बाँका में मिले नदी-घाटी सभ्यता के अवशेष: ईंटें किश्चियन तारीख से पहले के, ग्रीक लेखकों ने भी किया था वर्णन

बिहार के बाँका में मिले नदी-घाटी सभ्यता के अवशेष

बिहार के बाँका जिले के भदरिया गाँव के समीप चांदन नदी के बीच कुछ अति-प्राचीन घरों की शृंखला मिली है। घरों की दीवारें 20 से 30 फीट तक चौड़ी हैं। इनमें प्रयुक्त ईंटें किश्चियन तारीख के शुरू होने से पहले के बताए जा रहे हैं। यह स्थल नदी के मूल बहाव क्षेत्र में है। इसे नदी घाटी सभ्यता का दर्जा दिया गया है। इस नदी की पहचान ग्रीक लेखकों ने भी पौराणिक काल की पवित्र नदी ‘ईरणभव’ के रूप में की है।

हाथ से बनाई गई ईंट

वामपंथी इतिहासकारों ने कुविचारों का घोला मारकर हमारे सामने इतिहास को प्रस्तुत किया। इसमें हमारी सनातन सभ्यता को हीन बताया गया और अन्य सभ्यताओं का महिमामंडन करते हुए प्रस्तुत किया। लेकिन भारत के प्रांतों के सभी क्षेत्रों के स्थानीय इतिहासकारों ने अपार श्रम से इतिहास की कसौटी पर रखते हुए जो नए खोज किए हैं, उसने वामपंथी इतिहास की बखिया उधेड़ दी है। ऐसी ही खोज में यह ‘नदी-घाटी सभ्यता’ है, जो भदरिया में मिली है। इस परिघटना से आर्य-अनार्य तथा नृविज्ञान के सिद्धांतों के तय मिथक टूटने की उम्मीद है।

खुदाई के दौरान प्राप्त ईंट की नजदीक से तस्वीर

चांदन नदी के बीचों-बीच जलबहाव क्षेत्र में इस भवन शृंखला की नींव मिलने से इसे नदी घाटी सभ्यता के तौर पर चिह्नित किया गया है। यह शृंखला लगभग 50 फीट दूर तक नजर आती है। इससे आगे भी इसके निकलने की संभावना है लेकिन वहाँ भी बालू भरा हुआ है और उसके ऊपर नदी का जल बहाव है।

नदी घाटी सभ्यता की दीवार

यह खोज छठ पर्व के दौरान सूर्य देवता को अर्घ्य देने के लिए घाटों की सफाई और निर्माण के दौरान ग्रामीणों द्वारा हुई। नदी के बीच किसी प्रकार के भवनों की शृंखला मिलने की यह पहली ऐतिहासिक घटना है। जबकि नदी के किनारे छोटी-मोटी ऐसे कुछ संरचनाएँ पहले भी मिली हैं, जिन्हें नगर अवशेष के तौर पर चिह्नित नहीं किया गया है। कहा गया है कि वे अस्थाई प्रबंध थे। किन्तु, यहाँ इन नगरीय अवशेषों के बीच मिट्टी का एक छोटा घड़ा भी मिला है। कुछ लोग बताते हैं कि एक मानव खोपड़ी भी मिली थी, जिसे अज्ञानतावश गुम कर दिया गया।

नदी घाटी सभ्यता की दीवार की तस्वीर

भदरिया नामक यह गाँव बिहार के बाँका जिला के अमरपुर ब्लॉक में है। इस ब्लॉक की सीमा भागलपुर जिले से लगती है। भागलपुर प्राचीन काल में अंग महाजनपद के नाम से जाना जाता था। महात्मा बुद्ध के जन्म से पहले यह भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। इस महाजनपद की राजधानी चंपा थी। यहाँ बुद्ध आए थे। इस चंपा नगरी में 7वीं सदी में चीनी यात्री ह्वेन्त्सांग भी आया था।

यह प्राचीन चम्पा अब चंपानगर कहलाता है। भदरिया गाँव से चंपानगर की दूरी लगभग 25 किलोमीटर है। जातकों में कहा गया है कि बुद्ध की पहली चारिका का नाम विशाखा था, जो भद्दई की थी। इसी भदरिया की पहचान भद्दई गाँव के तौर पर की गई है। पिता धनंजय और माता सुमना की पुत्री विशाखा के दादा मेंडक एक श्रेष्ठि थे, जिनके गाँव बुद्ध अपने 1200 शिष्यों के साथ आए थे। 2 वर्षों पूर्व इस गाँव में बुद्ध के चरण चिह्न की स्थापना की गई, जिसके लिए ग्रामीण लखनलाल पाठक ने जमीन दान में दी।   

इस गाँव के पास चांदन नदी की चौड़ाई 900 मीटर है। गाँव की ओर से लगने वाली नदी तट से लगभग 400 मीटर की दूरी पर यह अवशेष पाया गया है। यहाँ से प्राप्त अवशेष में 15 इंच लंबी, 10 इंच चौड़ी और 2.5 इंच मोटी ईंटों का प्रयोग किया गया है। ये ईंटें हाथों से थापकर बनाई गई हैं और पुआल से पकाए गए हैं। यहाँ से 1.3 इंच व्यास के मिट्टी से बनाए गए छोटे घड़े भी मिले हैं।

खुदाई के दौरान प्राप्त घड़ा

यह नदी आगे जाकर गंगा में मिलने से पहले 3 भागों में बँट जाती है। मूल धारा आगे जाकर चंपा नदी बन जाती है, जो प्राचीन काल में मगध और अंग महाजनपदों की सीमा रेखा मानी गई है। इसी नदी के तट पर अंग की राजधानी चंपा बसी हुई है, जहाँ से प्रतापी राजा दानवीर कर्ण की चर्चा जुड़ी है। इसी चम्पा से विक्रमशिला महाविहार की दूरी लगभग 54 किलोमीटर है, जिसे पाल राजा धर्मपाल ने बनवाया था। विदित हो कि ये दोनों जगह भागलपुर जिले में हैं। 

भदरिया गाँव से मंदार पर्वत की दूरी 46 किलोमीटर है। इस मंदार पर्वत की पहचान समुद्र मंथन में प्रयुक्त केंद्र वाले पर्वत से की गई है। यह स्थल प्राचीन अवशेषों के लिए विख्यात है। इतिहासज्ञों के अध्ययन और स्थल पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह स्थल नदी-घाटी सभ्यता मानी गई है। सम्पूर्ण भारत में अब तक सिर्फ राखीगढ़ी (हरियाणा) और लोथल (गुजरात) में ही ऐसी सभ्यताओं के प्रमाण मिले हैं।

नदी घाटी सभ्यता के प्रमाण

इस स्थल के अधिक अध्ययन के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पटना सर्किल को जिला प्रशासन के जरिए अनुरोध किया गया है। फिलहाल, इस स्थल के संरक्षण के लिए जिला अधिकारी ने प्रबंध कराया है लेकिन कुछ प्रभावी लोगों द्वारा ईंटें या अन्य वस्तुएँ स्थल से उठाकर ले जाने की खबरें बराबर आ रही हैं, जो इस साइट के संरक्षण में बाधा उत्पन्न कर रही है।

लेखक: उदय शंकर झा ‘चंचल’