बाजारों में चहल-पहल, चर्चा का विषय ठंड, सिखों का जुलूस: हल्द्वानी में हमें नहीं मिला कोई धरना प्रदर्शन, ओवैसी-जुबैर बनाना चाह रहे ‘शाहीन बाग़ 2’

उत्तराखंड के हल्द्वानी में अवैध कब्जेदार में फिलहाल ख़ामोशी, पर प्रशासन मुस्तैद

उत्तराखंड में रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जेदारों को हटाने को ले कर उठे विवाद की जमीनी पड़ताल करने ऑपइंडिया की टीम मंगलवार (3 जनवरी, 2023) को हल्द्वानी पहुँची। सोशल और नेशनल मीडिया पर चल रहे घमासान से हमें लगा था कि ठंड में वहाँ का माहौल गर्मागर्म होगा। हालाँकि, हमारे अनुमान के उलट हल्द्वानी के हालात एकदम सामान्य थे। बाजारों में चहल-पहल थी और लोग रोजमर्रा के कामों में लगे हुए थे। बाकी क्षेत्रों के अलावा इसी सप्ताह कब्जेदारों हंगामे का गवाह वनभूलपुरा क्षेत्र भी एकदम शांत दिखा।

पटरियों पर रेलवे सुरक्षा बल की लगातार गश्त

दोपहर लगभग 12 बजे हम हल्द्वानी रेलवे स्टेशन पर पहुँच गए थे। इसी स्टेशन के आसपास की जमीनों पर अतिक्रमण हटाने को ले कर हाईकोर्ट ने आदेश जारी किए हैं। स्टेशन के साथ आने-जाने वाली ट्रेनों की खिड़कियों से गफूर बस्ती नाम का वो इलाका साफ़ देखा जा सकता है जहाँ कोर्ट के आदेश के खिलाफ अवैध कब्जेदारों को ओवैसी और मोहम्मद जुबैर जैसों ने दिल्ली और हैदराबाद से हवा दी। स्टेशन से हमने देखा कि रेलवे सुरक्षा बल के जवान पटरियों पर लगातार पेट्रोलिंग कर रहे हैं।

3-4 की संख्या में सुरक्षा बल स्टेशन के दोनों तरफ जा रहीं पटरियों पर बार-बार पेट्रोलिंग कर रहे थे।

पटरियों पर गश्त करते रेलवे सुरक्षा बल के जवान

इसी के साथ प्लेटफार्म पर भी जवान मुस्तैद थे। हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पार्किंग प्लेस में भी जवानों को लगातार गश्त करते देखा गया। स्टेशन से गफूर बस्ती जाने के लिए पैदल मार्ग ही बेहतर है, क्योंकि जहाँ स्टेशन की बाउंड्री खत्म होती है वहीं से गफूर बस्ती शुरू हो जाती है।

स्टेशन कैम्पस के बाहर लगी फ़ोर्स

शहर के अंदर भी भारी पुलिस बल तैनात

स्टेशन कैम्पस से बाहर निकल कर हम शहर के अन्य हिस्सों की तरफ वर्तमान हालात का जायजा लेने के लिए बढ़े। इस दौरान हमने सदर बाजार, किदवई नगर, नया बाजार आदि इलाकों का दौरा किया। हमने पाया कि लगभग सभी चैराहों पर पुलिस के जवान मुस्तैद थे। हालाँकि, थोड़ी देर बाद सिखों (सरदारों) का एक बड़ा जुलूस भी निकला। स्थानीय लोगों ने हमें शहर में लगा अतिरिक्त पुलिस फ़ोर्स सिखो के जुलूस की सुरक्षा के मद्देनजर तैनात की गई है। शाम लगभग 4 बजे जुलूस खत्म हुआ, तब पुलिस फ़ोर्स भी घटा दी गई।

शहर में निकली सिखों की शोभा यात्रा

वनभूलपुरा गफूर बस्ती में हालात एकदम सामान्य

जहाँ मीडिया व सोशल मीडिया रिपोर्ट्स से ये माना जा रहा था कि हल्द्वानी में शाहीन बाग़-2 की तैयारी है, वहीं जमीनी स्तर पर 3 जनवरी को ऐसा कुछ नहीं दिखा। ऑपइंडिया की टीम ने वनभूलपुरा के उन क्षेत्रों का भी दौरा किया, जिसे अतिक्रमण इलाका घोषित कर के बुलडोजर चलाने के लिए चिह्नित किया गया है। उन स्थानों पर लोग आम दिनों की तरह दिन काटते दिखाई दिए। वनभूलपुरा क्षेत्र में घूम रहे और वहीं सब्ज़ी बेचने वाले 2 नेपाली नागरिकों जब मैंने धरने आदि की जगह पूछी तब उन्होंने खुद को किसी भी मामले से अनजान बताया।

लगभग पूरा वनभूलपुरा क्षेत्र घूमने के बाद भी हमें कहीं भी कोई भीड़, कोई शोर-शराबा, धरना-प्रदर्शन या हंगामा नहीं दिखा।

रेलवे लाइन और उसके आस-पास सामान्य चहलकदमी

यहाँ ये बात खास रही कि शहर के बाकी हिस्सों के अलावा खुद वनभूलपुरा इलाके में भी लोगों को कब्ज़े और अतिक्रमण विरोधी अभियान पर चर्चा करते नहीं सुना गया। उनकी आपसी बातचीत का मुख्य मुद्दा ठंड और तापमान था।

मीडिया मूवमेंट भी न के बराबर

सोशल मीडिया में टॉप ट्रेंड करवाए जा रहे हल्द्वानी में मीडिया मूवमेंट न के बराबर दिखी। लगभग 2 घंटे वनभूलपुरा व किदवई नगर इलाके में घूमते हुए हमें महज ‘मिरर नाउ’ की टीम कवरेज करती दिखाई दी। हालाँकि, उन्हें देखते ही पीछे से किसी ने ‘मीडिया गो बैक’ का नारा लगाया। इस दौरान किसी ने मीडियाकर्मियों से बातचीत नहीं की। लगभग 15 मिनट बाद उनकी टीम वापस लौट गई।

OpIndia की टीम लगातार 2-3 दिनों तक हल्द्वानी में ग्राउंड रिपोर्टिंग करेगी। हमारी टीम यह जानने की कोशिश करेगी कि अतिक्रमण जैसे स्थानीय मुद्दे को क्यों ‘मुस्लिमों पर सरकार का कहर’ जैसा बड़ा और फर्जी रूप दिया गया? पता लगाने की कोशिश करेंगे कि इस फर्जीवाड़े में कौन-कौन लोग (स्थानीय और बाहरी) शामिल रहे। सोशल मीडिया पर जिस वीडियो को बार-बार ट्वीट-रिट्वीट-शेयर आदि करके नैरेटिव बनाने की कोशिश की गई, पता लगाएँगे कि आखिर वो भीड़ थी कहाँ की, कौन थे वो लोग? हल्द्वानी के ही स्थानीय लोगों से हम यह भी पता करेंगे कि वनभूलपुरा में हो रखे अतिक्रमण से कैसी-कैसी सामाजिक परेशानियाँ वो झेलते हैं।

राहुल पाण्डेय: धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।