुका हो, उस पर घड़ियाली आँसू क्यों? मस्जिद और मंदिर जैसे शब्दों का घालमेल कर ट्वीट क्यों?

सेकुलरिज्म के नाम पर बात मस्जिद की लेकिन ‘भगवान’ शब्द का प्रयोग करना स्वरा भास्कर को उचित लग रहा होगा, लेकिन क्या उनके उन फॉलोवर्स को यही बात पचेगी जो, दूसरे धर्म के लोगों को काफिर कहते हैं, काफिरों का सर तन से जुदा करने की कसमें खाते हैं?

शब्दों के उलटफेर से देश के हिंदू को लंबे समय तक भ्रमित किया गया। स्वरा जैसों का प्रयास आज भी वही है कि राम मंदिर बनने के बाद सेकुलर हिंदू उसमें जाए और अपने पूर्वजों के बलिदान के लिए मंदिर में बैठकर अल्लाह से माफी माँगे।

पाखंड की कोई परिभाषा नहीं होती। स्वरा भास्कर इस बात को हर बात सिद्ध कर देती हैं। वह बाबरी मस्जिद पर विलाप कर रही हैं, लेकिन हैरानी इस बात की है कि भगवान और भगवान का घर लिखने वाली कभी उन सैंकड़ों मस्जिद पर अपना ज्ञान नहीं देती हैं, जिन्हें तैयार करने के लिए भारत की विरासत और संस्कृति पर आघात हुआ।

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया दावे करता है कि एक दिन बाबरी का उदय जरूर होगा। इधर स्वरा जैसे लोग हिंदुओं को एहसास दिलाते हैं कि उन्होंने बाबरी मस्जिद को गिरा कर पाप किया। अगर ये सारी चीजें एक दूसरे से जुड़ी नहीं हैं तो क्या है! क्या देश के सेकुलर हिंदू के मन में अपने धर्म के प्रति घृणा भरने का काम नहीं हो रहा है? हिंदुओं को हिंसक दिखाने की कोशिश नहीं चल रही है?

पिछले कुछ सालों में हमें हिंदुओं का कट्टर रूप देखने को जरूर मिला है, लेकिन ये कट्टर चेहरा इसलिए बेहतर है क्योंकि देश में स्वरा जैसे लोग मौजूद हैं, जो अपनी अज्ञानता को सेकुलरिज्म की चादर से ढक रहे हैं और इसका शिकार हो रहा है सामान्य हिंदू।

कम से कम कथित कट्टर हिंदू में गलत के ख़िलाफ़ विरोध करने की क्षमता तो है। उसके पास अपने हक के लिए बोलने के लिए बुलंद आवाज तो है। कॉन्ग्रेस काल में बढ़े हिंदू के पास इनमें से कुछ नहीं था। आज का हिंदू स्वरा भास्कर की भाँति कम से कम दुनिया को बरगला नहीं रहा।

जब समय आने पर देश के मुस्लिम ‘बाबरी याद रहेगी’ का हैशटैग चला सकते हैं तो आखिर हिंदू उस प्रहार को क्यों भूलें जिसमें न केवल उनके मंदिर का विध्वंस किया गया बल्कि पूरे हिंदू धर्म को लक्षित करके हिंदुओं को निशाना बनाया गया। 6 दिंसबर 1992 को केवल चंद हिंदुओं का ज्वार था, जो खुद के प्राण को दाँव पर लगाकर भगवान को छत दिलाने गए थे, उनका उद्देश्य मजहब को निशाना बनाने का नहीं था, अपनी पहचान वापस पाने था।