जाना था बनारस पर स्वप्न में आईं भगवती, प्राण-प्रतिष्ठा के लिए जुटे 1 लाख से अधिक ब्राह्मण: कोलकाता का दक्षिणेश्वर काली मंदिर

कोलकाता का दक्षिणेश्वर मंदिर (साभार: जागरण)

पश्चिम बंगाल दुर्गा पूजा के लिए देश भर में जाना जाता है। यहाँ कई ऐसे मंदिर हैं जिनका इतिहास सालों पुराना है और इनमें से अधिकतर माँ दुर्गा और उनके विभिन्न रूपों को समर्पित हैं। ऐसा ही एक मंदिर कोलकाता में हुगली नदी के तट पर स्थित है, दक्षिणेश्वर काली मंदिर। अद्भुत संरचना के लिए प्रसिद्ध इस मंदिर का निर्माण एक विधवा ने कराया था जो माता काली के दर्शन के लिए बनारस जाना चाहती थीं, लेकिन खुद माँ काली ने उन्हें हुगली नदी के किनारे ही मंदिर बनाने का आदेश दिया था।

इतिहास

कोलकता (तत्कालीन कलकत्ता) के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है, दक्षिणेश्वर काली मंदिर। इसका निर्माण उस समय की एक समाज सेविका रानी रासमणि ने कराया था। रानी समाज सेवी होने के साथ एक काली भक्त भी थीं। मंदिर के निर्माण का एक अनोखा इतिहास है जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। रानी रासमणि विधवा थीं लेकिन उनके पास उनके पति का व्यापार और अच्छी-खासी संपत्ति थी। काफी समय तक यह सब सँभालने के बाद रानी के मन में तीर्थ यात्रा करने की इच्छा हुई। इसके लिए उन्होंने अपने रिश्तेदारों को तैयार किया और सबसे पहले वाराणसी जाकर माँ काली की उपासना करने की योजना बनाई।

कहा जाता है कि वाराणसी के लिए प्रस्थान करने से पहले एक रात माँ काली, रानी रासमणि के सपने में आईं और कहा कि उन्हें माता के दर्शन के लिए वाराणसी जाने की कोई जरूरत नहीं है। यहीं नदी के तट पर उनका मंदिर बनाया जाए और वह वहीं प्रकट होकर भक्तों को दर्शन देंगी और रानी द्वारा बनवाए गए मंदिर में निवास करेंगी। माँ काली के आदेश के बाद रानी ने वाराणसी जाने की योजना रद्द कर दी और मंदिर निर्माण के लिए भूमि तलाश करने लगी। कहा जाता है कि जब रानी मंदिर के लिए भूमि की खोज कर रही थीं तब वो उस जगह पर पहुँची जहाँ आज मंदिर स्थित है तब एक बार फिर उन्हें एक अदृश्य आवाज सुनाई दी जिसने उस स्थान को मंदिर निर्माण के लिए उपयुक्त बताया। इसके बाद रानी ने वह जमीन खरीदी और सन् 1847 में मंदिर का निर्माण शुरू हुआ जो सन् 1855 में पूरा हुआ।

संरचना

कोलकाता का दक्षिणेश्वर काली मंदिर न केवल पश्चिम बंगाल, अपितु पूरे भारत में अपनी सुंदरता और बनावट के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण बंगाल वास्तुकला की नवरत्न शैली में हुआ है। तीन मंजिल वाले इस मंदिर की ऊपरी दो मंजिलों पर 9 मीनारों का निर्माण किया गया है जो इस मंदिर की सुंदरता को कई गुना बढ़ा देती हैं। मंदिर 46 फुट लंबा चौड़ा है साथ ही इसकी ऊँचाई 100 फुट है।

गर्भगृह में माँ काली की प्रतिमा स्थापित है जिन्हें भवतारिणी के नाम से पूजा जाता है। माँ काली भगवान शिव के छाती पर चरण रखकर खड़ी हुई हैं। इसके अलावा गर्भगृह में चाँदी का कमल का फूल बनाया गया है, जिसकी हजार पंखुड़ियाँ हैं। इसी कमल के फूल पर माँ काली की प्रतिमा को विराजमान किया गया है। मंदिर से जुड़ा हुआ वह कमरा जहाँ स्वामी विवेकानंद के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस से जुड़ी स्मृतियाँ हैं। साथ ही मंदिर के बाहर रानी रासमणि और स्वामी रामकृष्ण परमहंस की पत्नी श्री शारदा माता की समाधि है। इसके अलावा वह वट वृक्ष भी मौजूद है जिसके नीचे स्वामी परमहंस ध्यान किया करते थे।

कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में माँ काली और अन्य प्रतिमाओं की स्थापना हिन्दुओं के पवित्र स्नान यात्रा दिवस पर की गई थी। रानी रासमणि ने इस कार्य के लिए देश भर से एक लाख से अधिक विद्वान ब्राह्मणों को बुलाया था। जिनके द्वारा मंदिर में प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा का कार्य किया गया था। कहा जाता है कि इस मंदिर में स्वामी रामकृष्ण परमहंस को भी माँ काली के दर्शन प्राप्त हुए थे।

कैसे पहुँचे?

कोलकाता देश के चार प्रमुख महानगरों में से एक है, ऐसे में यहाँ पहुँचने के लिए परिवहन के साधनों की अनुपलब्धता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। दक्षिणेश्वर काली मंदिर से कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे की दूरी लगभग 11 किमी है। इसके प्रसिद्ध हावड़ा जंक्शन, दक्षिणेश्वर मंदिर से मात्र 10 किमी दूर है। कोलकाता पहुँचने के बाद मंदिर पहुँचना काफी आसान है और माना जाता है कि कोलकाता जाकर भी अगर दक्षिणेश्वर काली माता मंदिर की यात्रा न की तो यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी।

ओम द्विवेदी: Writer. Part time poet and photographer.