गुजरात में मकरसंक्रांति पर पटाखे क्यों? विवादित बाबरी ढाँचे और वाजपेयी-आडवाणी के कनेक्शन से कैसे हुई इसकी शुरुआत?

पतंग के साथ गुजरात में मकरसंक्रांति पर पटाखे भी

गुजरात में मकरसंक्रांति को दो और नामों से भी जाना और बुलाया जाता है – उत्तरायण या उतराण। गुजरात में इस त्यौहार की महत्ता यदि दीवाली के समकक्ष नहीं है तो उससे कम भी नहीं है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के दौरान बाण शैया पर सोए हुए भीष्म पितामह ने इसी दिन अपना देहत्याग किया था और मोक्ष को प्राप्त किया था। समग्र गुजरात में मकरसंक्रांति के दिन और उसके बाद वाले दिन यानी की दो दिन पतंग उड़ाने की परंपरा तो सालों से है पर प्रथम दिन के संध्याकाल के समय पटाखे फोड़ने की परंपरा न ही आधुनिक है परन्तु यह सिर्फ तीन दशकों से ही विद्यमान है।

हर साल समग्र गुजरात में उत्तरायण की संध्या को पटाखे फोड़े जाते हैं। आकाश में रॉकेट छोड़े जाते हैं और आतिशबाजी भी की जाती है। दो पल तो ऐसा लगता है कि दो या तीन महीने बाद समग्र गुजरात में दीवाली वापस आ गई है। मेरे हम-उम्र या मुझसे बड़े कई बार ऐसा बोलते हुए सुने जा सकते हैं कि “हमारे समय में ऐसा नहीं था”।

और उनकी यह बात सच भी है। पर किसी ने यह जानने की कभी कोशिश नहीं की – अगर आज से कुछ साल पहले यदि ये नहीं था तो यह परंपरा शुरू कैसे हुई, उसके पीछे कारण क्या-क्या है? मुझे बिलकुल और साफ-साफ याद है और मैंने इसको गुजरात के विश्व हिन्दू परिषद के सीनियर अधिकारी के साथ चर्चा करके कन्फर्म भी किया है कि मकरसंक्रांति की संध्या को पटाखे फोड़ने की शुरुआत आज से बिल्कुल 31 साल पहले यानी 1993 की 14 जनवरी को हुई थी।

अगर उस दिन की बात करें तो लगभग एक महीना और आठ दिन पहले अयोध्या में बाबरी ढाँचा गिराया गया था। कारसेवकों को कथित रूप से उकसाने के आरोप में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती वगैरह को उस समय की कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा तुरंत हिरासत में ले लिया गया था।

1993 के जनवरी माह में, यानी मकरसंक्रांति के कुछ दिन पहले ही इन सभी को जेल से जब रिहा किया गया तब गुजरात विश्व हिन्दू परिषद ने राज्य के सभी हिन्दुओं से यह अपील की थी कि मकरसंक्रांति के संध्या समय हर छत पर आप मशाल जलाइए और थाली बजाइए और इस अवसर को दिवाली के रूप में मनाइए।

हम गुजराती तो वैसे भी काफी उत्साह में रहते हैं, इसलिए हमने विहिप की अपील को तो स्वीकारा ही पर मशाल जलाने व थाली बजाने के साथ-साथ हमने सम्पूर्ण दिवाली मनाते हुए पटाखे भी फोड़े और खूब फोड़े। फिर अगले साल यानी 1994 की संक्रांति को मशाल तो नहीं जली पर गुजरातियों का उत्साह बरकरार रहा और पटाखे बराबर फूटे। बस वो दिन है और आज का दिन है, मकरसंक्रांति की संध्या को पटाखे फोड़ना गुजरात में एक परंपरा सी बन गई है और आतिशबाजी से पूरा आकाश जगमगा जाता है।

आज भी मकरसंक्रांति है और जब संध्या का समय होगा तब आप भी गुजरात के साथ पटाखे फोड़ेंगे न?

आप सभी को मकरसंक्रांति की ढेरों शुभकामनाएँ!