चर्च की वेदी पर लिटा कर ननों से रेप, मार डाले सारे पादरी: बातु खान की हँसती फौज और जिंदा जले लोगों की कहानी

रियाज़ान और मंगोलों के युद्ध का एक दृश्य (बाएँ), बातु खान (दाएँ)

पूरी दुनिया के ईसाई क्रिसमस के खुमार में डूबे हैं। लेकिन इससे पहले की कुछ कड़वी यादें भी हैं। जिस ब्रिटिश राज में क्रिसमस दुनिया भर में लोकप्रिय हुआ, इस्लामी आक्रांताओं के राज में इसी दौरान कभी खून की नदियाँ बही थी। पश्चिमी रूस में एक शहर है रियाज़ान (Ryazan), जो ऐतिहासिक इमारतों के लिए जाना जाता है। लेकिन, आज भी ये शहर बातु खान का नाम सुनते ही थर्रा उठता है। मंगोलों का हमला बुरी यादों में बसा है।

रियाज़ान के बारे में बता दें कि ये रूस की राजधानी मॉस्को से 196 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में ओका नदी के किनारे स्थित है। इसके बगल में ही पुराना रियाज़ान स्थित है, जो रूस का पहला शहर था जिसे मंगोलों ने तबाह किया। आज साढ़े 5 लाख की जनससंख्या वाला रियाज़ान सेन्ट्रल रूस के 5 बड़े शहरों में से एक है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस क्षेत्र को जर्मनी की बमबारी का भी सामना करना पड़ा था। उससे सैकड़ों वर्ष पहले बातु खान के नेतृत्व में मंगोलों ने रियाज़ान पर हमला किया था।

बात उस समय की है, जब पूरी दुनिया में मंगोल सबसे शक्तिशाली लड़ाका हुआ करते थे और चंगेज खान का नाम सुनते ही सब काँप उठते थे। जिस शहर में वो घुसता, वहाँ के लोगों के पास दो ही विकल्प होता था- या तो उसकी सेना में शामिल हों, या फिर मारे जाएँ। हाँ, महिलाओं के पास कोई विकल्प नहीं होता था। चंगेज खान ने खुद अपने जीवनकाल में दसियों हजार महिलाओं का बलात्कार किया था। मुग़ल तैमूर और चंगेज खान के ही वंशज थे।

अपने सबसे बड़े बेटे जोची की मौत के बाद चंगेज खान ने ‘Golden Horde (उत्तर-पूर्वी मंगोल साम्राज्य)’ का हिस्सा अपने पोते और जोची के बेटे बातु खान को दे दिया। सन 1227 में चंगेज खान की मौत हो गई और वोल्गा नदी के पश्चिमी इलाके पर बातु खान का राज हुआ, जबकि वोल्गा से लेकर दुनिया के सबसे बड़े झीलों में से एक बलख़श तक उसके भाई ओरडा ने शासन किया। इसके बाद मंगोलों ने यूरोप की ओर कदम बढ़ाए।

बातु खान के आक्रमण के डेढ़ दशक पहले के रूस के इतिहास लेखकों से पता चलता है कि इस अचानक आक्रमण के बारे में उन्हें कुछ भी पता नहीं था कि ये कौन लोग हैं, कहाँ से आ धमके हैं और किस मजहब का पालन करते हैं। तब के रूसी इतिहासकार लिखते हैं कि भगवान या बहुत विद्वान लोगों को ही पता है कि ये अनजान लोग कौन हैं। वहाँ के जनजातियों ने कई राजाओं से मदद माँगी। रूस के कई इलाकों के शासकों ने कालका नदी के किनारे मंगोलों से युद्ध लड़ा, लेकिन वो हार गए।

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ये सब चंगेज खान के जिंदा रहते हुआ था। अब बारी उसे पोते बातु खान की थी। वो 40,000 की सेना के साथ निकला और सबसे पहले बुल्गारिया को अपने अधीन किया। इसके बाद उसने व्लादिमीर के यूरी-II को संदेशा भेजा कि वो मंगोलों की अधीनता स्वीकार करे। तत्पश्चात उसने रियाज़ान में कदम रखा। इसके बाद जो तबाही मचाई गई, उसकी यादें लोकगीतों और लोककथाओं के रूप में रूस में आज भी सुनाई जाती हैं।

सन 1237 में वो पतझड़ का मौसम था, जब कड़ी ठण्ड में भी मंगोल आक्रांताओं की लड़ाई पर कोई फर्क नहीं पड़ता था और वो एक के बाद एक साम्राज्यों को जीतते जा रहे थे। वोरोझेन नदी के किनारे रियाज़ान की रक्षक सेना के साथ मंगोलों का युद्ध हुआ और उन्हें हरा कर वो आगे बढ़ निकले। वहाँ के लोग जीवट थे, उन्होंने मंगोलों के पहले हमले को नाकाम कर दिया। इसके बाद मंगोलों ने उन्नत किस्म के विशाल गुलेलों का प्रयोग किया।

इससे रियाज़ान की रक्षात्मक संरचनाएँ ध्वस्त हो गईं। वो 21 दिसंबर 1237 का दिन था जब शहर में बातु खान के नेतृत्व में मंगोल घुसे। पूरे शहर में आग लगा दिया गया। सब कुछ धू-धू कर जल उठा। प्रिंस यूरी और उसके परिवार पर हमला कर दिया गया। उस समय वहाँ की जनसंख्या क्या थी, इसका अंदाज़ा तो नहीं है, लेकिन इतना ज़रूर कहा जाता है कि पूरे शहर में एक भी व्यक्ति जिंदा नहीं बचा था। सारे के सारे मार डाले गए।

मंगोलों के छोटे घोड़ों (Poneys) के लिए बर्फ की परत सख्त होती थी और वो उस पर सरपट भागते थे। उन घोड़ों को बर्फ को खोद कर घास निकालने का प्रशिक्षण दिया गया था, जिससे उन्हें भोजन मिलता था। मंगोल सिल्क के कपड़े पहना करते थे और ऐसे कई Poneys रखा करते थे। अंग्रेजों के तीरों से उनके छोटे तीरों का रेंज कुछ अधिक होता था। वो एक इलाका जीतने के बाद तबाही की खबर आगे तक पहुँचने देते थे, तब आगे बढ़ते थे।

इससे दुश्मन कमजोर होता था। 1237 के क्रिसमस से पहले मंगोलों की सेना रियाज़ान के सबसे बड़े चर्च में घुसी। वहाँ का मुख्य बिशप भाग खड़ा हुआ। प्रिंस यूरी की माँ और पत्नी सहित पूरे परिवार को मार डाला गया। वहाँ जितने भी पादरी थे, उन सभी को आग में झोंक दिया गया। रूस के तब के इतिहासकार कहते हैं कि न जाने उन्होंने कौन सा पाप किया था कि शहर में एक भी व्यक्ति जिंदा नहीं बचा।

होली चर्च में ननों के साथ एक-एक कर बलात्कार किया गया। जब आग से जलते हुए लोग चिल्ला रहे थे, तब मंगोल ताली बजा-बजा कर हँस रहे थे। जहाँ चर्च में सारी धार्मिक प्रक्रियाएँ होती हैं, उसी वेदी पर ननों को लिटा कर उनके साथ बलात्कार किया गया। मंगोलों को अब रूस को अधीन करने में कोई रुचि नहीं थी क्योंकि वो जानते थे कि अब वो किसी की भी हत्या कर सकते हैं, कुछ भी लूट सकते हैं।

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1915 और 1979 में रियाज़ान के पुराने शहर की खुदाई हुई, जिसमें 97 कटे हुए सिर मिले। इसके अलावा कई बड़े कब्रिस्तान मिले, जिनमें से 143 लाशें निकाली गईं। ये सभी तभी मारे गए थे, जब वहाँ मंगोलों का हमला हुआ था। रूसी इतिहासकार लिखते हैं कि रोने और शोक मनाने तक के लिए कोई नहीं बचा था। मंगोल यहीं नहीं रुके, बल्कि वो और आगे बढे और रूस व ब्लादिमीर के कई क्षेत्रों पर अपना कब्ज़ा जमाया।

कहते हैं कि प्रिंस फेडोर ने बातु खान को खरीदने की भी कोशिश की थी। वो कई गिफ्ट लेकर उसके पास पहुँचा था, लेकिन बातु खान की जिद थी कि उसे एक ही गिफ्ट चाहिए और वो है प्रिंस यूरी की पत्नी। बातु खान मजाक नहीं कर रहा था, उसने मौके पर ही प्रिंस फेडोर को मार डाला। इसके बाद हंगरी, रोमानिया और पोलैंड पर उसने हमला किया। लेकिन, 1237 की क्रिसमस और बातु खान रूस की कड़वी याद बन गया।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.