एक बजट 1959 का भी: नेहरू सरकार ने रक्षा खर्च में ₹25 करोड़ की कटौती की, 3 साल बाद चीन ने हमला कर दिया

जवाहर लाल नेहरू (साभार: यूट्यूब)

2019 में मोदी सरकार प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में आई थी। उसके बाद केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज (1 फरवरी 2021) को दूसरा आम बजट पेश किया। इसी बीच कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने माँगों की भारी-भरकम सूची आगे बढ़ा दी है, जो उनके मुताबिक़ 2021-22 के बजट में शामिल की जानी चाहिए। 

राहुल गाँधी ने ट्वीट करते हुए बताया कि वह इस साल के बजट में क्या देखना चाहते हैं। कॉन्ग्रेस नेता के मुताबिक़ बजट में रोजगार पैदा करने के लिए MSMEs क्षेत्र, किसानों और कामगारों के लिए प्रावधान होने चाहिए। इसके अलावा बजट स्वास्थ्य क्षेत्र के खर्च में बढ़ोतरी पर केन्द्रित होना चाहिए, जिससे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की जान बचाई जा सके। इसके अलावा रक्षा क्षेत्र का बजट बढ़ाया जाए जिससे बॉर्डर की सुरक्षा सुनिश्चित हो। 

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रक्षा क्षेत्र का बजट बढ़ाए जाने की राहुल गाँधी की माँग का संदर्भ स्पष्ट है। पूर्वी लद्दाख स्थित एलएसी (लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल) पर भारतीय और चीनी सेना के बीच टकराव। वायनाड के सांसद ने रक्षा क्षेत्र का बजट बढ़ाने की बात की यह उल्लेखनीय है। लेकिन यही सही समय है उस दौर की ओर ध्यान देने का जब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने रक्षा बजट कम कर दिया था। उसके बाद चीन ने जो किया वह भारतीय शौर्य के इतिहास पर सबसे गहरा घाव बना।

जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की सीट चीन के हवाले करना, 1962 की हार, देश का विभाजन और भी बहुत कुछ। ऐसे तमाम गलतियों का जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि जवाहर लाल नेहरू ही हैं। 

नेहरू सरकार और 1959 का रक्षा बजट

यह जवाहर लाल नेहरू की ऐसी गलती है जिस पर चर्चा बहुत कम हुई है। जब चीन और भारत के बीच तनाव के हालात थे, तब नेहरू ने 1959 के रक्षा बजट में भीषण कटौती की थी। इसके 3 साल बाद इंडो-चाइना सीनो वॉर (Indo – Sino War) हुआ, जिसमें चीनी सैनिकों ने मोर्चा लेने वाले भारतीय जवानों को पकड़ लिया और भारत ये युद्ध बुरी तरह हार गया। 

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1959 के केन्द्रीय बजट में रक्षा क्षेत्र में भारी कटौती हुई भी थी, लगभग 25 करोड़ रुपए! इसके अलावा केन्द्रीय बजट में 82 करोड़ रुपए की कटौती की गई थी। ये नेहरू द्वारा लिए गए विकराल निर्णयों की श्रृंखला का पहला फैसला था, जिसकी वजह से भारतीय सेना 1962 के युद्ध में बुरी तरह पराजित हुई। भारत ने सिर्फ युद्ध नहीं हारा, बल्कि अक्साई चीन स्थित कई हज़ारों स्क्वायर किलोमीटर ज़मीन पर चीन ने कब्ज़ा कर लिया। 

नेहरू की अगुवाई वाली तत्कालीन सरकार को चीन के हमलों को लेकर कई चेतावनी मिल चुकी थी, 1962 से लगभग 2.5 साल पहले चीनी सैनिकों ने सीमा पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया था। इसके बावजूद जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन को सेना से राय-मशवरे और चर्चा की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। उसका नतीजा यह निकला कि भारत को अपने इतिहास की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा।

नेहरू ने सेना द्वारा दिए गए तमाम संकेतों को नज़रअंदाज़ किया और सेना को मजबूत बनाने की कोई छोटी कोशिश तक नहीं की। रिपोर्ट्स में यहाँ तक दावा किया जाता है कि नेहरू और तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन ने योजनाबद्ध तरीके से जनरल थिमैया (1957 से 1961 तक आर्मी स्टाफ के सेनाध्यक्ष) को बदनाम करने की साज़िश रची।                

1959 के पहले भी नेहरू सेना को भंग करना चाहते थे। मेजर जनरल डीके ‘मोंटी’ पाटिल (Major General DK “Monty” Palit) द्वारा लिखी गई मेजर जनरल एए ‘जिक’ रुद्रा ऑफ़ इंडियन आर्मी (Major General AA “Jick” Rudra of the Indian Army) की बायोग्राफी के मुताबिक़, “आज़ादी के कुछ साल बाद नेहरू ने कहा आखिर कैसे भारत को एक ‘डिफेंस प्लान’ की ज़रूरत है। अहिंसा हमारी नीति है। हमें सेना के लिहाज़ से कोई ख़तरा नहीं नज़र आता है। सेना को स्क्रैप (scrap) करो। सुरक्षा संबंधी ज़रूरतें पूरी करने के लिए पुलिस है।” 

हार के लिए ठहराया था नेहरू को जिम्मेदार

पिछले साल भारत पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध के नायक एयर मार्शल डेंजिल कीलर (Air Marshal Denzil Keelor) का वीडियो वायरल हुआ था। जिसमें उन्होंने नेहरू सरकार द्वारा की गई गलतियों का विस्तार से उल्लेख किया था जिसकी वजह से भारतीय सेना 1962 का युद्ध हार गई थी। 

वीडियो में एयर मार्शल डेंजिल कीलर 1962 के भारत-चीन युद्ध पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं, “नेहरू की गलतियों के चलते भारतीय सेना जंग हारी। नेहरू को कूटनीति की पड़ी थी और उन्होंने सेना की तरफ कभी ध्यान दिया ही नहीं, जिसकी वजह से भारत को हार का सामना करना पड़ा। हिमालय की चोटी पर पड़ने वाली सर्दी के दौरान भारतीय सेना के जवानों के पास ठंड के कपड़े तक नहीं थे।” 

सबसे अहम बात ये है कि जवाहर लाल नेहरू की वजह से भारत को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ। चीन द्वारा भारतीय सीमा पर किए गए कब्ज़े को खारिज करते हुए नेहरू कहते थे, “लद्दाख और अरुणाचल की अनुपजाऊ ज़मीन और पहाड़ पर घास का एक तिनका भी नहीं उगता है।”  

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया