450 किमी पैदल चले महादेव, साथ में थीं 25 गाय, आधी रात को द्वारकाधीश का खुला कपाट: जिस लंपी से हजारों मौत, उस वायरस को हराया

गायों के लिए आधी रात खुला द्वारकाधीश का कपाट (फोटो साभार: दैनिक भास्कर/ट्रिप एडवाइजर)

गुजरात का द्वारका। भगवान श्रीकृष्ण की नगरी। 23 नवंबर 2022 की आधी रात को यहाँ द्वारकाधीश मंदिर के कपाट खुल गए। क्योंकि अपने मालिक के साथ 450 किलोमीटर की दूरी पैदल नाप 25 गाय दर्शन को पहुँचे। रिपोर्टों की माने तो ऐसा पहली बार हुआ है, जब आधी रात को मंदिर का कपाट खोला गया। गायों के लिए विशेष दर्शन की व्यवस्था भी शायद पहली बार हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार इन गायों को लेकर महादेव देसाई कच्छ से द्वारका तक आए थे। ऐसा उन्होंने अपनी मन्नत पूरी होने के बाद की। उन्होंने गायों के लंपी रोग से ठीक होने की मन्नत माँगी थी। लंपी वायरस ने गुजरात, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में तबाही मचा रखी है। रिपोर्ट के मुताबिक इस वायरस से 60 हजार से ज्यादा गायों की मौत हो चुकी है।

महादेव देसाई की गायों ने द्वारका पहुँचकर सबसे पहले भगवान द्वारकाधीश के दर्शन किए। मंदिर की परिक्रमा की। इसके बाद मालिक के साथ-साथ गायों ने भी प्रसाद खाया। वहाँ मौजूद लोगों ने गायों के लिए पानी के साथ-साथ चारे की भी व्यवस्था की।

कच्छ में रहने वाले महादेव देसाई की गोशाला की 25 गाय करीब दो महीने पहले लंपी वायरस से ग्रस्त हो गई थीं। अपनी गायों को इस हालत में देख महादेव ने भगवान द्वारकाधीश से मन्नत माँगी थी कि यदि वे ठीक हो गईं तो वे इन गायों के साथ उनका दर्शन करेंगे।

वैसे तो महादेव बुधवार (23 नवंबर 2022) दिन में ही गायों के साथ द्वारका पहुँच गए थे। लेकिन दिन में द्वारकाधीश भगवान के दर्शन के लिए हजारों लोगों की भीड़ होती है। ऐसे में अगर मंदिर तक गायों को प्रवेश दिया जाता तो व्यवस्था बिगड़ सकती थी। इसलिए मंदिर समिति ने बैठक कर फैसला किया कि रात 12 बजे गायों के दर्शन के लिए कपाट खोले जाएँगे।

महादेव का कहना है कि जब गाय लंपी वायरस से ग्रसित हो गईं तो उन्होंने भगवान द्वारकाधीश से मन्नत माँगी और सब कुछ उन पर छोड़कर गायों के इलाज में लग गए। उन्होंने कहा, “कुछ दिन बाद ही गायें ठीक होने लगीं। करीब 20 दिन बाद सभी 25 गायें पूरी तरह स्वस्थ हो गईं। इतना ही नहीं, गोशाला की दूसरी गायों में भी लंपी वायरस का संक्रमण नहीं फैला। इनके पूरी तरह स्वस्थ हो जाने के बाद मैं इन्हें लेकर पैदल ही कच्छ से द्वारका के लिए रवाना हो गया।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया