‘अल जजीरा’ के पत्रकार की हत्या पर इस्लामी स्कॉलर ने कहा – ‘काफिर नर्क में जाते हैं, गैर-मुस्लिम के लिए दुआ पढ़ना मना’

इस्लामिक विद्वान कामरान (बाएँ) और शिरीन अबू अकलेह (फोटो साभार: अल जजीरा)

इजरायली डिफेंस फोर्स और फिलिस्तीन के लड़ाकों के बीच वेस्ट बैंक में हुई गोलीबारी में मीडिया संस्थान ‘अल जजीरा’ की पत्रकार शिरीन अबू अकलेह (51) की गोली मारकर हत्या करने के दो दिन बाद एक इस्लामी विद्वान ने विवादित बयान दिया है। कामरान नाम के इस्लामी विद्वान ने मुस्लिमों से मारी गई पत्रकार के लिए किसी भी तरह की प्रार्थना नहीं करने के लिए कहने के बाद मामला गर्मा गया है।

‘योर मदरसा‘ नाम के संगठन के संस्थापक कामरान ने शुक्रवार (13 मई) को ट्वीट किया, “मैंने देखा है कि कई सारे मुस्लिम फ़िलिस्तीन में गलत तरीके से मारी गई पत्रकार शिरीन अबू अकलेह के लिए दुआ कर रहे हैं। वह एक ईसाई थी।” मुस्लिम विद्वान ने जोर देकर कहा, “ये केवल एक रिमाइंडर है कि विद्वानों के बीच किसी भी तरह का मतभेद नहीं है कि कोई गैर-मुस्लिमों की मृत्यु के बाद क्षमा और दया के लिए प्रार्थना नहीं कर सकता है।”

कामरान के ट्वीट का स्क्रीनशॉट

इस्लामिक किताब का हवाला देते हुए कामरान ने दावा किया कि जो मुस्लिम एक काफिर (मुशरिकून) के लिए पश्चाताप करते हैं, वे नरक की आग में जलकर बर्बाद हो जाते हैं।

कामरान ने आगे कहा, “यह पैगंबर और उन लोगों के लिए सही नहीं है जो कि अल्लाह से ‘मुशरिकून’ के लिए माफी माँगते हैं। वे चाहे रिश्तेदार ही हों, उनके लिए ये स्पष्ट है कि वे नर्क में रहने वाले हैं। क्षमा माँगते हैं, भले ही वे रिश्तेदार हों, उनके लिए यह स्पष्ट हो गया है कि वे आग के निवासी हैं। [9: 113 ]।” मुस्लिम विद्वान का कहना था कि लोगों को अपनी जागरूकता को बढ़ाकर अन्याय के खिलाफ खड़े हों? हाँ। उसके लिए दुआ करें? नहीं।”

कामरान के ट्वीट का स्क्रीनशॉट

फिर क्या था, इस ट्वीट के बाद इस्लामिक विद्वान के फॉलोवर्स ने ‘अल जजीरा’ की पत्रकार के धर्म पर चर्चा करना शुरू कर दिया। इसी क्रम में एक और इस्लामिस्ट ने पूछा, “जब पैगम्बर को अपनी अम्मी के लिए दुआ माँगने का अधिकार नहीं था, तो कोई कैसे किसी मरी हुई काफिर के लिए दुआ करने का दुस्साहस कैसे कर सकता है। आपके लिए ज्यादा अहम कौन है? उनकी अम्मी या फिर एक ईसाई पत्रकार जो जज़ीरा के लिए काम करती हैं? जाहिर है उनकी अम्मी।”

ट्वीट का स्क्रीनशॉट

इसी तरह से एक अन्य ट्विटर यूजर ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि शिरीन अबू अकलेह सही में ‘काफिर’ थीं। इस शब्द का इस्तेमाल दुनियाभर के इस्लामिस्ट गैर-मुस्लिमों को प्रताड़ित करने के लिए व्यापक रूप से करते है।

ट्वीट का स्क्रीनशॉट

इसी क्रम में कई और इस्मावादियों ने ये जानने के लिए ट्वीट किया कि क्या सही में अल जज़ीरा की मृत पत्रकार गैर-मुस्लिम थीं।

ट्वीट का स्क्रीनशॉट

शिरीन अबू अकलेह की हत्या

वेस्ट बैंक में इजरायल की डिफेंस फोर्स और फिलिस्तीन के लड़ाकों के बीच इसी साल 11 मई 2022 को गोलीबारी हो रही थी और जेनिन शहर में अल जजीरा की पत्रकार शिरीन अबू अकलेह रिपोर्टिंग कर रही थीं। उसी दौरान उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस घटना की आलोचना करते हुए अल जजीरा ने एक बयान जारी कर कहा था कि पत्रकार की हत्या अंतरराष्ट्रीय कानूनों उल्लंघन है।

अबू अकलेह की हत्या को जघन्य अपराध करार देते हुए अल जजीरा ने कहा, “हम दिवंगत साथी शिरीन की हत्या के लिए इजरायली सरकार और कब्जा कर रही फौजों को जिम्मेदार ठहराते हैं।” इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अबू अकलेह की टारगेटेड किलिंग के लिए इजरायली डिफेंस फोर्स को जिम्मदार ठहराया है। इस घटना के बाद न्यूयॉर्क टाइम्स को भी अपनी हेडलाइन को भी बदलना पड़ा था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया