ज्ञानवापी में 128 फीट ऊँचा था आदि विशेश्वर का मंदिर, 8 फीट का शिखर और 8 मंडप थे: जानिए औरंगजेब के तोड़ने से पहले कैसा दिखता था

आदि विश्वेश्वर मंदिर का मॉडल तैयार (फोटो साभार: @Uday_T2)

वाराणसी का जो ज्ञानवापी ढाँचा है, वह कभी आदि विशेश्वर का मंदिर था। क्या आप जानते हैं कि औरंगजेब के हुक्म पर तोड़ा गया यह मंदिर कैसा दिखता था? इसका जवाब तलाशते हुए एक भव्य मॉडल तैयार किया गया है। इसे देशभर में प्रदर्शित किया जाएगा ताकि लोग यह जान सके कि औरंगजेब द्वारा तोड़ दिया गया मंदिर कितना भव्य, दिव्य और विशाल था।

लकड़ी के इस मॉडल को तैयार करने में करीब दस महीने लगे हैं। ज्ञानवापी मुकदमें से जुड़े लोगों ने ग्रन्थों, पुस्तकों के अध्ययन और उपलब्ध नक्शों के आधार पर यह मॉडल तैयार करवाया है। पांडेयपुर के रहने वाले अमर अग्रवाल ने इसे बनाया है। ज्ञानवापी केस से जुड़े डॉ. राम प्रसाद सिंह के अनुसार वर्ष 1669 से पहले ज्ञानवापी में भगवान शिव का भव्य मंदिर हुआ करता था। धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रन्थों में इस बात का उल्लेख मिलता है। बनारस के इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले इतिहासकार एएस अल्टेकर व जेम्स प्रिंसेप ने भी विश्वेश्वर मंदिर के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई है। प्रिंसेप ने तो मंदिर का नक्शा भी तैयार किया था।

अध्ययनों से पता चलता है कि भगवान आदि विश्वेश्वर के मंदिर की ऊँचाई 128 फीट और चौड़ाई 136 फीट थी। तीन मंजिला मंदिर में आठ फीट ऊँचा शिखर था। मंदिर में आठ मंडप थे। पश्चिम दिशा में स्थित श्रृंगार मंडप के पास प्रवेश द्वार था। उत्तर दिशा में नंदी विराजमान थे और दक्षिण दिशा में स्थित कुंड में मंदिर का जल प्रवाहित होता था।

श्रृंगार गौरी मामले से जुड़े सोहनलाल आर्य का कहना कि इतिहास की पुस्तकों में जानकारी मिलती है कि औरंगजेब ने चुनार से तोप मंदिर के पश्चिमी दीवार को उड़वा दिया था। मंदिर के गर्भगृह की ओर जाने वाले मार्ग को बड़े-बड़े पत्थरों से ढक दिया गया था। ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा है कि काफी अध्ययन और रिसर्च के बाद यह मंदिर का मॉडल तैयार किया गया है। इसे पूरी तरह तैयार होने में कुछ वक्त और लगेगा। मॉडल पूरी तरह से तैयार हो जाने के बाद भव्य आयोजन के तहत इसे लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खाँ द्वारा लिखित ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस ध्वंस का वर्णन है। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी।

1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहाँ विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई। नंदी प्रतिमा का मुख उल्टा होने का रहस्य यही है कि पहले मंदिर जहाँ थी, वहाँ मस्जिद बना ली गई।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया