पहले ग्रेनेड फिर Ak-56 से बरसी गोलियाँ: 3 मिनट में 8 इस्लामिक आतंकियों ने 30 हिंदुओं का किया था नरसंहार

जब जम्मू के कासिम नगर में हिंदुओं का किया गया नरसंहार

लॉर्डस की बालकनी में टीशर्ट उतार हवा में लहराते सौरव गांगुली आपकी जेहन में आज भी जिंदा होंगे। पर क्या वे 30 हिंदू भी हैं, जिनकी हत्या इसी मैच को देखने के दौरान आतंकियों ने कर दी थी?

तारीख थी 13 जुलाई 2002। पूरे भारत की नजर लॉर्डस के मैदान पर थी। नेटवेस्ट सीरिज का फाइनल मैच था। किसी की नजरें टीवी पर गड़ी थी तो किसी के कानों से रेडियो सटा था। लेकिन, उस वक्त भी आतंकी हिंदू शिकार की तलाश में थे और उनका निशाना था जम्मू का हिंदू बहुल कासिम नगर।

13 जुलाई की वह रात कासिम नगर के हिंदुओं के लिए बेहद खौफनाक गुजरी। कच्ची बस्ती वाले इस पूरे इलाके में ज्यादातर हिंदू मजदूर रहते थे। उस रात अचानक मैच के दौरान रात के 8 बजे इलाके की लाइट चली गई। मगर, क्रिकेट के शौकीनों ने रेडियो पर उसकी कमेंट्री सुनना शुरू कर दिया। आस-पास कई बच्चे और महिलाएँ भी थीं।

सबके भीतर किसी भी अन्य भारतीय की तरह एक अलग ही उत्साह था। लेकिन उन्हें ये नहीं मालूम था कि वह अन्य भारतीयों की तरह उस रात भारत की जीत का जश्न नहीं मना पाएँगे, क्योंकि उनपर तो लश्कर के आतंकी नजर जमाए बैठे थे।

उस रात करीब 8 आतंकी अलग भेष में कासिम नगर पहुँचे और देखते-देखते ही सारी मुस्कुराहटें सिसकियों में बदल गईं। इन आतंकियों ने मैच की कमेंट्री सुन रहे हिंदुओं पर ग्रेनेड की बरसात की और फिर Ak-56 से ताबड़तोड़ फायरिंग की।

2 से 3 मिनट के इस खूनी खेल में उन्होंने लगभग 30 हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया, जबकि 30 लोग इस आतंकी हमले में बुरी तरह घायल हो गए। मरने वालों में 1 बच्चा, 13 महिलाएँ, कुछ भिखारी और 2 नेत्रहीन भी शामिल थे।

बताया जाता है कि हिंदुओं की लाशें बिछाने के बाद भी आतंकियों को चैन नहीं मिला। उन्होंने हिंदुओं के मंदिरों पर भी हमला किया। बाद में अंधेरे और जंगलों का फायदा उठाकर सभी वहाँ से फरार हो गए। घायलों को किसी तरह से अस्पताल पहुँचाया गया। लेकिन वहाँ भी कुछ लोगों ने दम तोड़ दिया।

भारतीय भले ही 13 जुलाई की इस तारीख को सौरव गांगुली की टीशर्ट और भारत की जीत के लिहाज से याद करें। लेकिन इस्लामिक आतंकियों के लिए इस दिन को याद करने की वजह कुछ और है। दरअसल, इस्लामिक आतंकी व अलगाववादी महाराजा हरि सिंह के डोगरा रूल के ख़िलाफ़ इस दिन को ब्लैक डे के तौर पर मनाते हैं। इसी दिन 13 जुलाई 1931 को श्रीनगर में सैंकड़ो इस्लामिक कट्टरपंथियों ने जेल पर हमला बोल दिया था। उनका मकसद भड़काऊ भाषण देने वाले अब्दुल कादिर को जेल से निकालना था। इसी हुड़दंग को रोकने के लिए पुलिस को गोलीबारी करनी पड़ी थी, जिसमें करीब 10 दंगाई मारे गए थे।

पुलिस ने अपनी जाँच में इस हमले में लश्कर-ए-तैयबा का हाथ पाया था। बाद में मोहम्मद इदनाम नाम के आतंकी को गिरफ्तार कर उसके 7 अन्य साथियों को भी गिरफ्तार किया गया। जाँच में पता चला था कि इन लोगों को पाकिस्तान की ISI ने इलाके में सांप्रदायिक तनाव फैलाने के लिहाज से भर्ती किया था।

पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति ने इस घटना को सुनते ही इससे इस्लामबाद के किसी भी प्रकार के कनेक्शन पर अपना पल्ला झाड़ लिया था। जबकि पाकिस्तान के यूनाइटेड जेहादी काउंसिल ने ये बयान दिया था कि जिहाद को कभी भी एक व्यक्ति या फिर राज्य द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता।

यशवंत सिन्हा की आत्मकथा Relentless: An Autobiography से साभार

यहाँ बता दें, 13 जुलाई के उस खौफनाक मंजर का जिक्र उस समय विदेश मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने अपनी आत्मकथा में भी किया है। इस किताब में उन्होंने बताया है कि हमले की सूचना मिलने के बाद इस संबंध में फौरन मंत्रिमंडल की बैठक हुई थी।