‘काफिर राज्य’ की हार के इंतजार में था हुमायूँ, नहीं की थी रानी कर्णावती की मदद: रक्षाबंधन की फर्जी कहानी और चित्तौड़ का वो जौहर

हुमायूँ को रानी कर्णावती ने भेजी थी राखी? (प्रतीकात्मक चित्र)

हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि युद्ध की विपत्ति के दौरान मेवाड़ की रानी कर्णावती ने मुग़ल शासक हुमायूँ को पत्र और राखी भेजी थी, जिसके बाद वो तुरंत उनकी मदद के लिए निकल पड़ा था। हालाँकि, मुगलों को महान बनाने के लिए जिस तरह की तिकड़मों का जाल बुना गया है, उसमें इस कहानी पर विश्वास होना मुश्किल है। क्या आपको पता है कि उस समय के इतिहास में ऐसी किसी घटना का जिक्र नहीं मिलता?

सबसे पहले बात करते हैं कि प्रचलित कहानी क्या है और कहाँ से आई। कहानी कुछ यूँ है कि गुजरात पर शासन कर रहे कुतुबुद्दीन बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। इसी दौरान महारानी कर्णावती ने मुग़ल शासक हुमायूँ को पत्र भेजा। साथ में उन्होंने एक राखी भी भेजी और मदद के लिए गुहार लगाई। इसके बाद हुमायूँ तुरंत उनकी मदद के लिए निकल पड़ा था। इस घटना को रक्षाबंधन से भी जोड़ दिया गया।

अब आपको बताते हैं कि ये कहानी आई कहाँ से? दरअसल, 19वीं शताब्दी में मेवाड़ की अदालत में कर्नल जेम्स टॉड नाम का एक अंग्रेज था। उसने ही ‘Annals and Antiquities of Rajast’han’ नाम की एक पुस्तक लिखी थी। इसी पुस्तक में इस कहानी का जिक्र था। ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के जेम्स टॉड ने ही सन् 1535 की इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा था कि राखी पाकर हुमायूँ तुरंत मदद के लिए निकल पड़ा था।

टॉड लिखते हैं कि जब बहुत ज्यादा ज़रूरत हो या फिर खतरा हो, तभी राखी भेजी जाती थी। इसके बाद राखी प्राप्त करने वाला ‘राखीबंद भाई’ बन जाता था। उन्होंने लिखा था, “अपनी उस बहन के लिए वो राखीबंद भाई अपने जीवन को भी खतरे में डाल सकता है। बदले में उसकी अपनी ‘बहन’ की मुस्कराहट मिल सकती है, जिसकी उसने रक्षा की हो।” टॉड लिखते हैं कि ब्रेसलेट पाकर हुमायूँ काफी खुश हुआ था।

उन्होंने लिखा है कि हुमायूँ ने खुद को एक ‘सच्चा शूरवीर’ साबित किया और पश्चिम बंगाल में अपने आक्रमण को छोड़ कर चित्तौर को बचाने के लिए निकल पड़ा, राणा सांगा की विधवा और बच्चों की रक्षा के लिए निकल पड़ा। हालाँकि, हुमायूँ के पहुँचने से पहले ही चित्तौर पर बहादुर शाह का कब्ज़ा हो चुका था और रानी ने कई महिलाओं समेत जौहर कर लिया था। टॉड लिखते हैं कि इसके बावजूद आक्रांता को भगा कर हुमायूँ ने वादा पूरा किया।

अब इसी कहानी को इतिहास की नजरिए से समझते हैं। सबसे पहले तो बता दें कि महारानी कर्णावती, राणा सांगा की पत्नी थीं। महाराणा संग्राम सिंह उर्फ़ राणा सांगा ने राजपूतों को एकजुट कर मुग़ल शासक बाबर के खिलाफ एक मोर्चा बनाया और सन् 1527 में खानवा (राजस्थान के भरतपुर में) के युद्ध में बाबर से भिड़े। हालाँकि, बाबर की तोपों, फौज में जिहाद की भूख भरना और नई तकनीकों का इस्तेमाल मुगलों के काम आया।

राणा सांगा बुरी तरह घायल हो गए और कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो गई। इसके बाद बड़े बेटे विक्रमादित्य को सिंहासन पर बिठा कर महारानी कर्णावती ने शासन शुरू किया। उनका एक छोटा बेटा भी था, जिसका नाम था – राणा उदय सिंह। वही राणा उदय सिंह, जिन्होंने 30 वर्ष से भी अधिक समय तक मेवाड़ पर राज किया और उदयपुर शहर की स्थापना की। उनके ही बेटे महाराणा प्रताप थे, जिन्होंने अकबर की नाक में दम किया था।

इधर बाबर की मौत के बाद 1530 में हुमायूँ गद्दी पर बैठा। उस समय गुजरात पर वहाँ की सल्तनत के बहादुर शाह का राज़ था। बहादुर शाह ने अपने राज्य के विस्तार के लिए कई युद्ध लड़े। हुमायूँ के आक्रमण के बाद ही उसके राज़ का अंत हुआ था। बाद में समुद्र में पुर्तगालियों के साथ एक बैठक के दौरान बात बिगड़ गई और वो मारा गया। ये वही बहादुर शाह था, जो कभी अपने अब्बा शमशुद्दीन मुजफ्फर शाह II और भाई सिकंदर शाह के डर से चित्तौर में छिपा था।

बाद में बहादुर शाह ने मालवा को जीता और फिर उसने चित्तौर पर ही धावा बोल दिया। ये तो था इन किरदारों का परिचय। इतिहासकार सतीश चंद्रा अपनी पुस्तक ‘History Of Medieval India‘ में लिखते हैं कि किसी भी तत्कालीन लेखक ने कर्णावती द्वारा हुमायूँ को राखी भेजने की घटना का जिक्र नहीं किया है और ये झूठ हो सकती है। तो फिर सच्चाई क्या थी? असल में हुआ क्या था, जो हमसे छिपाया गया?

पुस्तक ‘The History of India for Children (Vol. 2): FROM THE MUGHALS TO THE PRESENT’ में अर्चना गरोदिया गुप्ता और और श्रुति गरोदिया लिखती हैं कि हुमायूँ तो चित्तौर पर सुल्तान बहादुर शाह के कब्जे के कुछ महीनों बाद चित्तौर पहुँचा था। वो तो इंतजार कर रहा था कि कब मेवाड़ का साम्राज्य ध्वस्त हो। इस दौरान बहादुर शाह भी खुलेआम चित्तौर में मारकाट और लूटपाट मचाता रहा।

उसके मंत्रियों ने उसे कह रखा था कि वो एक काफिर से लड़ रहा है, इसीलिए मुस्लिम होने के नाते हुमायूँ उसे नुकसान नहीं पहुँचाएगा। लेकिन, हुमायूँ ने चित्तौर के उसके कब्जे में जाने का इंतजार किया और फिर हमला बोला। शुरू में तो उसकी हार हो रही थी, लेकिन अंत में किसी तरह उसने गुजरात और मालवा पर कब्ज़ा जमा लिया। इस तरह बहादुर शाह के सल्तनत का अंत हो गया। बहादुर शाह की सेना भी विशाल थी और उसके पास बड़े संसाधन थे।

चित्तौर हमले के दौरान हुमायूँ और बहादुर शाह के बीच पत्राचार भी हुआ था, जिसका जिक्र SK बनर्जी ने अपनी पुस्तक ‘हुमायूँ बादशाह‘ में किया है। बहादुर शाह ने पत्र लिख कर हुमायूँ को बताया था कि वो ‘काफिरों’ को मार रहा है। बदले में हुमायूँ ने भी लिखा था कि उसके दिल का दर्द ये सोच कर खून में बदल गया है कि एक होने के बावजूद हम दो हैं। और इस कहानी को एक हिन्दू त्यौहार से जोड़ कर रक्षाबंधन को बर्बाद करने की कोशिश की गई।

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रानी कर्णावती का क्या हुआ? चित्तौर में जो तीन जौहर हुए थे, उनमें से एक ये भी था। जहाँ पुरुषों को केसरिया वस्त्र पहन कर युद्ध के लिए निकलना पड़ा, अंदर किले में रानियों ने अन्य महिलाओं के साथ जौहर किया। 8 मार्च, 1934 को इन महिलाओं ने इस्लामी शासकों के हाथों में जाने के बदले मृत्यु का वरन किया। राजकुमारों को एक सुरक्षित जगह पर रखा गया था, इसीलिए वो बच गए। इस्लामी फ़ौज ने कई बच्चों की भी हत्या की थी।

कर्णावती के राखी भेजने पर हुमायूँ द्वारा मदद करने की खबर उतनी ही फर्जी है, जितनी जोधा-अकबर की। आज तक कई फ़िल्में और सीरियल बन चुके, लेकिन किसी ने भी जोधा-अकबर की प्रमाणिकता के विश्व में रिसर्च करने की कोशिश नहीं की। जेम्स टॉड ने ही जोधा के नाम का भी जिक्र किया था। उससे पहले कहीं नहीं लिखा है कि अकबर की किसी पत्नी का नाम जोधा था। ये भी एक बनावटी कहानी भर है।

अनुपम कुमार सिंह: भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।