‘वो गड्डी पलटो-गड्डी पलटो कह रहे थे’: लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए BJP नेता के भाई ने सुनाया हाल, उग्र किसानों को कहा- ‘जल्लाद’

लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए श्याम सुंदर निषाद

लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए 8 लोगों में एक नाम भारतीय जनता पार्टी के मंडल मंत्री श्याम सुंदर निषाद का है। निषाद वह भाजपा नेता हैं जिनकी वीडियो हिंसक झड़प के बाद से हर जगह वायरल है। ये वीडियो इतनी झकझोरने वाली है कि शायद ही किसी के जहन से उतरे। खून से लथपथ चेहरा.. सहमे श्याम सुंदर निषाद और उग्र भीड़ का दबाव। इस वीडियो में सब साफ दिख रहा है।

जिस तरह अपनी आखिरी वीडियो में वह अपनी जान की भीख माँग रहे हैं और बर्बर भीड़ बस ये उगलवाने पर आमादा है कि वो मानें कि उन्हें भाजपा नेता टेनी ने किसानों को कुचलने के लिए भेजा…सब साफ दिखाता है कि वहाँ मौजूद भीड़ कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। 

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वीडियो में श्याम ये जरूर बताते हैं कि उनको टेनी ने भेजा लेकिन इस बात से जैसे ही इनकार करते हैं कि उन्हें किसी को कुचलने के लिए नहीं भेजा गया, वैसे ही गुस्साई भीड़ उनकी ओर बढ़ने लगती है और वह हाथ जोड़ ‘दादा-दादा छोड़ दो’ कहने लगते हैं। इसके बाद सिर्फ उनकी लाश मिलती है। सोच सकते हैं कि जब जिंदा रहते हुए श्याम सुंदर का हाल इतना भयावह कर दिया गया तो जब उन्हें मारा गया होगा तो उनकी स्थिति क्या रही होगी। कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि उनके गले और चेहरे पर इस तरह वार हुए थे कि उनकी वहीं मौत हो गई। बाद में उनकी लाश खेत में फेंकी गई और फिर शाम को पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेजा।

इस समय कुछ चीजें मीडिया में दो तरह से चलाई जा रही हैं। एक पक्ष उग्र ‘किसानों’ को जिम्मेदार बता रहा है और दूसरा भाजपा नेताओं की गाड़ी को। वहीं दूसरी ओर आमजन है सारे मामले को सिर्फ चुनिंदा वीडियो पर आँक रहे हैं। ऐसे में ऑपइंडिया आज आपको श्याम सुंदर निषाद के सगे भाई संजय निषाद का पक्ष बताने जा रहा है जो बातचीत में ये मानने से इनकार करते हैं कि भीड़ में मौजूद लोग कोई किसान थे, वह उन्हें जल्लाद कहते हैं। साथ ही ये भी बोलते हैं कि अगर सब किसान होते तो ये नहीं करते, क्योंकि वह लोग खुद भी किसान हैं।

मृतक भाजपा नेता श्याम सुंदर निषाद के भाई संजय निषाद से ऑपइंडिया की बातचीत

सिंगाही थाने के सिंगहा कलां गाँव के श्याम सुंदर निषाद के भाई संजय निषाद कहते हैं, “मेरा भाई भाजपा मंडल मंत्री था। गृह राज्य मंत्री के यहाँ काफी समय से दंगल होते आ रहे थे। ये 2 से 3 तक अक्टूबर चलना था। वहाँ केशव प्रसाद मौर्या आ रहे थे। उनकी अगुवाई के लिए भैया जा रहे थे। वहाँ सब लोग इकट्ठा थे। उन्होंने ही उनको मारा। सब यही बुलवा रहे थे तुम्हें टेनी ने भेजा है। मेरे भैया भी कह रहे थे भेजा उन्होंने ही है लेकिन एक्सिडेंट के लिए नहीं भेजा। केशव प्रसाद मौर्या को लेने भेजा है।”

संजय कहते हैं कि उन्हीं लोगों ने पहले उपद्रव किया, गाड़ी के शीशे पत्थर चलाया और फिर गाड़ी का बैलेंस बिगड़ा। उनके मुताबिक, उन्हें अपने भाई की मृत्यु का संदेश मैसेज के जरिए मिला। वह उस समय उत्तराखंड में थे और किसी कारणवश वह अपने भाई के अंतिम संस्कार में भी नहीं आ पाए थे। वह कहते हैं, “घरवालों को भी तब पता चला जब वीडियो वॉट्सएप पर आई और हल्ला हुआ- ‘उनका लड़का मारा गया-मारा गया। मुझे किसी तरह साढ़े 5 बजे खबर मिली और जिसने फोन किया उसने कहा- ‘आपके भैया को मारा डाला गया है। मैंने बात नहीं मानी, लेकिन जब वॉट्सऐप पर वीडियो देख ली तो यकीन हुआ कि सच में ऐसा हुआ है।”

संजय उत्तराखंड से अपने भाई के क्रियाक्रम में आना चाहते थे, लेकिन बस कैंसिल होने के कारण ऐसा नहीं हुआ। वह कहते हैं, “मैंने अपने भाई की आखिरी वीडियो भी देखी है और वो वीडियो भी देखी है जिसमें सब कह रहे हैं- गड्डी पलटो-गड्डी पलटो। इसके बाद भाई मर गया, लेकिन झूठ नहीं बोला कि टेनी ने भेजा था मगर किसी को मारने के लिए नहीं, केशव प्रसाद मौर्या को लेने के लिए।”

संजय से हमारी बातचीत के बीच में ही उन्हें सरकार की ओर से 45 लाख रुपए का मुआवजा भी मिला। संजय ने कहा, “आपसे बातचीत जब हो रही थी और कॉल काटना पड़ा उसी दौरान पुलिस के साथ लेखपाल, पटवारी, ग्राम प्रधान घर आए और 45 लाख रुपए की मदद मिली। आगे सरकारी नौकरी का भी वादा किया गया है।”

परिवार की आर्थिक स्थिति पर वह बताते हैं कि श्याम सुंदर निषाद ही घर की सब जरूरतों को पूरा करते थे। उन्होंने बहनों की शादी करवाई थी और उसके बाद खुद शादी की थी। उनकी पत्नी और दो बेटियाँ बिलकुल अकेली हो गई हैं। संजय कहते हैं कि उनके भाई 15-20 साल से दंगल में जाते थे। वहाँ उन्हें पहले छोटा पद मिला, फिर इसमें बढ़ोतरी हो गई और वह महामंत्री, मंडल मंत्री हो गए।

किसानों के प्रदर्शन के हिंसक होने को लेकर संजय बताते हैं कि वहाँ बहुत लोग थे। चक्का जाम कर रखा था। हमसे बातचीत में संजय ने ये जानकारी भी दी कि उनके घर राहुल गाँधी पहुँचने वाले हैं वह लखीमपुर में ही हैं। वह अपने भाई का आखिरी चेहरा याद करते हुए कहते हैं, “सरकार मेरे भाई को नहीं लौटा पाएगी। उसने हाथ जोड़-जोड़ कर अपनी जान की भीख माँगी लेकिन उन्हें बख्शा नहीं गया। वो किसान नहीं हैं जल्लाद हैं। मुआवजा हमें मिल गया है लेकिन मैं ये बात हर मीडिया में कहूँगा कि वो इंसान नहीं जल्लाद थे।” अपनी माँग का जिक्र करते हुए वह सरकार से कहते हैं, “सरकार आरोपितों का पता लगाए और उनके विरुद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई हो। जिन्होंने मारा वो किसान नहीं थे जल्लाद थे। किसान होते तो मारते क्यों मैं भी तो किसान हूँ।”