‘कश्मीर में धारा 370 हटाने से पहले Brexit की तरह जनमत संग्रह होना चाहिए था’: कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में दी दलील, CJI बोले- यहाँ संवैधानिक लोकतंत्र है

सुप्रीम कोर्ट (तस्वीर साभार- हिंदुस्तान टाइम्स)

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटे हुए चार साल हो चुके हैं, लेकिन इसकी वैधानिकता पर सवाल अब भी उठाए जा रहे हैं। इस हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई है, जिस पर सुनवाई चल रही है। मंगलवार (08-08-2023) को कॉन्ग्रेस नेता एवं सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन की तरफ से कोर्ट में दलीलें दीं।

कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सरकार को आर्टिकल 370 को हटाने से पहले जनता से राय लेनी चाहिए थी, क्योंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश हैं। सारे फैसले जनता के द्वारा होने चाहिए। कपिल सिब्बल ने दलील दी कि ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से अलग होने वाले कानून को बनाने और किसी फैसले पर पहुँचने से पहले जनमत संग्रह कराया था, जिसे ब्रेक्जिट कहा जाता है।

सीजेआई की अध्यक्षता में 5 सदस्यीय पीठ कर रही सुनवाई

लाइव लॉ के अनुसार, इस मामले की सुनवाई सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में संवैधानिक बेंच कर रही है। इस बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवाई और जस्टिस सूर्य कांत शामिल हैं। सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा, “मिस्टर सिब्बल आप हिंदुस्तान में रहते हैं, जिसका एक संविधान है। उस संविधान के मुताबिक, जनमत संग्रह यानि कि रेफरेंडम जैसी कोई बात लिखी ही नहीं है।”

कपिल सिब्बल की सारी दलीलें खारिज

सिब्बल ने कहा कि ब्रेक्जिट जैसा कानून ब्रिटेन में भी नहीं था, लेकिन आम जनता की रायशुमारी की गई। ऐसा ही कुछ जम्मू-कश्मीर के मामले में होना चाहिए था। कपिल सिब्बल ने कहा कि आर्टिकल 370 को स्थाई मानते हुए कोई लचीला कदम उठाना चाहिए था।

सिब्बल ने कहा कि चूँकि संविधान सभा देश में 1957 के बाद से ही नहीं है, ऐसे में आर्टिकल 370 को स्थाई माना जाना चाहिए था। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है कि संवैधानिक लोकतंत्र में लोगों की राय जानने का काम स्थापित संस्थाओं के जरिए किया जाना चाहिए। इसलिए यहाँ ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह के बारे में नहीं सोच सकते।

आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कपिल सिब्बल की उस दलील को माना कि आर्टिकल 370 को हटाने का फैसला पूरी तरह से राजनीतिक फैसला था। हालाँकि, सु्प्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि भारत के संविधान में जनमत संग्रह जैसी कोई बात भी नहीं है।

4 साल से ज्यादा का समय बीत चुका है

बता दें कि 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय किया गया था। संविधान में जम्मू-कश्मीर को भारत से जोड़ने के लिए विशेष व्यवस्था की गई थी। साथ ही जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था।

हालाँकि, 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में लागू होने वाली संविधान की धारा 370 एवं 35A को निरस्त कर दिया थ। इसके साथ ही राज्य का दो हिस्सों में बाँट दिया गया था। दोनों हिस्सों को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है। सरकार ने कहा था कि समय आने पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया