‘इस्लाम का अपमान नहीं कर सकते’ : जब सलमान रुश्दी को गलत बताना था तो ‘नास्तिक’ थे जावेद अख्तर, हमले के बाद मजहबी कट्टरपंथ का जिक्र भी भूले

जावेद अख्तर ने रुश्दी पर हमले की बचते-बचाते निंदा की

न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम के दौरान लेखक सलमान रुश्दी पर चाकुओं से हुए हमले के बाद संगीतकार जावेद अख्तर ने बहुत बचते-बचाते इस हमले की निंदा की है। उन्होंने अपने ट्वीट में न तो उस इस्लामी कट्टरपंथी का नाम लिखा है जिसने भरे मंच पर रुश्दी की गर्दन में चाकू घोंपा और न ही उन धमकियों या फतवों का जिक्र किया है जो रुश्दी के खिलाफ पिछले 30 साल से जारी हो रहे हैं।

जावेद ने बस लिखा, “मैं सलमान रुश्दी पर हुए हमले की निंदा करता हूँ जो कि किसी चरमपंथी द्वारा किया गया। उम्मीद है कि न्यूयॉर्क पुलिस हमलावर के खिलाफ कड़ा एक्शन लेगी।”

2012 में रुश्दी की किताब की निंदा

जावेद का यह रवैया कोई हैरानी वाला नहीं है। साल 2012 में एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू के दौरान वह सलमान की किताब ‘द सैटैनिक वर्सेज’ पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए लेखक को गलत कह चुके हैं।

उन्होंने कहा था, “रुश्दी ने जो किया वह अच्छा नहीं है। मैं नास्तिक हूँ लेकिन जीवन में कुछ मर्यादा और बुनियादी शऊर है। वह इस्लाम के बारे में अपमानजनक बात नहीं कह सकते। उन्होंने एक नोवेल लिखी। कल्पना आधारित। उसमें उन्होंने ऐसे ऐतिहासिक लोगों को लिया जिन्हें अरबों लोगों द्वारा सम्मान दिया जाता है। आपने उनके बारे में अपमानजनक बातें कहीं। आखिर इससे आपको क्या मिलेगा? आप ऐसा क्यों कर रहे हैं। इससे आप उन्हें अधिक मजहबी और कट्टरपंथी बना देंगे।”

जावेद ने कहा, “मैं किसी मजहब को नहीं मानता है फिर भी मुझे लगता है कि वो किताब बेहद अपमानजनक है। आप ऐसा नहीं कर सकते हैं।” ‘राइट टू ऑफेंड’ की बात आने पर वह बोले, “क्या मैं अपने पड़ोसियों के बारे में कुछ भी कह सकता हूँ? क्या मैं कह सकता हूँ वो दलाल है, उसका घर वेश्यालय?”

इस्लाम के खिलाफ बोलने वालों पर गुस्सा जाहिर करने के बाद अपनी सेकुलर व नास्तिक छवि को बनाए रखने के लिए अख्तर ने ये भी कहा था कि उन्हें उनके मजहब की आलोचना से दिक्कत नहीं है, लेकिन वो विद्वत्तापूर्ण किया जाना चाहिए।

बता दें कि सलमान रुश्दी पर हुए हमले के बाद जावेद अख्तर के आए अब के ट्वीट और उनकी पुरानी बयानबाजी जोड़कर देखें तो पता चलता है कि कैसे खुद को नास्तिक और वामपंथी कहने वाले लोग ऐसी घटनाओं के समय आरोपित का नाम छिपाने में आगे रहते हैं और सिर्फ मगरमच्छ के आँसू बहाकर ऐसा दिखाते हैं कि उन्हें हमले का दुख है। जबकि, हकीकत ये होती है कि वो उन घटनाओं को रोकने का कोई प्रयास नहीं करते, बल्कि उसे और बढ़ावा देते हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया