‘वकील अली मोहम्मद लोन को ₹5 लाख मुआवजा दो’: J&K हाईकोर्ट ने जमात से जुड़े अलगाववादी के पक्ष में सुनाया फैसला, प्रशासन को याद दिलाया लौरा का कथन

जमात-ए-इस्लामी से जुड़े वकील को मिलेंगे 5 लाख रुपए - जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट का आदेश

जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय ने हाल ही में J&K प्रशासन को आदेश दिया है कि वो 2019 से ही नज़रबंदी (Preventive Detention) में रखे गए एक वकील को 5 लाख रुपए का मुआवजा दे। उक्त वकील का नाम मोहम्मद अली लोन उर्फ़ ज़ाहिद है। जस्टिस राहुल भारती ने कहा कि जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट उसे हिरासत में लेने के खिलाफ 3 बार आदेश दे चुका है। उस पर ‘पब्लिक सेफ्टी एक्ट’ (PSA) लगाया गया था। जज का कहना है कि पिछले फैसलों के खिलाफ अपील दायर करने की बजाए प्रशासन ने फिर से डिटेंशन ऑर्डर दे दिया।

जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने अली मोहम्मद लोन के खिलाफ चौथा डिटेंशन ऑर्डर रद्द करते हुए ‘बटरफ्लाई वीड्स’ की लेखिका लॉरा मिलर का एक उद्धरण दोहराया, “अतीत एक बहुत ही धृष्ट प्रेत है, जब तक मौका मिलता है वो पीछा करता ही रहता है।” हाईकोर्ट ने कहा कि पुलवामा के SSP की यही सोच है। बता दें कि 61 वर्षीय अली मोहम्मद लोन अलगाववादी रहा है। वो जमात-ए-इस्लामी का सदस्य था। उसे PSA के तहत सबसे पहले 2019 में हिरासत में लिया गया था।

उसकी हिरासत को हाईकोर्ट द्वारा रद्द किए जाने के बाद प्रशासन ने नया आदेश दिया। 2020 में दूसरी बार ऐसा हुआ, 2021 में तीसरी बार। 2022 में पुलवामा के SSP की अनुशंसा पर DM ने चौथी बार उसकी नजरबंदी का आदेश जारी किया। जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने अली मोहम्मद लोन को हिरासत में लिए जाने वाले फैसले को ‘पूर्वकल्पित’ करार देते हुए कहा कि बिना कोई अपराध सिद्ध हुए उसे जेल की बेड़ियों से बाँध कर रखा गया।

अली मोहम्मद लोन ने 25 लाख रुपए के मुआवजे की माँग की थी, लेकिन J&K उच्च न्यायालय ने 5 लाख दिए जाने का आदेश दिया। जजमेंट के 3 महीने के भीतर प्रशासन को उसे ये रकम देनी पड़ेगी। बता दें कि ‘जमात-ए-इस्लामी कश्मीर’ (JIJK) श्रीनगर का एक इस्लामी राजनीतिक दल है। वो कश्मीर को भारत का हिस्सा मानने की बजाए एक विवादित क्षेत्र मानता है और कहता है कि इसका समाधान UN (संयुक्त राष्ट्र) द्वारा किया जाना चाहिए। ज़ाहिद अली उसका प्रवक्ता था।

भारत में 1941 में ही जमात-ए-इस्लामी मूवमेंट शुरू हो गया था। इसमें सक्रिय कट्टरवादी मौलाना मौदूदी की विचारधारा पर ही चल कर JIJK की स्थापना हुई थी। ये लोग इतने कट्टर थे कि ये शेख अब्दुल्ला को भी सेक्युलर मानते थे। सूफीवाद की आड़ में उन्होंने इस्लाम का प्रसार शुरू किया। श्रीनगर की जामिया मस्जिद में इनकी साप्ताहिक बैठक होती थी। 1960 के दशक में इसने कश्मीर के भारत में होने पर सवाल उठाया। चुनावों में ये अपने समर्थन से उम्मीदवार भी उतारता रहा है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया