वो ‘क्विड प्रो क्को’ जिसके लिए सुषमा स्वराज ने राहुल गाँधी से कहा था- अपनी ममा से पूछें: कहानी भोपाल गैस त्रासदी की, शहरयार के बदले ‘सौदे’ की

भोपाल गैस त्रासदी: सवालों के घेरे में राजीव गाँधी की भूमिका

सन् 1984। ऑपरेशन ब्लू स्टार का साल। इंदिरा गाँधी की हत्या का साल। सिखों के नरसंहार का साल। सबसे प्रचंड बहुमत से केंद्र में सरकार बनने का साल। एक शहर के कब्रिस्तान में बदल जाने का भी साल।

यह शहर है मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल। 2-3 दिसंबर 1984 की रात यहाँ यूनियन कार्बाइड नामक कारखाने से मिथाइल आइसोसाइनेट नामक जहरीले गैस का रिसाव हुआ। सुबह हुई तो शहर के एक हिस्से में लाशों का ढेर लगा था।

यह शायद इतिहास की सबसे भयानक मानव निर्मित त्रासदी है। लेकिन, उससे भी बड़ी त्रासदी यह है कि आज भी इस मामले में इंसाफ की साँसें उखड़ी हुई है। इसकी एक बड़ी वजह वह कथित सौदा बताया जाता है जो उस समय ​प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे राजीव गाँधी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के बीच हुआ था। कहा जाता है कि भोपाल के गुनहगार वॉरेन एंडरसन की आजादी के बदले अमेरिका ने राजीव गाँधी के यार आदिल शहरयार को रिहा किया था।

इस कथित साँठगाँठ की ओर इशारा 13 अगस्त 2015 को लोकसभा में उस समय विदेश मंत्री रही दिवंगत सुषमा स्वराज ने किया था। उन्होंने राहुल गाँधी से कहा था- आपको छुट्टियॉं मनाने का बहुत शौक है। इस बार जाइए छुट्टी मनाने और अपने परिवार का इतिहास पढ़िए। अपनी ममा (सोनिया गॉंधी) से पूछें कि डैडी (राजीव गॉंधी) ने क्वात्रोक्की को क्यों भगाया? एंडरसन को क्यों अमेरिका को लौटाया? एंडरसन को छोड़कर अपने दोस्त आदिल शहरयार को लाकर क्विड प्रो क्को (लेनदेन) क्यों किया?

सुषमा के बयान में जिनलोगों का जिक्र है उनमें से एक इतालवी व्यापारी ओत्तोवियो क्वात्रोकी के बारे में आपने बहुतेरे सुना होगा। बोफोर्स सौदे में दलाली के आरोपों के घिरा क्वात्रोकी, गाँधी परिवार का करीबी बताया जाता था। 2013 में इटली के मिलान शहर में उसकी मौत हुई थी। जाहिर है, भोपाल गैस कांड से उसका कोई लेना-देना नहीं था। इस त्रासदी से जुड़ी है शहरयार और एंडरसन की कहानी। इन दोनों के बारे में जानने से पहले उस त्रासदी को जाने।

क्यों, कैसे और कितनी लाशें बिछी

  • 1977 में भोपाल में यूनियन कार्बाइड शुरू हुआ। इसमें भारत सरकार और अमेरिकी कंपनी की साझेदारी थी। 51 फीसदी हिस्सा यूनियन कर्बाइड के पास होने के कारण मालिकाना हक उसके ही पास था। इसी कंपनी का अध्यक्ष था वॉरेन एंडरसन।
  • इस कारखाने में सेविन नामक कीटनाशक बनाया जाता था। क्षमता सालाना 5000 टन उत्पादन की थी। लेकिन, 2500 टन का ही उत्पादन हो रहा था।
  • सेविन की माँग 1980 का दशक आते-आते घट गई। लिहाजा, लागत कम करने और मुनाफा बढ़ाने के लिए कारखाने का स्टाफ कम किया गया। रखरखाव पर पहले की तरह ध्यान नहीं दिया जाने लगा। कल-पुर्जे कम लागत के खरीदे गए।
  • बावजूद इसके मुनाफा नहीं बढ़ा। उत्पादन रोक दिया गया। लेकिन, कारखाने में स्टॉक पड़ा था।
  • कारखाने के प्लांट C के टैंक नंबर 610 में मिथाइल आइसोसाइनेट गैस भरी थी। रखरखाव पर ध्यान नहीं होने की वजह से पानी टैंक में चला गया। माना जाता है टैंक में करीब 25 से 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट थी।
  • मिथाइल आइसोसाइनेट और पानी की क्रिया से मेथिलएमीन और कार्बन डाई ऑक्साइड बनना शुरू हुआ। गैस वातावरण में हवा के साथ मिल गई और लोगों की साँस उखड़ने लगी।
  • आधिकारिक तौर पर 3,787 लोगों के मरने की बात कही गई। कई मीडिया रिपोर्टों में यह संख्या 20-25 हजार बताई जाती है। पीड़ितों के संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 15,274 लोगों की मौत हुई और 5,74,000 लोग बीमार हुए थे।

नेहरू और इंदिरा के करीबी मोहम्मद युनुस का बेटा था शहरयार

खान अब्दुल गफ्फार खान के भतीजे मोहम्मद युनुस का 1944 में इंदिरा गाँधी से संपर्क हुआ। बाद में जवाहर लाल नेहरू के भी वे करीब हो गए। वाणिज्य सचिव के पद से रिटायर हुए युनुस तुर्की, इंडोनेशिया, इराक और स्पेन में राजदूत रहे। उन्हीं का बेटा था आदिल शहरयार। आदिल की इंदिरा गाँधी के बेटों राजीव और संजय से गहरी यारी थी। 30 अगस्त 1981 को आदिल अमेरिका के मियामी में गिरफ्तार किया गया। बम विस्फोट, फर्जीवाड़े का आरोप था। जाँच हुई तो ड्रग्स रैकेट से भी तार जुड़े। 35 साल कैद की सजा सुनाई गई।

बस कहने को गिरफ्तार हुआ वॉरेन एंडरसन

मुंबई के सांताक्रूज हवाई अड्डे पर 6 दिसंबर 1984 को तड़के 5 बजे एक विमान लैंड करता है। विंड स्क्रीन पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा होता है UCC। यानी, यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन। विमान से वॉरेन एंडरसन उतरता है। अगले दिन यानी 7 दिसंबर सुबह वह भोपाल की फ्लाइट लेता है। भोपाल के एसपी स्वराज पुरी एयरपोर्ट पर स्वागत करते हैं। कार में सवार हो एंडरसन यूनियन कार्बाइड के गेस्ट हाउस पहुँचता है। वहाँ उसे गिरफ्तार करने की बात बताई जाती है। पुलिस का अफसर कहता है- हमने ये कदम आपकी सुरक्षा के लिए उठाया है। आप अपने कमरे के अंदर जो करना चाहें, कर सकते हैं। लेकिन आपको बाहर जाने, फोन करने और लोगों से मिलने की इजाजत नहीं होगी।

एंडरसन पर धारा 92, 120बी, 278, 304, 426 और 429 के अंतर्गत गैर-इरादतन हत्याओं का मामला दर्ज किया जाता है। दोपहर 3:30 बजे एसपी पुरी उसे रिहाई के बारे में बताते हैं। उसे दिल्ली भेजने के लिए विशेष विमान की व्यवस्था की जाती है। 25,000 रुपए का बॉन्ड और कुछ जरूरी कागजों पर साइन कर एंडरसन दिल्ली के लिए उड़ जाता है, जहाँ से वह अमेरिका चला जाता है। 29 सितंबर 2014 को अमेरिका के फ्लोरिडा में उसकी मौत होती है। लेकिन, दुनिया को करीब एक महीने बाद इसकी खबर दी जाती है।

किसके दबाव में चंद घंटो में ही हुई रिहाई?

आखिर, किसके दबाव में मध्य प्रदेश सरकार एंडरसन को चंद घंटों के भीतर ही छोड़ने के लिए मजबूर हो जाती है। इसी सवाल का जवाब तलाशने पर शहरयार का नाम सामने आता है। कहा जाता है कि राजीव गाँधी ने शहरयार को छुड़वाने के एवज में एंडरसन का सौदा अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से किया था। रीगन ने उसे माफ करने के दस्तावेज पर 19 जून 1985 को हस्ताक्षर किए थे। इसी दिन राजीव गाँधी भी वाशिंगटन पहुँचे थे। न्यूयॉर्क से प्रकाशित होने वाले वीकली इंडिया एब्रॉड के मुताबिक, राजीव गॉंधी ने अपने दोस्त को माफी देने के लिए रीगन से पैरवी करने की बात से इनकार किया था। लेकिन, साथ ही यह भी कहा था कि उन्हें यकीन है कि शहरयार को गलत तरीके से जेल में डाला गया है।

संदेह के बादल गहरे, राव पर दोष मढ़ने की कोशिश

  • जिस समय यह घटना हुई अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। जिस सरकारी विमान से 7 दिसंबर 1984 को एंडरसन को दिल्ली ले जाया गया था, उसकी लॉग बुक में लिखा था- इस उड़ान की अनुमति मुख्यमंत्री ने दी है।
  • अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा द ग्रेन ऑफ सैंड इन द हावरग्लास ऑफ टाइम में इस संबंध में राजीव के साथ किसी मशविरे से इनकार किया है। वे सारी जिम्मेदारी केंद्रीय गृह मंत्रालय पर डाल देते हैं, जिसकी जिम्मेदारी उस वक्त पीवी नरसिम्हा राव के पास थी।
  • अर्जुन सिंह लिखते हैं- गृह सचिव आरडी प्रधान ने राव के कहने पर ब्रह्म स्वरुप को एंडरसन की रिहाई के लिए फोन किया था। बह्म स्वरुप उस समय मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव हुआ करते थे।
  • दिलचस्प यह है कि आरडी प्रधान दिसंबर 1984 में महाराष्ट्र के मुख्य सचिव थे। जनवरी 1985 में उन्होंने केंद्रीय गृह सचिव का कार्यभार सँभाला था। राव के साथ अर्जुन सिंह के मतभेद भी जगजाहिर थे।
  • भोपाल के तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि एंडरसन ने अपने कमरे में रखे फोन का इस्तेमाल किया। अमेरिकी सरकार के अपने मित्रों से संपर्क किया और भारत सरकार पर दबाव बनाने के लिए कहा।
  • बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार राजीव गाँधी के करीबी अरुण नेहरू ने अर्जुन सिंह को फोन किया था। नेहरू ने कहा था कि रीगन ने राजीव गाँधी को फोन कर एंडरसन को तुरंत रिहा करने का अनुरोध किया है।

कमलनाथ के बेटे की कंपनी ने खरीदा वो विमान

एंडरसन को भगाने के मामले की जॉंच के लिए 2004 में जस्टिस एसएल कोचर आयोग बनाया गया। जाँच में पता चला कि जिस विमान से एंडरसन भोपाल से दिल्ली भेजा गया था, उसे मध्‍य प्रदेश सरकार ने 1998 में स्पान एयर प्राइवेट लिमिटेड के हाथों बेच दिया था। यह कंपनी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ के बेटे की थी। बाद में यह विमान किसी दूसरी विदेशी कंपनी को बेच दिया गया। इसके साथ ही विमान का लॉग बुक देश के बाहर चला गया।

गुत्थी शायद ही सुलझे, पर शहरयार की मौत भी पहेली है

रीगन और राजीव गाँधी के बीच वास्तव में कोई सौदा हुआ था, इस सवाल का जवाब शायद ही मिल पाए। इस कहानी के ज्यादातर किरदार अब इस दुनिया में हैं भी नहीं। फिर भी आदिल शहरयार की मौत के बारे में जानना जरूरी है। दिल्ली के अमेरिकन इंटरनेशनल स्कूल के अल्मनाई बुक में आदिल ने जून 1990 में अमेरिका में अपनी गिरफ्तारी के बारे में बताया था। साथ ही बताता था कि रिहा होने के बाद भारत आकर उसने प्रियदर्शिनी नाम से एक संस्था शुरू की। अपनी कंपनी का नेटवर्थ उसने 250 मिलियन डॉलर बताया था। सॉफ्टवेयर के धंधे का जिक्र किया था। रिहा होने के पॉंच साल के भीतर इतनी बड़ी कंपनी खड़ी कर लेना चौंकाता है। दिलचस्प यह है कि उसने यह कमाल तब किया जब इंटरनेट, मोबाइल और उदारीकरण भारत से दूर थे। आज के हिसाब से उसकी कंपनी का नेटवर्थ 3500 करोड़ के करीब बैठता है। 1986 में ही बनी प्रतिष्ठित एपटेक लिमिटेड ने मार्च 2018 में अपना नेटवर्थ 243.98 करोड़ रुपए बताया था। अल्मनाई बुक में कंपनी के नेटवर्थ का जिक्र करने के महीनेभर बाद ही 1990 में 42 साल की उम्र में शहरयार की मौत हो गई। मौत का कारण हेपेटाइटिस बताया गया।

उनकी छटपटाहट जिंदा है पर हम भूल जाने के आदी हैं

उस त्रासदी की छटपटाहट आज भी पीड़ित महसूस करते हैं। इंसाफ की उनकी लड़ाई अब भी जारी है। थोड़ी सी सरकारी मदद, एक मेमोरियल पार्क और गहरे जख्मों के अलावा उन्हें कुछ हासिल नहीं हो पाया है। इधर, 2001 में यूनियन कार्बाइड को डाउ केमिकल्स ने खरीद लिया। लेकिन, भोपाल के कारखाने पर आज भी ताला पड़ा है। औद्योगिक लापरवाही कितनी भारी पड़ती है, भोपाल गैस त्रासदी इसका नमूना है। लेकिन, हम हादसों को भूल जाने के आदी रहे हैं। हमारी यही ‘खूबी’ हुक्मरानों को जिम्मेदारियों से बच निकलने का मौका देती है।

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