गन्ने से करती थीं प्रैक्टिस, बिना कोच के 45+ मीटर फेंक देती थीं 600 ग्राम का भाला: गाँव से कॉमनवेल्थ मेडल तक का सफर, भाई ने सिखाया ये खेल

उत्तर प्रदेश के मेरठ के बहादुरपुर गाँव की अन्नू रानी के परिवार का गन्ने और भाला से एक अनोखा नाता है (फाइल फोटो)

कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में जैवलिन थ्रो (Javelin Throw) में कांस्य पदक जीतने वाली अन्नू रानी (Annu Rani) किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। वह भारत की सर्वश्रेष्ठ भाला फेंकने वाली महिला खिलाड़ी हैं। उन्होंने वर्ष 2014 में हुए एशियाई गेम्स में कांस्य, 2015 की एशियाई चैंपियनशिप में कांस्य पदक और 2017 एशियन चैंपियनशिप में रजत पदक अपने नाम किया है। यही नहीं, वह वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में अपनी जगह पक्की करने वाली भारतीय भी हैं, जो देश को गौरवान्वित करता है।

उत्तर प्रदेश के मेरठ के बहादुरपुर गाँव से ताल्लुक रखने वाली अन्नू के परिवार का गन्ने और भाला से एक अनोखा नाता है। बहादुरपुर गाँव में 400 परिवार रहते हैं। गाँव तक पहुँचने के लिए गन्ने के खेतों से होकर गुजरना पड़ता है। इन्हीं में से एक खेत में अन्नू रानी ने पहली बार भाले की जगह गन्ना फेंका था। अन्नू के बड़े भाई उपेंद्र कहते हैं, “मैं खुद एक धावक था, लेकिन मेरी रुचि हमेशा से भाला फेंक में थी। मैं जब भी स्थानीय सभाओं में जाता था, भाला फेंक पर आयोजित इवेंट देखता था। अन्नू हमारे साथ क्रिकेट खेलती थी, उसके हाथ बहुत मजबूत थे। इसलिए मैंने उसे भाला फेंकने की प्रैक्टिस करने के लिए कहा।”

अन्नू भी इसके लिए मान गई। ये सब तो ठीक था, लेकिन इतनी जल्दी एक कोच और भाला खोजना सबसे बड़ी चुनौती था। इसलिए वह गाँव की चकरोड़ पर गन्ने का भाला बनाकर प्रैक्टिस करती थीं। गन्ने के बाद अन्नू ने बाँस से बने भाले को फेंकना शुरू किया। 16 वर्ष की अन्नू को उपेंद्र ने जैवलिन थ्रो की ट्रेनिंग दी। वह 2011 में उपेंद्र के मार्गदर्शन में अपना पहला राष्ट्रीय पदक जीतने में सफल रही। अन्नू के कहते हैं, “मैंने प्रतियोगिताओं में अन्य थ्रोअर्स को ही देखकर सीखा था। उस समय मैं खेल की बारीकियों को नहीं जानता था। मैं केवल इतना जानता था कि आपको दौड़ना है, अपनी बाँहों को फैलाना है और जहाँ तक हो सके भाला फेंकना है।”

किसी कोच के मार्गदर्शन के बिना ही अन्नू ने स्कूल के दिनों में में नियमित रूप से 45 मीटर से अधिक 600 ग्राम भाला फेंकना शुरू कर दिया। अन्नू के स्कूल के फिजिकल एजुकेशन के टीचर उसकी प्रतिभा से खासा प्रभावित थे। वह चाहते थे कि अन्नू जिला और राज्य स्तर के आयोजनों में भी में भाग ले। लेकिन यहाँ उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती उनके ओवर प्रोटेक्टिव भाई और पिता थे। वे नहीं चाहते थे कि वह प्रतियोगिताओं के लिए मेरठ से बाहर जाए।

उपेंद्र कहते हैं, “वह बहुत छोटी थी और हम उसे लेकर बहुत प्रोटेक्टिव थे। इसलिए हमने शिक्षक के समक्ष यह बात रखी कि वह मेरठ के बाहर केवल एक शर्त पर जा सकती है। वह शर्त यह है कि परिवार का कोई एक सदस्य उसके साथ जाएगा। इसके बाद अन्नू ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।”

भाई के मुताबिक, “अब अन्नू जब भी कभी गाँव आती है, तो वह हमेशा गाँव में स्टेडियम बनाने के बारे में बात करती है, जो उसका सपना है। हमारे पास इस गाँव में बहुत सारे एथलीट हैं, लेकिन उनके पास कोई सुविधा नहीं है।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया