भारत की ‘मिशन शक्ति’ की सफलता से बौखलाए चीन ने इस तरह निकाली भड़ास

'मिशन शक्ति’ की सफलता से बौखलाया चीन

भारत के वैज्ञानिकों ने ‘मिशन शक्ति’ को सफल बनाकर भारत को दुनिया के 4 सबसे बड़े शक्तिशाली देशों में शामिल कर दिया। भारत ने बुधवार (मार्च 27, 2019) को अंतरिक्ष इतिहास में बड़ी कामयाबी हासिल की है। इस कामयाबी को दुनिया के सभी देशों ने काफी गौर से देखा।

अमेरिका ने भारत की इस उपलब्धि पर बधाई दी और कहा कि वो अंतरिक्ष में भारत को और भी अधिक सहयोग करेगा। अमेरिका के इस रूख से चीन बौखला गया है। उसे भारत के द्वारा किए गए मिशन शक्ति के सफल परीक्षण से तो दुख है ही, मगर साथ ही इस बात का भी दुख हो रहा है कि भारत को इसमें अमेरिका का सहयोग मिल रहा है। बता दें कि, अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “हमने भारत की एंटी सैटेलाइट परीक्षण को देखा और उस पर पीएम मोदी के बयान को भी सुना है। भारत के साथ हम अपनी मजबूत रणनीतिक संबंधों को आगे भी जारी रखेंगे और अंतरिक्ष क्षेत्र में पहले से भी अधिक सहयोग करेंगे। हम अंतरिक्ष, विज्ञान व तकनीकी क्षेत्र में समान हितों के लिए आगे भी काम करते रहेंगे, ताकि अंतरिक्ष को पहले भी ज्यादा सुरक्षित बनाया जा सके।”

चीन को इस बात से भी दिक्कत है कि अमेरिका ने भारत को केवल इतनी सी चेतावनी दी है कि इस परीक्षण से अंतरिक्ष में जो मलबा फैला है, वह सही नहीं है। बता दें कि भारत के इस परीक्षण और पश्चिमी देशों के रुख पर चीन की सरकारी अखबार ग्‍लोबल टाइम्‍स ने लिखा है कि चीन की सरकार और यहाँ के लोग पश्चिम के दोहरे रवैये को काफी समय से देखते आए हैं, अब वह इसके आदी हो चुके हैं।

अखबार के मुताबिक, चीन 2007 में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था थी, जबकि भारत आज भी विकसित होने का ख्‍वाब संजोए है और विकासशील देशों की श्रेणी में आता है। इस अखबार का कहना है कि भारत के आर्थिक ढ़ाँचा कमजोर है और पश्चिमी देश भारत को चीन के खिलाफ खड़ा करने के लिए तैयार कर रहे हैं। इतना ही नहीं, इस अखबार ने तो यहाँ तक कह दिया कि भारत के लोगों को यह भी गलतफहमी है कि उसकी सैन्‍य क्षमता के बढ़ने से चीन और पाकिस्‍तान उससे डर जाएँगे। लेकिन भारत को यह समझना चाहिए कि चीन की बराबरी करने के लिए उसको लंबा समय लगेगा।

अखबार में छपे आर्टिकल को देखकर साफ जाहिर हो रहा है चीन भारत की सफलता से बौखला गया है और उससे भारत की उपलब्धि पचाई नहीं जा रही है। गौरतलब है कि जब चीन ने 2007 में पहली बार इसका परीक्षण किया था, तब अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने उसकी निंदा की थी। मगर भारत को अमेरिका और रूस का सहयोग मिल रहा है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया