जिसे कॉन्ग्रेसी CM ने भी माना था माओवादी, उस अखिल गोगोई के मेधा पाटेकर से क़रीबी संबंध

एक रैली के दौरान मेधा पाटेकर और अखिल गोगोई (फोटो साभार: इंडिया टुडे)

ख़ुद को असम के किसानों के नेता बताने वाले अखिल गोगोई को एनआईए की विशेष अदालत ने गुवाहाटी में 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। इससे पहले दिसंबर 17 को उसे 10 दिनों के लिए पुलिस कस्टडी में भेजा गया था। सीएए के विरोध की आड़ में हिंसा करने वाले गोगोई को यूएपीए (ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) के तहत गिरफ़्तार किया गया है। उसके ख़िलाफ़ आईपीसी व यूएपीए की जिन धाराओं में मुक़दमा दर्ज किया गया है, उसपर एक नज़र आप भी डाल लीजिए:

  • धारा 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र रचना)
  • धारा 124 ए (देशद्रोह का अपराध)
  • धारा 153 ए (धर्म, नस्ल, भाषा इत्यादि के आधार पर लोगों में नफ़रत फैलाना)
  • धारा 153 बी (राष्ट्रीय अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला कार्य करना)
  • यूएपीए धारा 18 (आतंकी या उसके सदृश घटना की साज़िश रचना), और
  • यूएपीए धारा 39 (आतंकी गतिविधियों के लिए बैठक करना, समर्थन जुटाना)

इन धाराओं को देखने के बाद आप समझ गए होंगे कि मामला कितना गंभीर है और अखिल गोगोई पर देशद्रोह व आतंकी साज़िश के आरोप लगे हैं। उसे दिसंबर 12 को असम पुलिस ने गिरफ़्तार कर के एनआईए को सौंप दिया था। उसके संगठन का नाम है- किसान मुक्ति संग्राम समिति (KMSS), जो ख़ुद को किसानों के लिए लड़ने वाला संगठन बताता है। एनआईए ने उसके घर पर छापा मारा, जहाँ से कई आपत्तिजनक डाक्यूमेंट्स व पुस्तकें बरामद हुईं। उसके पर्सनल लैपटॉप को भी जाँच एजेंसी ने अपने कब्जे में ले लिया है। उसे लेकर अभी और खुलासे हो सकते हैं।

अब आते हैं उसे मिल रहे अर्बन नक्सलियों के समर्थन पर। अगर पूर्व के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ की नेता और ख़ुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताने वाली मेधा पाटेकर के साथ गोगोई के क़रीबी सम्बन्ध हैं। मेधा पाटेकर भी आजकल सीएए विरोधी उपद्रव में लगी हुई हैं। उन्होंने जामिया के छात्रों के साथ भी विरोध प्रदर्शन किया। कुछ दिनों पहले उन्हें पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों ने खदेड़ दिया था। मेधा पाटेकर की बात करने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि आख़िर ये केएमएसएस है क्या और ये अखिल गोगोई है कौन?

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42 वर्षीय अखिल गोगोई ने 2005 में केएमएसएस की स्थापना की थी। वह पहले आरटीआई एक्टिविस्ट के रूप में काम करता रहा है। उसे पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन (PCRP) ने नेशनल आरटीआई अवॉर्ड ने नवाजा था। पीसीआरपी किसका संगठन था? इसकी स्थापना 2006 में अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और अभिनन्दन शेखरी ने मिल कर की थी। केजरीवाल आज दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और सिसोदिया उनके डिप्टी। वहीं अभिनन्दन शेखरी न्यूज़लॉन्ड्री नामक प्रोपेगंडा पोर्टल के संपादक हैं। पीसीआरएफ भी एक संदिग्ध संस्था थी, जिसपर इनकम टैक्स के कई मामले चल रहे थे। प्रशांत भूषण भी इसके ट्रस्टी थे।

जनवरी 2011 में अखिल गोगोई ने आरोप लगाया था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने लंदन में संपत्ति ख़रीदी है। उसने कुछ फोटो भी शेयर किए थे। लेकिन, वो सारे फोटो कैम्ब्रिज के एमआईटी के निकले, जहाँ गोगोई के बेटे पढ़ाई के लिए गए हुए थे। आज भाजपा का विरोध कर रहा अखिल कभी कॉन्ग्रेस को वोट न देने की अपील करता था। असम और अरुणाचल प्रदेश में बाँध प्रोजेक्ट्स को बंद कराने के लिए अखिल गोगोई ने लोगों को जम कर भड़काया था। उसके कारण नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पॉवर कारपोरेशन (NHPC) के कई डैम प्रोजेक्ट्स में रुकावट आई थी।

असली खेल जुलाई 2010 में तब शुरू हुआ, जब मेधा पाटेकर गुवाहाटी पहुँचीं और उन्होंने अखिल गोगोई के साथ मिल कर पूरे शहर को एक तरह से दिन भर बंधक बनाए रखा। बाँध प्रोजेक्ट्स के विरोध के नाम पर पाटेकर और गोगोई ने हज़ारों लोगों के साथ डीसी के दफ्तर तक मार्च किया और हज़ारों लोगों के साथ विरोध प्रदर्शन किया था। ये विरोध प्रदर्शन भी केएमएसएस के बैनर तले ही किया गया था। उपद्रवियों ने डीसी दफ्तर की और चप्पल भी फेंके थे। उस रैली में मेधा पाटेकर ने चेतावनी दी थी कि उनकी माँगें नहीं माने जाने पर पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर विद्रोह होगा।

फ़रवरी 2012 में भी मेधा पाटेकर ने असम पहुँच कर अखिल गोगोई का समर्थन किया था। समय-समय पर अखिल और केएमएसएस के आन्दोलनों को राष्ट्रीय पहचान देने के लिए मेधा पाटेकर की उपस्थिति का सहारा लिया जाता रहा है। यहाँ आप उन तस्वीरों को देख सकते हैं, जिसमें मेधा पाटेकर और अखिल गोगोई साथ में रैलियों को सम्बोधित करते दिख रहे हैं। इस संगठन व अखिल के बारे में वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता और 15 सालों तक असम के मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई ने कहा था:

“किसान मुक्ति संग्राम समिति के आंदोलन के पीछे माओवादियों का हाथ है। राज्य के भूमिहीनों को बरगला कर माओवादी अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। ओडिशा में माओवादियों के केएमएसएस के कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दी है। ऐसे दो कार्यकर्ताओं को हमनें गिरफ़्तार किया है। मेरे पास इस बात के सबूत हैं कि अखिल गोगोई का माओवादियों से डायरेक्ट लिंक है। केएमएसएस ऐसे 2संगठनों के साथ मिल कर भी काम कर रहा है, जो असम को भारत से अलग करने की माँग करते हैं और प्रतिबंधित हैं। हिंसा पर उतारू केएमएसएस से कोई बातचीत नहीं होगी।”

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गोगोई ने ये बयान जून 2011 में दिया था। तब केएमएसएस ने राज्य भर में हिंसा की थी। इसके बाद अखिल गोगोई को गिरफ़्तार कर के जुडिशल कस्टडी में भेज दिया गया था। अखिल गोगोई अनशन पर भी बैठा था और तब अन्ना हज़ारे के संरक्षण में चलने वाले ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ ने उसके आंदोलन को पूर्ण समर्थन दिया था। जहाँ तक मेधा पाटेकर की बात है, वो जनवरी 2013 में भी गुवाहाटी पहुँची थीं, जहाँ उन्होंने न सिर्फ़ विरोध प्रदर्शन किया था बल्कि अखिल के समर्थन में रैली भी की थी। उन्होंने लोगों को भड़काते हुए कहा था कि अरुणाचल प्रदेश में बनने वाले 168 बाँधों से ग़रीबों को कुछ नहीं मिलेगा, ये सब अमीरों के लिए है। उन्होंने तत्कालीन सीएम तरुण गोगोई पर हज़ारों करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।

अब सवाल ये उठता है कि क्या केएमएसएस एक माओवादी संगठन है? एक बार विरोध प्रदर्शन के दौरान एक गर्भवती महिला के एम्बुलेंस को घेर लिया गया और ड्राइवर की पिटाई की गई। ये करतूत केएमएसएस के कार्यकर्ताओं की ही थी। गर्भवती महिला पर भद्दे कमेंट्स किए गए और एम्बुलेंस के शीशे को तोड़ डाला गया। ऐसा तब हुआ था, जब फ़रवरी 2012 में संगठन ने गोगामुख-ठेकेरागुरी मार्ग को अपने कब्जे में ले रखा था। पुलिस को रोकने के लिए जगह-जगह पेड़ काट कर गिरा दिए गए, टायर में आग लगा दिया गया और ट्रकों को रोड पर खड़ा कर दिया गया था।

यहाँ तक कि पुलिस पर जम कर पत्थरबाजी भी की गई थी। तरुण गगोई यूँ ही नहीं बार-बार कहते रहे हैं कि अखिल गोगोई एक माओवादी है। जनवरी 2011 में एक केएमएसएस कार्यकर्ता ने कोर्ट में स्वीकार किया था कि उसे ट्रेनिंग के लिए ओडिशा के माओवादियों के पास भेजा गया था। ‘इंडिया टुडे’ से बातचीत के दौरान भी उसने इस बात को कबूल किया था। इसके अलावा मई 2011 की एक रैली में माओवादी शरत साइका की उपस्थिति भी चर्चा का विषय बनी थी। उस रैली को अन्ना हज़ारे और स्वामी अग्निवेश ने भी सम्बोधित किया था। साइका ओडिशा में हथियारों का प्रशिक्षण ले चुका था।

अखिल गोगोई के ख़िलाफ़ ऑन ड्यूटी पुलिस अधिकारी पर हमला करने को लेकर एफआईआर भी दर्ज किया गया था लेकिन कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान उसपर कोई कार्रवाई नहीं की गई। उसके संगठन का एक व्यक्ति इसी आरोप में गिरफ़्तार हुआ था लेकिन अगले ही दिन उसे विवादस्पद परिस्थितियों में रिहा कर दिया गया। एक पुलिस अधिकारी ने स्वीकार किया था कि सरकार अखिल को छूना भी नहीं चाहती है क्योंकि वो राज्य में ‘वन मैन अपोजिशन’ के रूप में काम कर रहा था और सरकार को डर था कि उस पर कार्रवाई करने से ‘बदले की भावना’ का आरोप लगेगा।

दिसंबर 2016 को मेधा पाटेकर ने अखिल के समर्थन में इस पोस्ट को शेयर किया था

ऐसा भी प्रतीत होता है कि पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई केएमएसएस और अखिल पर कार्रवाई करना चाहते थे लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अर्बन-नक्सल के नेक्सस के कारण ऐसी जहमत नहीं उठाई। फरवरी 2014 में दिए एक बयान में उन्होंने ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट्स का डर जताया था। उन्होंने कहा था कि कार्रवाई के लिए सबूत जुटाना होता है। यह सवाल भी उठता है कि के कॉन्ग्रेस आलाकमान अर्बन-नक्सलियों पर कार्रवाई नहीं चाहती थी? गोगोई लगातार माँग करते रहे कि असम के जिलों को माओवादी प्रभाव वला घोषित किया जाए लेकिन उनकी अपनी ही सरकार ने ऐसा क्यों नहीं किया?

तरुण गोगोई ने 2014 में केंद्र से माँग की थी कि असम के 9 जिलों को नक्सल प्रभावित घोषित किया जाए। वो कहते रहे, किसी ने ध्यान नहीं दिया। उन्होंने बताया था कि इसके 5 वर्ष पूर्व जब उन्होंने असम में माओवादी धमक की बात की थी, तब किसी ने उन पर विश्वास नहीं किया था। मुख्यमंत्री बार-बार आरोप लगाते रहे कि केएमएसएस और माओवादी मिल कर भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को खोदना चाहते हैं लेकिन कार्रवाई नहीं की गई। क्यों? अब देखना है कि एनआईए की ताज़ा कार्रवाई के बाद क्या निकला कर आता है।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.