हिंदू महिला को जिंदा जलाया, चौकी में आग लगा दो पुलिसकर्मियों की हत्या-हथियार लूटे: मुरादाबाद में मुस्लिम भीड़ की हिंसा से रिपोर्ट ने उठाया पर्दा

सोची.समझी साजिश थी 1980 का मुरादाबाद दंगा (फोटो साभार: ऑर्गेनाइजर)

योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने 8 अगस्त 2023 को मुरादाबाद दंगों की जाँच रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत की थी। साल 1980 में हुए दंगों (Moradabad Riots) में कम से कम 83 लोग मारे गए थे। वहीं 112 लोग घायल हुए थे। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस एमपी सक्सेना की एक सदस्यीय आयोग ने मुरादाबाद दंगों पर मई 1980 में 496 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट में दंगों के प्रमुख कारणों और उनके प्रभाव के बारे में बताया गया है।

मुरादाबाद दंगों को लेकर पेश की गई रिपोर्ट में दंगों के दौरान मौके पर मौजूद रहे मुस्लिम और हिंदुओं के साथ-साथ पुलिस अधिकारियों के बयान भी शामिल हैं। इस रिपोर्ट में दंगों के समय मौजूद छह हिंदुओं की लिखित गवाही का विस्तार से उल्लेख किया गया है। बड़ी बात यह है कि सभी बयानों से यह पता चलता है कि मुरादाबाद दंगा अचानक नहीं हुआ, बल्कि यह सुनियोजित साजिश थी।

दंगों के प्रत्यक्षदर्शियों में से एक वकील दयानंद गुप्ता ने अपने बयान में बताया था कि 13 अगस्त 1980 को मुरादाबाद के ईदगाह में शुरू हुई हिंसा के दौरान मुस्लिम भीड़ ने पुलिस अधिकारियों और वाल्मीकि दलित समाज के लोगों पर बिना किसी उकसावे के हमला किया।

हिंदुओं पर हुए हिंसक हमले को याद करते हुए दयानंद गुप्ता ने कहा था कि 13 अगस्त को ईद थी। इसलिए ईदगाह में नमाज पढ़ने के लिए 80000 मुस्लिम इकट्ठा हुए थे। गुप्ता ने इस बात से असहमति जताई थी कि ईदगाह में नमाज अदा कर रहे लोगों के बीच एक सुअर छोड़े जाने को लेकर दंगे हुए। उन्होंने दावा किया था नमाज पढ़ रहे मुस्लिम एक-दूसरे के बेहद करीब बैठे थे। ऐसे में उनके बीच किसी भी जानवर के जाने के लिए जगह ही नहीं थी।

जस्टिस सक्सेना की रिपोर्ट के अंश

दयानंद गुप्ता का दावा है कि नमाज के बाद वहाँ मौजूद कई मुस्लिम कॉन्ग्रेस के शिविर में चले गए। वहाँ पहुँचने के बाद उन लोगों ने अपना सामान इकट्ठा करना शुरू कर दिया। यह ठीक वैसा ही था जैसे कि उन लोगों को यह पता रहा हो कि दंगा होने वाला है। जब मुस्लिमों से पूछताछ की गई तो उनका कहना था कि इस्लाम में हराम माने जाने वाला एक सुअर नमाजियों के बीच आ गया था। लेकिन जब उनसे यह सवाल किया कि उन्हें कैसे पता चला कि नमाज के दौरान सुअर घुस आया तो मुस्लिमों ने चुप्पी साध ली।

पेशे से वकील दयानंद गुप्ता का दावा है कि दंगा शुरू होने से पहले अचानक ही कुछ मुस्लिम ईदगाह से बाहर आए। इसके बाद उन लोगों ने सड़क किनारे खड़े एक पुलिस अधिकारी बीबी लाल पर सुअर छोड़ने का आरोप लगाया और उनके साथ मारपीट करने लगे। फिर हिंसक मुस्लिम भीड़ ने अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीएम) डीपी सिंह को घसीटा और पीट-पीटकर मार डाला।

13 अगस्त की शाम मुस्लिम भीड़ ने गलशहीद पुलिस चौकी पर हमला किया और आग लगा दी। इस हमले के दौरान मुस्लिम भीड़ ने दो पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी और चौकी से हथियार लूट लिए। इसी तरह मुरादाबाद के बरवाड़ा गाँव में 10 हिंदुओं की बेरहमी से हत्या कर दी गई। गुप्ता ने अपने बयान में कहा था कि हिंदुओं के खून की प्यासी मुस्लिम भीड़ ने एक हिंदू महिला को जिंदा जला दिया था। साथ ही कई हिंदुओं की बेरहमी से हत्या कर दी गई। वहीं दूसरी ओर मुस्लिम पूरी तरह से सुरक्षित थे।

मुरादाबाद दंगों के प्रत्यक्षदर्शी गुप्ता का दावा था कि दंगे मेरठ, बरेली, रामपुर, अलीगढ़, प्रयागराज (तब इलाहाबाद) और दिल्ली के अलग-अलग स्थानों पर एक साथ हो रहे थे। इसलिए यह पूरी तरह स्पष्ट है कि यह सब सांप्रदायिक हिंसा फैलाने की सोची-समझी साजिश के तहत किया गया था।

अपने लिखित बयान में दयानंद गुप्ता ने कहा था कि इस हिंसा की शुरुआत हिंदुओं ने नहीं की थी। बल्कि, स्थानीय मुस्लिमों के घरों में अवैध हथियारों का एक बड़ा जखीरा पाया गया था। इससे यह साफ होता है कि 13 अगस्त, 1980 को मुस्लिमों ने ही हिंदुओं के नरसंहार की शुरुआत की थी।

गौरतलब है कि ऑपइंडिया ने अपनी पिछली रिपोर्ट में बताया था कि मुरादाबाद में हुए दंगों की असली वजह सुअर नहीं थी, बल्कि इस्लामवादी भारत को ‘पाकिस्तान’ बनाना चाहते थे। मुरादाबाद में भाजपा के तत्कालीन जिलाध्यक्ष हरिओम शर्मा ने कहा था कि ये हिंसा बहुत बड़ी साजिश का महज एक हिस्सा भर ही थी। इस हिंसा के लिए मुस्लिम पक्ष को बाहरी देशों, इस्लामी संगठनों जैसे मुस्लिम लीग, जमीयत उलेमा-ए-हिंसा और तबलीगी-ए-इस्लाम ने फंडिंग की थी। इन्होंने नया इस्लामी राज्य बनाने के अभियान को गति देने के लिए यूपी के अलीगढ़ और मुरादाबाद को चुना था।

वहीं, एक अन्य रिपोर्ट में ऑपइंडिया ने बताया था कि दंगों के चश्मदीद संतोष सरन ने अपने बयान में खुलासा किया था कि हिंसा की वजह वोट बैंक और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति थी। दंगे भड़कने से पहले 30000 से अधिक अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को सोची-समझी साजिश के तहत लाकर बसाया गया था। इन्हें मुरादाबाद के मुस्लिम बहुल गाँवों में रखा गया था।

दंगों की प्रमुख वजह संतोष सरन ने जिले की डेमोग्राफी बदलने की साजिश बताया। सरन के अनुसार 1947 में मिली आजादी के समय मुरादाबाद मुस्लिम बहुल था। तब शहर की आबादी में 52 प्रतिशत मुस्लिम और 48% हिन्दू थे। लेकिन स्वतंत्रता मिलने के बाद कई मुस्लिम पाकिस्तान चले गए थे, जिस वजह से आज़ादी के बाद मुरादाबाद हिन्दू बहुल हो गया था। तब यहाँ 52 प्रतिशत हिन्दू और 48 प्रतिशत मुस्लिम हो गए थे।

मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को ईद के दिन एक बड़ा दंगा हुआ था। इस दंगे के बारे में अब तक ये कहकर प्रचारित किया जाता रहा है कि इसके पीछे अप्रवासी हिंदू (विशेषत: पाकिस्तान से आए हिंदू) शामिल थे। इस दंगे के पीछे की वजह बताया जाता है कि ईदगाह में ‘नमाजियों के बीच सुअर’ छोड़े गए थे। इस दंगे में करीब 83 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 122 लोग घायल हो गए थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस दंगे की जाँच रिपोर्ट विधानसभा में रखी तो इसका खुलासा हुआ।

हैरानी की बात यह है कि साल 1983 में बनाई गई जाँच कमेटी की रिपोर्ट को कभी न तो सार्वजनिक किया गया था, न ही सदन के पटल पर रखा गया था, क्योंकि इससे इस दंगे के असली ‘कर्ता-धर्ता’ लोगों की पहचान सार्वजनिक हो जाती। हालाँकि, 8 अगस्त 2023 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न सिर्फ इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज एमपी सक्सेना की कमिटी वाली जाँच रिपोर्ट को विधानसभा पटल पर रखा, बल्कि दंगों के पीछे की साजिश की कॉन्ग्रेसी और मुस्लिम लीगी कनेक्शन को बेनकाब भी कर दिया।