कँटीले तार, रेलवे वाले पत्थर, मारो-भगाओ चिल्लाती भीड़… नगर निगम कर्मियों ने बताया हल्द्वानी में कैसे इस्लामी ने बरपाया कहर, बोले – हमें हनुमान जी ने बचाया

वाल्मीकि समाज के गब्बर, मिथुन और मनोज (बाएँ से दाएँ) ने बताया हल्द्वानी में कैसे भीड़ ने घेर कर किया हमला

उत्तराखंड के नैनीताल जनपद के हल्द्वानी स्थित बनभूलपुरा में प्रशासन द्वारा अवैध मदरसा और मस्जिद ध्वस्त किए जाने को लेकर भड़की भीड़ ने थाने और पेट्रोल पंप को फूँक दिया, पुलिसकर्मियों को ज़िंदा जलाने की कोशिश की। पत्रकारों तक को नहीं बख्शा गया। महिला पुलिसकर्मियों को जान बचाने के लिए भागना पड़ा। उनके कपड़े फाड़े गए। स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि इस्लामी कट्टरपंथी भीड़ नाम पूछ-पूछ कर मार रही थी, मुस्लिमों को छोड़ दिया जा रहा था और हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा था।

हल्द्वानी के कॉन्ग्रेस नेता गब्बर वाल्मीकि ने बताया है कि जहाँ पर दंगे भड़के, अगले दिन वहीं पर सफाईकर्मियों पर भी पत्थरबाजी हुई। उन्होंने पुलिस पर हमला करने वालों पर NSA (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) लगाए जाने को एक सही फैसला करार देते हुए कहा कि रेलवे लाइनों के पत्थर जमा कर के हमले के लिए रखा गया था। उन्होंने ये भी कहा कि इनके भीतर के ख़ुफ़िया राज़ बाहर नहीं निकल पाते हैं। जवाहर नगर के वार्ड संख्या 13 में रहने वाले गब्बर वाल्मीकि ने बताया कि प्रशासन के खिलाफ जाना इनकी सोची-समझी साजिश थी।

उन्होंने बताया कि हमले के लिए सरे इंतजाम पहले से रखे गए थे। नगर निगम के लोगों पर सोमवार (12 फरवरी, 2024) को भी पत्थर चले हैं। गब्बर वाल्मीकि जिला कॉन्ग्रेस के युवा सचिव हैं। उन्होंने अब्दुल मलिक को हल्द्वानी का सबसे अमीर आदमी बताया। उन्होंने कहा कि हमलावरों पर रासुका लगना चाहिए, पुलिस न हो तो कत्लेआम हो जाता। गब्बर वाल्मीकि ने बताया कि ऊपर से कटे हुए पत्थर फेंके जा रहे थे, नीचे वाले व्यक्ति का पत्थर ऊपर पहुँच ही नहीं पाएगा।

ऑपइंडिया ने एक अन्य सफाईकर्मी मिथुन वाल्मीकि से भी बातचीत की। उन्होंने बताया कि 20-25 सफाईकर्मियों को लेकर वो नगर निगम की गाड़ी चलाते हुए गए थे, लेकिन महिलाओं की भीड़ सामने आई और पुलिस से झड़प करने लगी, फिर बच्चों को आगे किया गया। उन्होंने बताया कि अचानक से पथराव शुरू हो गया, गाड़ी घेर लिया गया तो उतर कर भागना पड़ा। इसी क्रम में मिथुन वाल्मीकि के पाँव भीड़ द्वारा बिछाई गई तार में फँस गया, फिर उन पर ईंटें बरसाए गए।

फिर वो किसी तरह जान बचा कर निकले। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी और 2 बेटे हैं, माँ-बाप भी नहीं हैं, न भागते तो वो नहीं भाग पाते। उन्होंने बताया कि भीड़ ने सरिया भी ले रखा था, पुलिस वाले भी गिरते-पड़ते भाग रहे थे जान बचा कर। सफाईकर्मी मिथुन वाल्मीकि ने बताया कि उनकी तरफ से सब मारो-भगाओ चिल्ला रहे थे, ज़िंदा जलाने की साजिश थी। उनका इलाज सरकार चला रही है, उनका पाँव टूट गया है। अब वो अपनी नौकरी भी एकाध महीने ज्वाइन नहीं कर पाएँगे।

मिथुन वाल्मीकि ने बताया कि भाग कर घर पहुँचने के बाद उन्हें दर्द का एहसास हुआ। उन्होंने कहा कि बच्चे तक मार रहे थे, गाड़ी वगैरह जलाई गई, सरकारी संपत्ति जलाई गई। उन्होंने कहा कि वो मर गए तो कोई उनके घर को नहीं देखने वाला, ऐसे में वो वहाँ दोबारा काम करने नहीं जाएँगे। दलित समाज के ही एक अन्य सफाईकर्मी मनोज वाल्मीकि ने बताया कि वो निगम की तरफ से वहाँ गए थे, वहाँ महिलाओं को अधिकारी समझाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वापस आते समय भीड़ ने चारों तरफ से पत्थरबाजी की।

उनके हाथ में पत्थरों के कारण जख्म हुआ है। मनोज वाल्मीकि ने बताया कि दूसरे पक्ष से कोई भी व्यक्ति मारपीट करने वालों को मना नहीं कर रहा था। उनका भी इलाज सरकारी खर्च से चल रहा था। उन्होंने बताया कि पुलिस और नगर निगम का एक भी कर्मचारी नहीं है जिसे चोट न लगी हो। उनका एक 15 साल का लड़का और एक बेटी है, उनके खुद के घर तक नहीं हैं जबकि अतिक्रमणकारी अवैध मकान बना कर रहे हैं, कार्रवाई होने पर वो दंगे करते हैं।

मनोज वाल्मीकि कहते हैं कि उन्हें हनुमान जी ने बचाया है। उन्होंने बताया कि कई छोटे-बड़े पत्थर पड़े, गमले जैसी चीज चला कर भी मारी गई। मनोज का कहना है कि उन्होंने हनुमान जी से गुहार लगाई कि वो उन्हें बचा लें, फिर उनके भीतर किसी तरह ताकत आई और वो सीधे भाग कर अपने वाल्मीकि मोहल्ले में पहुँचे। उनकी पत्नी का रो-रो कर बुरा हाल था। सफाईकर्मियों के आगे JCB रास्ता बनाती हुई चल रही थी, वरना कँटीले तारों में उलझ कर कई लोग मारे जा सकते थे।

नगर निगम के एक अन्य दलित कर्मचारी सागर सोनकर भी घायल हैं। उन्होंने बताया कि वो दंगे के वक्त मौके पर मौजूद थे और उन्हें लगा कि उनकी मौत हो जाएगी। वो बेहोश हो गए थे। उन्होंने बताया कि ऐसा प्रतीत हो रहा था कि 6 महीने से इसकी साजिश चल रही थी। बकौल सागर सोनकर, लगातार उनका खून बह रहा था। उन्हें घर भाग कर आते-आते 7-8 घंटे लग गए, क्योंकि जिस तरफ से वो जा रहे थे उधर ही पत्थर चल रहे थे। उन्होंने बताया कि पत्थरबाजों को उनके समाज के लोग रोक भी नहीं रहे थे। उन्होंने बताया कि अगर वो न भागते तो उनकी हत्या कर दी जाती।

राहुल पाण्डेय: धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।