‘Nimbooz’ फ्रूट जूस है या नींबू-पानी? अब सुप्रीम कोर्ट करेगा फैसला, 7 साल से लंबित है मामला

सुप्रीम कोर्ट करेगा निंबूज पर सुनवाई (फाइल फोटो)

अगर आप भी इस बात को लेकर संशय में हैं कि निंबूज (Nimbooz) नींबू पानी है या फ्रूट जूस? तो अब आपको ये सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) बताएगा। दरअसल सुप्रीम कोर्ट इस बात पर सुनवाई करने के लिए तैयार हो गया है कि लोकप्रिय सॉफ्ट ड्रिंक ‘निंबूज’ नींबू पानी है या फ्रूट पल्प या जूस बेस्ड ड्रिंक है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए जाने के बाद, इस प्रोडक्ट पर लगाए जाने वाले उत्पाद शुल्क (Excise Duty) की सही मात्रा निर्धारित होगी। 

ये याचिका ‘आराधना फूड्स’ नाम की एक कंपनी ने दायर की है जो चाहती है कि इस ड्रिंक को ‘फ्रूट पल्प या फ्रूट जूस बेस्ड ड्रिंक’ की वर्तमान स्थिति की बजाए नींबू पानी के रूप में वर्गीकृत किया जाए। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, याचिका पर जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्न की दो-न्यायाधीशों की पीठ सुनवाई करेगी। अदालत ने 11 मार्च को सुनवाई की घोषणा की थी। मामला मार्च 2015 से लंबित है और अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर ‘निंबूज’ पर फैसला होगा।

दरअसल इसमें सेंट्रल एक्साइज और आराधना फूड कंपनी के बीच उत्पाद शुल्क की श्रेणी को लेकर विवाद है। उत्पाद शुल्क विभाग का कहना था कि निंबूज को सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स हैदराबाद यानी CETH 2022 के प्रावधान 90/20 के तहत फलों के पल्प और रस से बने पेय के तहत आना चाहिए जबकि अराधना फूड्स की दलील थी कि ये तो सिर्फ नींबू पानी है। इसे तो CETH 2022 के प्रावधान 10/20 के तहत सेंट्रल एक्साइज टैरिफ एक्ट 1985 के फर्स्ट शेड्यूल में होना चाहिए। 

आराधना फूड्स की दलील है कि उत्पाद शुल्क विभाग अप्रैल से दिसंबर 2013 में उनकी दलील मान भी चुका है लेकिन उसके बाद विभाग अपनी जिद पर अड़ गया। उत्पाद शुल्क विभाग ने ऐसे ही अन्य उत्पादों का हवाला देते हुए पेप्सिको के इस उत्पाद थम्स अप निंबूज को भी फलों के गूदे और रस से बने उत्पाद की श्रेणी में रखते हुए उसी मुताबिक जीएसटी लगाने की दलील दी तो निर्माता कंपनी ने कोर्ट का रुख किया। 

बता दें कि ‘निंबूज’ को 2013 में पेप्सिको द्वारा लॉन्च किया गया था और ड्रिंक को बगैर फिज के असली नींबू के रस से निर्मित कहा गया था। इससे इसके वर्गीकरण के संबंध में बहस छिड़ गई – क्या इसे नींबू पानी या फ्रूट जूस/ फ्रूट पल्प पर आधारित रस माना जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में अप्रैल में याचिका पर सुनवाई होने की संभावना है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया