मस्जिदों में जाने से नहीं रोका तो… इकट्ठा होकर नमाज पढ़ने से पहले फतेहपुरी मस्जिद के इमाम की सुन लें

लॉकडाउन के बावजूद सामूहिक नमाज से बाज नहीं आ रहे मजहबी ठेकेदार (प्रतीकात्मक तस्वीर)

कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए देश में 21 दिन का लॉकडाउन है। इससे पहले से ही लोगों से एक जगह इकट्ठा न होने और सोशल डिस्टेंसिंग की अपील की जा रही है। इस संक्रमण से बचाव का सबसे कारगर उपाय सोशल डिस्टेंसिंग ही है। बावजूद इसके देश के अलग-अलग हिस्सों से नमाज पढ़ने के लिए मस्जिदों में लोगों के जमा होने की खबरें आती रही है। प्रशासन की सख्ती के बाद अब उलमा भी लोगों से नमाज के लिए मस्जिद में जमा नहीं होने की अपील कर रहे हैं। शुक्रवार को जुमा के बावजूद लोगों से मस्जिद नहीं आने और घरों से ही नमाज अदा करने की अपील कर रहे हैं।

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फतेहपुरी मस्जिद के इमाम मुकर्रम अहमद ने अपील की है कि लोग अपने घरों में नमाज अदा करें और पुलिस-प्रशासन के निर्देशों का पालन करें। उन्होंने कहा है कि यही समय की माँग है। इससे पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा था कि मुस्लिमों को मस्जिदों में जुमे की नमाज अदा करने के बजाय घर पर रहकर नमाज अदा करनी चाहिए, जिससे कि अपने नागरिकों को नुकसान पहुँचाने से बचाया जा सके।

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इस बीच मस्जिद में नमाज के लिए इकट्ठा नहीं होने और एक जगह जमा होने से कोरोना संक्रमण के खतरे से आगाह करता एक ऑडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। इसे एक बार समुदाय विशेष के उन लोगों को जरूर सुनना चाहिए, जो लॉकडाउन के बाद भी मस्जिद में जाने और वहाँ नमाज पढ़ने के लिए पुलिस-प्रशासन से भिड़ने के लिए तैयार हैं।

ऑडियो में आप सुन सकते हैं कि एक शख्स मौलाना मुफ्ती से फोन कॉल पर बात करते हुए बताता है कि बीते दिन हमारी जामिया में एक बैठक हुई थी, जिसमें हिंदुस्तान के टॉप 8 डॉक्टर शामिल थे। वह कहता है कि इस बैठक में मुफ्ती और कुछ मौलाना भी मौजूद थे, लेकिन बैठक में जो बातें सामने आई हैं वह बेहद हैरान करने वाली और मन को दुखी करने वाली हैं। कहा जा रहा है कि पहली जो जंग हुई थी या फिर पहली बार जब न्यूक्लियर बम इस्तेमाल किया गया था उसमें जितने लोग मारे गए थे, उससे कहीं ज्यादा कोरोना नाम की बीमारी लोगों का शिकार कर ले जाएगी। अगर बात की जाए भारत में इस बीमारी के फैलने की जो रफ्तार है वह 2.5 है। चीन ने इस पर कंट्रोल किया है जो कि बाद में दूसरे मुल्कों में यह 4 प्रतिशत और बाद में 6 प्रतिशत तक फैला। खास तौर पर इटली और ईरान में।

ऑडियो में आगे शख्स कहता है कि हालाँकि हिंदुस्तान में अभी इस बीमारी ने वो रफ्तार नहीं पकड़ी है, लेकिन अगर रफ्तार पकड़ लेती है तो दो करोड़ से अधिक लोग इसकी चपेट में आ जाएँगे और ईरान जैसे हालात देश में पैदा हो सकते हैं। जैसे कि वहाँ बुलडोजरों से लाशों को दफन किया जा रहा है। अगर ऐसे में हमने अपने लोगों को मस्जिदों में जाने से नहीं रोका तो यह बीमारी देश में और भी भयानक रूप ले सकती है। वहीं हैदराबाद में जिन मरीजों को आइसोलेशन में रखा गया है उनका डेटा आ गया है कि उनमें से 80 फीसद लोग समुदाय विशेष के हैं और 20 फीसदी में अन्य समुदाय के लोग हैं।

तो यह बीमारी अब दूसरी ओर मुड़ चुकी है और इस मामले में सोशल मीडिया पर बहस भी छिड़ गई है और ज्यादा देर नहीं लगेगी यह बात संसद तक भी पहुँच जाएगी कि समुदाय विशेष की लापरवाही की वजह से और लॉकडाउन के बाद भी लगातार मस्जिदों में जाने की वजह से देश में तबाही मची और इसे मुस्लिमों ने ही हवा दी है। इस तरह बड़े पैमाने पर मुस्लिमों का बायकॉट होगा और फिर पूरा मीडिया और राजनीतिक लोग मुस्लिमों के खिलाफ लिखेंगे। इसलिए एक पैगाम देने की कोशिश करता हूँ “मौलाना पूरी कोशिश कर डालिए कि मुस्लिम जमात और ज़ुमा से अभी रुक जाएँ और अपने घरों में ही नमाज पढ़े” और नियम के मुताबिक ज़ुमा में 4 लोग ही शामिल रहें और फिर नमाज के बाद मस्जिद को बंद कर दिया जाए।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया