कारसेवकों की सेवा में जुटे थे ग्रामीण, गाँव को घेर मुलायम की पुलिस ने की फायरिंग: महिलाओं से हुई थी बदसलूकी, सत्यवान सिंह हो गए थे बलिदान

कारसेवकों को पुलिस से बचाते हुए बलिदान हुए सत्यवान सिंह के परिजनों को नहीं सौंपी गई थी लाश, जेल से लौट कर की गई थी तेरहवीं

अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को राम जन्मभूमि पर बन रहे भव्य मंदिर में भगवान रामलला की की प्राण-प्रतिष्ठा होने जा रहा है। इसको लेकर देश और दुनिया भर में जो राममय माहौल है, उसके पीछे ज्ञात-अज्ञात रामभक्तों का बलिदान एक बड़ा कारण है। ऑपइंडिया ने अयोध्या की ग्राउंड रिपोर्ट में उन तमाम गुमनाम रामभक्तों की तलाश की और उनसे अथवा उनके परिजनों से बात की।

इस दौरान ऑपइंडिया की टीम ने उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार के दौरान 22 अक्टूबर 1990 में हुए पहले नरसंहार के बारे में बताया था। इस नरसंहार में कारसेवकों की तलाश में बस्ती जिले के सांडपुर गाँव में घुसी पुलिस ने विरोध कर रहे ग्रामीणों पर फायरिंग की थी। इस फायरिंग में 3 रामभक्तों की जान चली गई थी और कई अन्य घायल हुए थे।

पिछली रिपोर्ट में हमने बलिदान हुए राम चन्दर यादव के बारे में बताया था। इसी नरसंहार में दूसरे बलिदानी का नाम है सत्यवान सिंह। ऑपइंडिया ने सत्यवान सिंह के घर जाकर जानकारी जुटाई। सत्यवान सिंह एक मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखते थे। परिवार की आजीविका का साधन खेती-बाड़ी है। सांडपुर गाँव में हमें सत्यवान सिंह के भाई सत्यप्रकाश सिंह मिले।

रामभक्तों को गाँव में रोकने से भड़का था प्रशासन

सत्यप्रकाश सिंह ने बताया कि 22 अक्टूबर 1990 को हुए नरसंहार के वे चश्मदीद हैं। उन्होंने कहा कि उस समय सांडपुर गाँव में बाहर से कई कारसेवक आए थे, जिनके रहने-खाने आदि की व्यवस्था गाँव वालों ने की थी। तब अयोध्या आने-जाने के तमाम रास्ते बंद कर दिए गए थे। हालाँकि, सांडपुर इसके लिए उपयुक्त स्थान था।

सांडपुर गाँव के पास नदी होने की वजह से कारसेवक इस नदी को माध्यम बनाकर नाव के जरिए अयोध्या में घुस रहे थे। नाव ग्रामीण उपलब्ध करा रहे थे। इसी बीच दुबौलिया थाना के प्रभारी राम चन्दर राय को किसी मुखबिर ने इसकी जानकारी दे दी। सूचना मिलते ही पुलिस के साथ-साथ PAC और पैरामिलिट्री ने पूरे गाँव को घेर लिया।

बुजुर्गों को पीटकर पूछ रहे थे कारसेवकों का पता

सत्यप्रकाश सिंह ने बताया कि उनके गाँव सांडपुर में सुरक्षाबल ने सुबह-सुबह लगभग 5 बजे हमला किया। ग्रमीणों को पहले ही पुलिस की दबिश की सूचना मिल गई थी। इसलिए सभी कारसेवकों को रात में ही उनके गंतव्य की तरफ भेज दिया गया था। जब सुरक्षाबलों ने गाँव में घुसकर कारसेवकों को खोजना शुरू किया तो एक भी कारसेवक नहीं मिले।

गाँव में कारसेवकों को ना पाकर पुलिस बल घरों में घुसा और बुजुर्गों को पीट-पीट कर उनका पता पूछने लगा। पुलिस टीम में दुबौलिया के थाना प्रभारी राम चन्दर राय, थाना प्रभारी छावनी, थाना प्रभारी कप्तानगंज, थाना प्रभारी हरैया आदि अधिकारी मौजूद थे। इन सभी को बस्ती के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक IPS सुभाष गुप्ता निर्देश दे रहे थे।

ग्रामीणों ने किया विरोध तो बरसा दी गोलियाँ

सत्यप्रकाश सिंह ने आगे बताया कि बुजुर्गों को पीटने के बाद पुरुष पुलिसकर्मियों ने सांडपुर गाँव की महिलाओं को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। दबिश देने वाली टीम में कोई भी महिला स्टाफ नहीं थी। उस समय गाँव में अधिकतर लोग सो रहे थे। शोरगुल सुनकर न सिर्फ सांडपुर, बल्कि आसपास के गाँवों के लोग भी जमा हो गए।

जब ग्रामीणों को पता चला कि प्रताड़ित हो रहे लोगों का दोष केवल रामभक्ति है तो लोगों में आक्रोश फ़ैल गया। तब पुलिस ने कुछ ही देर में बिना किसी चेतावनी के ग्रामीणों पर गोलियाँ बरसा दीं। सत्यप्रकाश सिंह का दावा है कि पुलिस बल ने हवा में गोलियाँ बरसाने के बजाए सीधे ग्रामीणों की छाती और सिरों को निशाना बनाकर गोलियाँ मारीं। इस दौरान महिलाएँ और बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया।

लगभग 35 वर्षीय सत्यवान सिंह भी उन तमाम ग्रामीणों में एक थे, जो पुलिस बर्बरता का विरोध कर रहे थे। इसी बीच पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के सत्यवान सिंह के सीने में गोली मार दी। गोली लगते ही सत्यवान सिंह जमीन पर गिर पड़े और दर्द से कराहने लगे। सत्य प्रकाश सिंह अपने भाई को बचाने दौड़े तो उनको भी निशाना साधकर गोली मारी गई। हालाँकि, गोली उनके कानों को छूते हुए निकल गई।

घरवालों को नहीं दी लाश, भाई को भी भेजा जेल

सत्यप्रकाश सिंह के मुताबिक, उनके भाई सत्यवान सिंह और राम चन्दर यादव का शव आसपास ही पड़ा था। दोनों की लाशों को पुलिस ने समेटा और अपने साथ ले गए। इन शवों को बस्ती के जिला अस्पताल में परिजनों को सूचित किए बिना ही पोस्टमार्टम करवाया गया और शहर के अमहट श्मशान घाट पर घर वालों को सूचित किए बिना ही जला दिया।

सत्यप्रकाश सिंह के अनुसार, इस गोलीकांड के बाद भी पुलिस गाँव में घुसकर दबिश दे रही थी। इस कारण से गाँव के अधिकांश लोग पुलिस के डर से घर छोड़कर फरार थे। घरों में महिलाएँ, बच्चे और बुजुर्ग ही रह गए थे। बुजुर्गों में भी वही लोग घरों में बचे थे, जो बीमारी अथवा अन्य कारणों से चलने-फिरने में असमर्थ थे।

ऐसे में पुलिस की टीमें घर में घुसकर बुजुर्गों की चारपाई पलट देती थीं और महिलाओं से अभद्रता करती थी। आखिरकार गाँव के तमाम लोग एक-एक कर के गिरफ्तार हो गए। उन्हें बुरी तरह से टॉर्चर किया गया और फिर जेल भेज दिया गया। अधिकतर ग्रामीणों की जमानत हाईकोर्ट से हुई थीं। जमानत के बाद भी कई लोग पुलिस के डर से कई दिनों तक घर नहीं लौटे।

जेल काटकर लौटे, फिर की भाई की तेरहवीं

जेल गए पीड़ितों में सत्यवान सिंह के भाई सत्यप्रकाश सिंह भी थे। सत्यप्रकाश सिंह ने बताया कि उन्होंने खुद को बेकसूर बताते हुए तब के हर सक्षम नेता और अधिकारी से पुलिस के अत्याचार की शिकायत की थी, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। सत्यप्रकाश सिंह के जेल से निकलने में काफी दिन बीत गए थे। तब अपने भाई के अंतिम संस्कार की अन्य विधियाँ काफी दिन बाद पूरी करवाए।

सत्यप्रकाश सिंह आज भी बस्ती जिला अदालत में साल 1990 में उन पर लादे गए मुकदमे को लड़ रहे हैं। उनके साथ-साथ उस वक्त के पीड़ित अन्य ग्रामीण भी अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। सत्यप्रकाश सिंह को आज भी इस बात का मलाल है कि उनके गाँव में हुए नरसंहार में शामिल पुलिसकर्मियों पर आज तक कोई एक्शन नहीं लिया गया।

सत्यप्रकाश सिंह अपने गाँव में चली गोली और उसमें मारे गए लोगों का गुनहगार मुलायम सिंह यादव को मानते हैं। उन्होंने कहा कि मुलायम ने ऐसा सिर्फ मुस्लिमों को खुश करने के लिए किया था। हालाँकि, सत्यप्रकाश सिंह राम मंदिर के निर्माण से बेहद खुश हैं औऱ भाई के बलिदान को सार्थक बता रहे हैं। उनकी इच्छा है कि निर्माणाधीन मंदिर में उनके भाई सहित सभी बलिदानियों की स्मृतियों को सहेजा जाए।

इसी श्रृंखला में ऑपइंडिया की टीम आगे की रिपोर्ट में सांडपुर गाँव में हुए नरसंहार के अन्य पीड़ितों के साथ-साथ बलिदानियों के परिजनों पर चल रहे केस को लेकर विस्तार से बताएगी।

राहुल पाण्डेय: धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।