वरुण ग्रोवर की ‘कागज नहीं दिखाएँगे’ को तगड़ा तमाचा, तहजीब के शहर लखनऊ से

'कागज नहीं दिखाएँगे' को दिखाया आईना

वरुण ग्रोवर लेखक हैं। मुंबईया फिल्मों के लिए भी कुछ लिखा है इन्होंने। लेकिन सबसे बड़ी पहचान है इनका वामपंथी होना। फिलहाल ‘कागज नहीं दिखाएँगे’ नाम की एक कविता गाकर वामपंथी हृदय सम्राट बने बैठे हैं। कुछ दिनों में जब CAA या NRC का भ्रमजाल टूटेगा तो फिर इन्हें भी अन्य वामपंथियों की तरह फेंक दिया जाएगा।

वरुण ग्रोवर की कविता ‘कागज नहीं दिखाएँगे’ को काटती कई कविताएँ आईं। कुछ बहुत अच्छी भी, कुछ औसत। इन्हीं बहुत अच्छी कविताओं में से एक कविता है ऊर्वी सिंह की। यह लखनऊ के एक कॉलेज में अंग्रेज़ी की सहायक अध्यापिका हैं। सुनिए उनकी कविता, उन्हीं की आवाज में, जो तोड़ती है छद्म लिबरलों और स्वघोषित बौद्धिकता का भाव पाले बैठे लोगों का घमंड।

ऊर्वी सिंह की इस कविता का हमने ट्रांसक्रिप्ट भी लिखा है। नीचे पढ़ सकते हैं।

वो कागज नहीं दिखाएँगे
अपने स्टैंड-अप पे आप से आईडी कार्ड मंगवाएँगे
पर खुद कागज नहीं दिखाएँगे
वो डर को चारों ओर फैलाएँगे
वो चुनी हुई सरकार को गाली देकर अपनी दुकान चलाएँगे
वो कागज नहीं दिखाएँगे

वो जनता को हिंदू एक्सट्रिमिजम और माइनॉरिटी ऑप्रेशन की कपोल-कल्पित गाथाएँ सुनाएँगे
डेमोक्रेसी की ऐसी तैसी करने वाले डेमोक्रेसी समझाएँगे
वॉयलेंस, आगजनी और सोशल बुलिंग को ये सही ठहराएँगे
जाहिर सी बात है ये कागज नहीं दिखाएँगे

क्वासी इंटेलेक्चुअलिजम के मारे कागज नहीं दिखाएँगे
ये घर में बैठे-बैठे आर्म चेयर एक्टिविस्ट बने रह जाएँगे
इनकी कविता गाते-गाते लाठियाँ आप और हम खाएँगे
फिर आपकी मेरी चोटों पे ये और कविताएँ कह जाएँगे
ब्रो… ये कागज नहीं दिखाएँगे

ये एयरपोर्ट पर जाएँगे
पासपोर्ट या बोर्डिंग पास नहीं दिखाएँगे
ये एयरपोर्ट पर जाएँगे
पासपोर्ट या बोर्डिंग पास नहीं दिखाएँगे
ये दर्जी को सिलाई की रिसीट दिए बिना ही कपड़ा घर ले आएँगे
वो मेट्रो स्टेशन पे बिना पास चढ़ जाएँगे
डू यू नो व्हाय? बिकाउज ब्रो… वो कागज नहीं दिखाएँगे

इस शहर में ताजिया पे हिंदू बालकनी से फूल गिराते हैं
इस शहर में ऋतु का फेवरिट कुर्ता सलीम मियाँ के यहाँ सिलवाते हैं
रिचर्ड, रिता और रिजवान मिलकर क्रिसमस पे ‘गंजिंग’ करके आते हैं
वहाँ ये बताएँगे कि हम कागज नहीं दिखाएँगे

खैर… इससे पहले कि आपके दिमाग की नसें लगे फटने
अमाँ मियाँ, इनसे पूछो – तुमको कागज दिखाने को कहा आखिर किसने?

ऊर्वी सिंह की कविता फेसबुक पर शेयर करने वाले शख्स ने जो इनके बारे में लिखा है, वो भी मजेदार है, पढ़ने लायक है।

यह मोहतरमा Urvi Singh जी हैं। लखनऊ की शान हैं, और नाज़ुक लखनवी तहज़ीब और अवध की बेलौस ठसक दोनों अपनी ज़बान के सिरे पर अद्भुत संतुलन के साथ एक साथ टिकाए रखती हैं। ग़ज़ब की उर्दू, शुद्ध हिन्दी और धड़ल्ले की अवधी में तो पारंगत हैं ही, लेकिन लखनऊ के मशहूर सेंट ऐग्नेस गर्ल्स कॉन्वेंट की प्रतिभाशाली छात्रा रही होने के कारण अंग्रेज़ी पर ऐसी क़ातिलाना पकड़ रखती हैं कि जब चाहती हैं हमें ईर्ष्या से भर देती हैं। फ़िलहाल लखनऊ के एक कॉलेज में अंग्रेज़ी की सहायक अध्यापिका हैं।


हमेशा फ्रंट फुट पर आकर खेलती हैं, और पहली ही बॉल पर सिक्स जड़ कर उसे ‘नो बॉल’ क़रार दिलवाती हैं, फिर दोबारा उसी बॉल को चार रन के लिए बाउंड्री पार भेजने के बाद उसे फिर से ‘वाइड बॉल’ घोषित करवाती हैं, और अंततः उसी पहली ही बॉल पर 3 रन बटोरती हैं। इस तरह हर एक बॉल पर 15 रन लेना इनका बैटिंग ऐवरेज है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया