बैगा, पेपर मेसी, बावन बूटी… देश का हुनर ही जिनकी जिंदगी, उनको भी पद्म पुरस्कार: मिलिए उनसे जो चुपचाप करते रहे काम, अब मोदी सरकार ने दी पहचान

सुभद्रा देवी, कपिल देव प्रसाद और जोधइया बाई बैगा को भी पद्म पुरस्कार (फोटो क्रेडिट-अमर उजाला/न्यूज 18)

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या (25 जनवरी 2023) पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई। साल 2023 के लिए 106 लोगों को पद्म अवॉर्ड देने की घोषणा हुई है। 6 करे पद्म विभूषण, 9 को पद्म भूषण और 91 पद्म श्री मिला है। इनमें 19 महिला हैं। 7 लोगों को मरणोपरांत यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलेगा।

जिनलोगों को पद्म पुरस्कार देने की घोषणा की है उनमें कुछ बड़े और चर्चित नाम हैं, जबकि कुछ के बारे में बेहद कम लोग जानते हैं। इन गुमनामों के कार्यों को सम्मानित कर मोदी सरकार ने उन्हें नई पहचान देने का काम किया है। इनमें जोधइया बाई बैगा, सुभद्रा देवी और कपिल देव प्रसाद भी शामिल हैं।

पहले बात करते हैं मध्य प्रदेश के उमरिया की रहने वाली 84 साल की जोधइया बाई बैगा की। इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा। उन्होंने विलुप्त की कगार पर पहुँच चुकी बैगा चित्रकला को अपनी मेहनत व लगन के माध्यम से वैश्विक पहचान दिलाई। वर्ष 2022 में महिला दिवस (8 मार्च) के उपलक्ष्य पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद उन्हें ‘नारी शक्ति सम्मान’ से सम्मानित कर चुके हैं। बैगा जनजाति से ताल्लुक रखने वाली जोधइया बाई ने इस कला को समाप्त होता देख 63 वर्ष की उम्र में इसे सीखा और आधुनिक पद्धति से इसे फिर से उकेरना शुरू कर दिया। बैगा कला के अंतर्गत भगवान शिव और बाघ के चित्र बनाए जाते हैं।

जोधाइया बाई की कला को विदेशों में भी पहचान मिल चुकी है। इटली, फ्रांस की आर्ट गैलेरियों में भी उनकी कला का प्रदर्शन हो चुका है। हालाँकि जोधइया बाई ने अपना जीवन काफी गरीबी में गुजारा है। जोधइया बाई जब 30 वर्ष की थीं तभी उनके पति का निधन हो गया था। इसके बाद उन्होंने गोबर के उपले और लकड़ियों को बेच कर अपना जीवन गुजारा। इस मौके पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें बधाई दी है। कहा है कि यह आदिवासी समाज के लिए काफी गर्व की बात है।

बिहार की सुभद्रा देवी को पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा। सुभद्रा देवी को पेपर मेसी कला के लिए यह पुरस्कार मिला है। यह कला मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर में प्रसिद्ध है। दरअसल पेपर मेसी कला के अंतर्गत कागज को गला कर उसकी लुगदी बनाई जाती है और फिर नीना थोथा व गोंद मिलाकर तरह-तरह की कलाकृतियाँ बनाई जाती है।

सुभद्रा देवी को अपनी कला के लिए वर्ष 1980 में राज्य पुरस्कार और 1991 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। 90 वर्ष की सुभद्रा अब अपने बेटे के पास दिल्ली में रहती हैं और यहाँ भी इस कला को फैलाने का काम करती हैं।

वहीं 55 साल से बुनकरी का काम कर रहे बिहार के नालंदा के कपिलदेव प्रसाद को भी पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। वह 15 वर्ष की उम्र से ही बुनकर का काम कर रहे हैं। वर्ष 2017 में देश के बेहतरीन बुनकरों के लिए हुई प्रतियोगिता में कपिलदेव प्रसाद को भी चुना गया था। वह आज भी बुनकरी का काम करते हैं और लोगों को इसके लिए ट्रेनिंग भी देते हैं। उन्हें खास 52 बूटी की साड़ी बनाने में उनकी महारत के लिए यह पुरस्कार दिया जा रहा है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया