शिवप्रताप दिन: 35000 इस्लामी आक्रांताओं के सामने सिर्फ 3000 मराठा सैनिक… छत्रपति शिवाजी महाराज ने ऐसे की मराठा साम्राज्य की स्थापना

शिवाजी ने 10 नवंबर 1659 को अफजल खान से विश्वासघात का लिया था बदला

आज ही के दिन 10 नवंबर 1659 मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिलशाही सेनापति अफजल खान की सेनाओं के बीच महाराष्ट्र के सतारा शहर के पास प्रतापगढ़ की लड़ाई लड़ी गई थी। लड़ाई में मराठों की संख्या शिवाजी के पक्ष में नहीं थी, इसके बाद भी विजय मराठों की हुई थी और अंतत: मराठा साम्राज्य की स्थापना हुई थी।

10 नवंबर को छत्रपति शिवाजी महाराज ने जिस साहस और कूटनीतिक सूझबूझ का उदाहरण पेश किया था, जिस एक घटना ने मराठा साम्राज्य की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उस 10 नवंबर को “शिवप्रताप दिन (ShivpratapDin)” के तौर पर याद किया जाता है।

1657 में, मुगल सम्राट औरंगजेब ने दक्कन छोड़ने और उत्तर की ओर बढ़ने का फैसला किया था। वहीं शिवाजी ने अपने मराठा साम्राज्य का विस्तार करने के लिए कोंकण और अन्य आदिलशाही राज्यों पर जीत हासिल करना शुरू कर दिया।

बीजापुर सल्तनत में आदिलशाही वंश के सेनापति अफजल खान ने शिवाजी की सेना को रोकने के लिए खुद मोर्चा संभाला। उसने पहले शिवाजी के भाई, संभाजी शाहजी भोसले को विश्वासघात कर मार डाला था, जब वह केवल 33 वर्ष के थे। खान ने मंदिरों को नष्ट करना शुरू कर दिया था।

खान की रणनीति थी कि शिवाजी को पठार से हटाकर दक्कन के मैदानी इलाकों में लाया जाए। चट्टान क्षेत्र में शिवाजी अपनी रणनीति की वजह से अधिक मजबूत थे। खान 20,000 से अधिक आदिलशाही घुड़सवार सेना और 15,000 पैदल सेना के साथ शिवाजी से युद्ध लड़ने पहुँचे। वहीं शिवाजी महज 3000 पैदल सेना से लैस थे। खान और शिवाजी प्रतापगढ़ की तलहटी में मिले। शिवाजी ने खान के पास एक दूत भेजा कि वह युद्ध नहीं करना चाहते हैं और शांति चाहते हैं।

उन्होंने केवल 10 अंगरक्षकों के साथ निहत्थे मिलने का फैसला किया था, जो दो आदमियों से एक तीर की दूरी पर रहेंगे। एक विशाल कद काठी के व्यक्ति, खान ने शिवाजी को गले लगाया, लेकिन उसने विश्वासघात किया और उन्हें तलवार से मारने की कोशिश की। हालाँकि, शिवाजी भी सशस्त्र आए थे और, जिन्होंने एक बाघनख छुपाया हुआ था और उसी बाघनख से खान का पेट फाड़ मौत के नींद सुला दिया। खान ज्यादा सैनिकों के साथ आए थे, फिर भी मराठे विजयी हुए।

बाघनख

शिवाजी पर अफजल के अंगरक्षक सैय्यद बंदा ने हमला किया था, लेकिन उनके (शिवाजी) के भरोसेमंद अंगरक्षक जीवा महला ने शिवाजी की जान बचाते हुए उन्हें मार डाला था। शिवाजी के पराक्रम और साहस की ऐसी ही कई गाथा है कि पूरे भारत में उनका सम्मान किया जाता है।

हालाँकि अफजल खान की उचित अंत्येष्टि के अधिकार का सम्मान करते हुए उसे उसी स्थान पर दफना दिया गया और उसके ऊपर एक पत्थर रख दिया गया था।

दो दशक पहले तक किला परिसर में अफजल खान की कब्र पर किसी का ध्यान नहीं गया था। वर्ष 2000 के आसपास कुछ मुस्लिमों द्वारा कब्र पर दावा करने और उस पर मजार बनाने के फैसले के बाद इसे प्रमुखता मिली। धीरे-धीरे एक दशक में कब्र पर चारों तरफ से एक आर्केड के साथ एक स्थायी संरचना खड़ी कर दी गई। कहा जाता है कि एस्बेस्टस शीट्स की छत से ढके इंटीरियर में कमरे बने हैं और यहाँ घुमंतू मुस्लिम मौलानाओं को शरण दी जाती है।

यह अवैध निर्माण ‘हजरत मोहम्मद अफजल खान मेमोरियल ट्रस्ट’ के नाम से किया गया था और इसके तहत किले के लगभग 5,500 वर्ग फुट जगह पर कब्जा कर लिया था। इसके अलावा, वर्ष 2004 में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने ASI नियंत्रित इस जगह की भूमि पर अवैध कब्जे के खिलाफ आपत्ति उठाई। VHP ने कहा कि अगर कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन किया जाएगा। इसके बाद महाबलेश्वर पुलिस ने किले और मकबरे के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी थी।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने तब राज्य सरकार को अफजल खान की कब्र के आसपास अवैध निर्माण को हटाने का निर्देश दिया था। बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एससी धर्माधिकारी ने कहा था, “अफजल खान की कब्र के आसपास के अतिक्रमण को हटा दें या वन अधिकारियों को स्थायी रूप से जंगल में भेज दें, अगर वे अपना कर्तव्य नहीं निभा सकते हैं।” सतारा जिले के किला प्रतापगढ़ की तलहटी में अफजल खान की कब्र में हाल के वर्षों में वास्तव में तेजी से बदलाव हो रहे थे। इस्लामवादियों ने इस स्थान पर मेलों का आयोजन भी शुरू कर दिया था।

ताजा जानकारी के अनुसार, महाराष्ट्र पुलिस ने गुरुवार (10 नवंबर 2022) को सतारा स्थित फोर्ट प्रतापगढ़ (महाबलेश्वर) में अफजल खान की कब्र के पास अवैध निर्माण को हटाने के लिए अभियान शुरू किया है। वहीं मनसे के प्रवक्ता गजानन काले ने अफजल खान को महिमा मंडित करने वालों पर बुलडोजर चलाने की माँग की है। उन्होंने कहा, ”अफजल खान की कब्र के सामने हुए अनधिकृत निर्माण को जैसे हटाया गया ठीक वैसे ही अफजल खान को महिमा मंडित करने वालों पर बुलडोजर भी चलाया जाए। अफजल खान की विचारधारा का अतिक्रमण हटेगा तो वह अच्छा दिन होगा। अगर एनसीपी के जितेंद्र आव्हाड इस कदम के खिलाफ अनशन पर बैठना चाहते हैं तो उन्हें अनशन पर बैठना चाहिए। सरकार को बधाई।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया