अजमेर की दरगाह भी मंदिर ही: महाराणा प्रताप सेना ने बताया- स्वास्तिक और अन्य हिंदू प्रतीक आज भी मौजूद, ASI सर्वे की माँग

चिश्ती, दरगाह और स्वास्तिक का निशान (बाएँ से दाएँ)

हिंदुओं में जागरूकता बढ़ने के साथ ही उन्होंने अपने खोए व ध्वस्त किए गए विरासतों एवं धरोहरों पर दावा करना शुरू कर दिया। वाराणसी के ज्ञानवापी (Gyanvapi, Varanasi) और मथुरा के शाही ईदगाह (Shahi Idgah, Mathura) ढाँचे के बाद अब राजस्थान के अजमेर स्थित मोइनुद्दीन चिश्ती (Moinuddin Chishti Dargah) की दरगाह को हिंदुओं ने मंदिर होने का दावा किया है।

हिंदू संगठनों का कहना है कि दरगाह असल में एक शिव मंदिर है और इसकी दीवारों पर अभी भी हिंदू प्रतीक मौजूद हैं। इस संबंध में उन्होंने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi Government) को पत्र लिखा है और उसमें माँग की है कि इसके सत्यापन के लिए पुरातत्व विभाग (ASI) से दरगाह परिसर का सर्वे कराया जाए।

दिल्ली स्थित महाराणा प्रताप सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजवर्धन सिंह परमार ने कहा है कि अजमेर स्थित गरीब नवाज कहलाने वाले मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पहले हिन्दू मंदिर था। उन्होंने पत्र में कहा कि सर्वेक्षण कराने के बाद इसके हिन्दू मंदिर होने के प्रमाणित साक्ष्य मिल जाएँगे।

अपने पत्र में राज्यवर्धन सिंह परमार ने लिखा है कि दरगाह के अंदर कई जगहों पर हिन्दू धार्मिक चिह्न मौजूद हैं। इनमें स्वस्तिक का चिह्न भी शामिल है। सेना प्रमुख परमार ने कहा कि एक हफ्ते में जाँच नहीं हुई तो वे केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात करेंगे। इसके बाद भी अगर समाधान नहीं निकला तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा।

चिश्ती के दरगाह को लेकर विवाद बढ़ने के बाद अजमेर के ADM (सिटी) भावना गर्ग ने गुरुवार (26 मई 2022) को चिश्ती के दरगाह परिसर का दौरा किया। कहा जा रहा है कि दरगाह पर हिंदुओं द्वारा दावा ठोकने के बाद इस ढाँचे के आसपास बड़ी संख्या में पुलिस के जवानों को तैनात किया गया है।  

इस दरगाह से जुड़े लोगों का कहना है कि यह 900 साल पुराना है। यह वही समय वही 1192 ईस्वी के आसपास का है, जब मुहम्मद गोरी के साथ सम्राट पृथ्वीराज चौहान की दूसरा युद्ध हुआ था। दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हो गई थी। इस बाद हिंदू मंदिरों का विध्वंस शुरू हो गया था।

कौन हैं मोइनुद्दीन चिश्ती

इतिहासकार एमए खान ने अपनी पुस्तक ‘इस्लामिक जिहाद: एक जबरन धर्मांतरण, साम्राज्यवाद और दासता की विरासत’ (Islamic Jihad: A Legacy of Forced Conversion, Imperialism, and Slavery) में इस बारे में विस्तार से लिखा है कि मोइनुद्दीन चिश्ती, निज़ामुद्दीन औलिया, नसीरुद्दीन चिराग और शाह जलाल जैसे सूफी संत जब इस्लाम के मुख्य सिद्धांतों की बात करते थे, तो वे वास्तव में रूढ़िवादी और असहिष्णु विचार रखते थे, जो कि मुख्यधारा के जनमत के विपरीत था।

मोइनुद्दीन चिश्ती, मुइज़-दीन मुहम्मद ग़ोरी की सेना के साथ भारत आए और गोरी द्वारा अजमेर को जीतने से पहले वहाँ गोरी की तरफ से अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान की जासूसी करने के लिए अजमेर में बस गए थे। यहाँ उन्होंने पुष्कर झील के पास अपने ठिकाने स्थापित किए।

खुद मोइनुद्दीन चिश्ती ने तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को पकड़ लिया था और उन्हें ‘इस्लाम की सेना’ को सौंप दिया। लेख में इस बात का प्रमाण है कि चिश्ती ने चेतावनी भी जारी की थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था – “हमने पिथौरा (पृथ्वीराज चौहान) को जिंदा पकड़ लिया है और उसे इस्लाम की सेना को सौंप दिया है।”

मोइनुद्दीन चिश्ती का एक शागिर्द था मलिक ख़ितब। उसने एक हिंदू राजा की बेटी का अपहरण कर लिया और उसे चिश्ती को निकाह के लिए ‘उपहार’ के रूप में प्रस्तुत किया। चिश्ती ने खुशी से ‘उपहार’ स्वीकार किया और उसे ‘बीबी उमिया’ नाम दिया।

ये भी कहा जाता है कि एक दिन अचानक से ‘गरीब नवाज’ चिश्ती को स्वप्न में पैगम्बर मोहम्मद का संदेश मिला कि उसे भारत में उनके दूत के रूप में भेजा जा रहा है। फिर वो भारत आ गया। चिश्ती ने अजमेर आकर आना सागर झील के किनारे डेरा डाला और उसे अपवित्र कर दिया था। उसने अल्लाह और पैगम्बर की मदद से झील के किनारे बसे मंदिरों को जमींदोज करने का ऐलान किया था। साथ ही वो मंदिरों और उसमें स्थित मूर्तियों की पूजा होते देख कर खफा भी था। 

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया