बहू-बेटियों की इज्जत बचाने के लिए हिन्दू खा रहे थे गोली और पत्थर: शिव विहार ग्राउंड रिपोर्ट

दंगाइयों का बेस अड्डा राजधानी स्कूल (दाएँ), हिंदू के DRP स्कूल को कर दिया गया तबाह

दिल्ली में हिन्दू-विरोधी दंगों में मजहबी दंगाई भीड़ ने जमकर कहर बरपाया। जहाँ एक तरफ मीडिया का एक बड़ा वर्ग इस मामले में एकदम पक्षतापूर्ण रिपोर्टिंग में लगा हुआ है, हमने ग्राउंड पर जाकर सही स्थिति को आप तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया। इसी क्रम में हम नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली के करावल नगर स्थित शिव विहार पहुँचे, जो इन भीषण दंगों का सबसे बड़ा गवाह बना है। वहाँ हमने स्थानीय लोगों से बातचीत की, मजहबी भीड़ की क्रूरता की कहानियाँ सुनीं और फिर हर एक विवरण को कैमरे में कैद करने का प्रयास किया। शिव विहार चौक पर इन दंगों का सबसे ज्यादा असर हुआ।

शिव विहार चौक पर दो स्कूल हैं। एक का नाम है- राजधानी पब्लिक स्कूल। वहीं दूसरे का नाम है- डीआरपी स्कूल। राजधानी स्कूल एक समुदाय विशेष के व्यक्ति का है, जबकि डीआरपी स्कूल के ओनर कोई शर्मा जी हैं। एक स्कूल को ख़ाक में मिला दिया गया, जबकि दूसरे स्कूल को पूरे क्षेत्र में शांति भंग करने का अड्डा बनाया गया। आप समझ सकते हैं कि किस स्कूल के साथ क्या किया गया होगा। राजधानी स्कूल को एक ‘अटैक बेस’ की तरह प्रयोग में लाया गया। वहाँ दंगाइयों को संरक्षण मिला। वहाँ से पूरे क्षेत्र में बमबारी की गई, पत्थरबाजी हुई, गोली चलाई गई। उसकी छत पर हमें कई गुलेल पड़े मिले, जिनका इस्तेमाल कर भारी पत्थरों और पेट्रोल बम को भी दूर तक निशाना बना कर फेंका गया।

शिव विहार का राजधानी स्कूल- जो बना ‘आतंक का अड्डा’

जब ऑपइंडिया की टीम राजधानी स्कूल की छत पर पहुँची तो वहाँ का माहौल देख कर ऐसा लगा कि वहाँ कई दिनों से हमले की पूरी तैयारी की जा रही थी। वहीं पर एक स्थानीय व्यक्ति सुरक्षा बलों को खाना-पीना खिलाने में लगे हुए थे। उन्होंने हमें बताया कि जितनी भारी संख्या में पत्थर और पेट्रोल बमों का प्रयाग किया गया, लगता नहीं था कि इतना सबकुछ एक ही दिन में जुटाना संभव हो पाया होगा। हमने कई ऐसे बड़े-बड़े कंटेनर देखे, जिनमें पत्थर अभी तक भरे हुए थे। उन कंटेनरों का इस्तेमाल पत्थर ढोने के लिए किया गया था।

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राजधानी स्कूल के बगल में एक मैरिज हॉल है, जिसमें कई गाड़ियाँ लगी हुई थीं। वहाँ काफ़ी सारे स्थानीय लोग जमा थे, जो इस बात की शिकायत कर रहे थे कि मीडिया यहाँ काफ़ी देर से पहुँचा। स्थानीय लोगों ने बताया कि उस मैरिज हॉल को उन्हीं मजहबी दंगाइयों ने तबाह किया, जो राजधानी स्कूल को ‘अटैक बेस’ बनाए हुए थे। उसके बगल में स्थित डीआरपी स्कूल जलाने के पीछे भी राजधानी स्कूल में जमा मजहबी दंगाइयों की भीड़ को ही जिम्मेदार ठहराया गया। जैसे-जैसे हम लोगों से बातचीत करते हुए आगे बढ़ रहे थे, हमें एक-एक बात पूरी तरह स्पष्ट होती हुई दिख रही थी। वो ये कि यहाँ भी उसी तरह से दंगे को अंजाम दिया गया, जिस तरह से चाँदबाग़ में ताहिर हुसैन के बहुमंजिला मकान को बेस बनाकर अधिक से अधिक हिन्दुओं को नुकसान पहुँचाया गया।


दंगाई भीड़ द्वारा DRP स्कूल को पूरी तरह से जला दिया गया – टूटे दरवाजे, हर तरफ आग ही आग

जैसे चाँदबाग में आम आदमी पार्टी के निलंबित निगम पार्षद ताहिर हुसैन की इमारत आतंकियों की पनाहगार बनी, शिव विहार चौक पर स्थित राजधानी स्कूल को भी यही किरदार दिया गया। आइए, अब आपको बताते हैं कि हुआ क्या था। सबसे पहले तो कट्टरपंथियों की एक बड़ी भीड़ राजधानी स्कूल पहुँची। स्थानीय लोगों का आरोप है कि वो स्कूल के मालिक के समुदाय विशेष से होने के कारण योजना के तहत ही उसे चुना गया था। राजधानी स्कूल की छत पर पत्थर, पेट्रोल बम और गुलेल सहित कई हथियारों का इंतजाम पहले से ही किया गया था। साथ ही सामने की एक चार मंजिला इमारत भी आतंक का अड्डा था जहाँ से पेट्रोल बम, पत्थर फेंके गए, गोली दागी गई। इन दोनों जगहों पर ‘अटैक बेस’ बनने से कट्टरपंथी दंगाइयों को काफ़ी फायदे हुआ, क्योंकि वे काफी ऊँचाई से आस-पास के काफी दूर तक हिन्दुओं के घरों को निशाना बना सकते थे। कहीं-कहीं दंगाइयों की संख्या 1000 से ज़्यादा बताई जा रही है।

सबसे पहली बात तो ये कि वो स्कूल की इमारत उस क्षेत्र के बाकी इमारतों से अपेक्षाकृत ऊँची है। इससे आसपास के घरों पर हमला करना आसान हो गया। उसके आसपास हिन्दुओं के प्रतिष्ठान हैं और कई हिन्दुओं के घर हैं। एक भी ऐसे घर की छत नहीं दिखी, जहाँ राजधानी स्कूल की छत से पत्थरबाजी न हुई हो। छत से गोली भी चलाई गई। गोली लगने से एक व्यक्ति की तत्काल मौत हो गई थी, जिसका नाम दिनेश कुमार है। इसके अलावा कई हिन्दू घायल हैं जिनका इलाज चल रहा है। मजहबी दंगाई भीड़ की गोली से मरने वाले दिनेश जी के भाई सुरेश से ऑपइंडिया ने संपर्क किया है और जल्द ही इस पर विस्तृत रिपोर्ट आएगी। गोली दिनेश के सिर के ठीक बीच में लगी थी।

ये दंगाई इसी थोड़े से क्षेत्र तक सीमित रहे चौक से आगे बढ़कर और अंदर तक हिन्दुओं को नुकसान न पहुँचाएँ इसके लिए उन्हें भी सड़क पर उतरना पड़ा। प्रत्यक्षदर्शी ने बताया जब जब हिन्दुओं ने जवाबी कार्रवाई की तब मजहबी भीड़ थोड़ी डर गई। फिर भी कोई पहले से प्लानिंग न होने और उनकी तुलना में नीचे से प्रतिकार करने की वजह से हिन्दू समुदाय का नुकसान ज़्यादा हुआ। मजहबी भीड़ को रोकने के लिए पत्थर खाना, पेट्रोल बम का वार सहना और गोली से निशाना बनना- ये सब हिन्दुओं की मज़बूरी थी। जब हमने सामने की दुकान में बैठे एक बुजुर्ग से पूछा कि आख़िर हिन्दू राजधानी स्कूल के नीचे जमा ही क्यों हुए थे, जब उन्हें पता था कि ऊपर से हमले हो रहे हैं? बुजुर्ग ने बताया:

“हमेशा ऊपर से नीचे वार करना आसान रहता है और किसी भी संघर्ष में नीचे पड़ जाने वाले को नुकसान होता आया है। हिन्दुओं की मज़बूरी थी कि वो पत्थरों के वार सहें, पेट्रोल बम से घायल हों और गोलियों की जद में जाएँ। अगर हिन्दू ऐसा नहीं करते तो शायद आज हमारी बहू-बेटियों की इज्जत नहीं बचती। अगर हिन्दू राजधानी स्कूल के नीचे से टस से मस भी होते तो इस्लामी भीड़ हमारे घरों में घुस जाती तो हमारी बहू-बेटियों का क्या होता, ये आप ही समझ लीजिए। हिन्दुओं ने इसलिए संघर्ष करना उचित समझा क्योंकि उग्र दंगाई भीड़ को रोकने का यही एक तरीका था- भले उनका निशाना बनो लेकिन डटे रहो।”

राजधानी स्कूल में तोड़फोड़ वाली ख़बर मीडिया में ख़ूब चलीं लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि ये तोड़फोड़ एकदम दिखावटी था। स्थानीय लोगों का सवाल है कि डीआरपी स्कूल को राख में बदल दिया गया और राजधानी स्कूल में मामूली सी तोड़फोड़ हुई, ऐसा कैसे सम्भव है? हमने सच्चाई जानने के लिए दोनों स्कूलों का कोना-कोना खंगाल डाला और हमने जो पाया, वो बेहद चौंकाने वाला था। जी हाँ, राजधानी स्कूल में अधिकतर कक्षाओं में बेंच-डेस्क एकदम सही तरीके से रखे गए थे और 2-4 डेस्क उलट-पलट दिए गए थे। सबसे नीचे वाले फर्श पर जरूर कुछ सामान बिखरा था, लेकिन वहाँ के लोगों का कहना है कि ये सब दिखावटी तौर पर था ताकि लगे कि यहाँ भी हिंसा हुई है।

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वहाँ कुछेक चीजों को जला कर एक जगह रखा गया था, जिससे प्रतीत होता था कि उन्हें जलाया गया है। लेकिन, स्कूल की दीवारों को जरा भी नुकसान नहीं पहुँचाया गया था। वो स्कूल, जिसके दरवाजे पर ही लिखा हुआ था- “नो सीएए, नो एनपीआर“। सोचिए, वहाँ बच्चों को क्या पाठ पढ़ाया जाता होगा। स्कूल के हर फ्लोर तक पहुँचे हम लेकिन कहीं भी ऐसा नहीं दिखा कि कोई बड़ी तोड़फोड़ हुई हो। जैसा कि हमने ऊपर बताया, स्कूल की छत पर वो सारे सबूत मौजूद थे, जिनसे पता चलता है कि वहाँ एक ‘युद्ध’ के हिसाब से तैयारी की गई थी। बम बनाने में प्रयोग होने वाले कई मटेरियल भी पड़े हुए थे।

अब बगल के डीआरपी स्कूल का हाल सुनिए, जहाँ कई पेरेंट्स अपने बच्चों के साथ जमा हुए थे। वहाँ हमें एक जंजीर लटकी हुई दिखाई गई, जिसके सहारे दंगाई राजधानी स्कूल से उतर कर डीआरपी स्कूल में आए थे। फिर बाहर से भी करीब 300 के आसपास दंगाई DRP स्कूल में घूसे और स्कूल की हर एक कक्षा में एक-एक बेंच-डेस्क सहित पूरा स्कूल जला डाला। ब्लैकबोर्ड्स तोड़ डाले गए।


दंगाई भीड़ द्वारा DRP स्कूल को पूरी तरह से जला दिया गया , यहाँ तक की फर्नीचर भी एक जगह इकट्ठा करके आग के हवाले कर दिया गया

जली हुई वस्तुओं की दुर्गन्ध वातावरण में बुरी तरह फैली हुई थी। अपनी भतीजी के साथ आई एक महिला ने बताया कि ये सब समुदाय विशेष के कट्टरपंथियों ने किया है। वहाँ विडियो शूट करने आए एक युट्यूबर ने हमें बताया कि भारतीय संस्कृति में गुरु का दर्जा सबसे ऊपर है और विद्या के जिस मंदिर में बच्चों को पढ़ाया जाता है, उसका ये हाल करना दिखाता है कि दंगाई भीड़ पर किस कदर मजहबी उन्माद हावी था।

वहाँ एक स्थानीय नागरिक उमेश हमें मिले। “ये सब मुस्लिमों ने किया है, मोहम्डन की करतूत है ये।“- उन्होंने हमारे सवाल का यही जवाब दिया। हालाँकि, कई लोग ऑफ द रिकॉर्ड यही बात दोहरा रहे थे लेकिन कैमरे के सामने बोलने से बच रहे थे, क्योंकि उनका कहना था कि अगर उन्हें उसी इलाक़े में रहना है तो कैमरे के सामने आना सही नहीं होगा क्योंकि जैसे आज निशाना बनाया कल भी बना लेंगे।

पूरी कहानी कुछ यूँ है- राजधानी स्कूल की छत पर और आसपास मौजूद हजारों की मजहबी भीड़ ने फायरिंग की, बमबारी की, पत्थरबाजी की और फिर बगल के करीब 300 मजहबी दंगाई भीड़ ने DRP स्कूल को जला दिया। कितने मरे हैं इस सवाल पर लोगों का कहना हैं कि वहाँ के नाले में अभी भी कई लाशें पड़ी हो सकती हैं, जिन पर किसी का ध्यान नहीं गया है। क्योंकि घरों से लोग गायब हैं।

इस लेख में सलग्न किए गए विभिन्न विडियो और फोटो में आप तबाही का मंजर देख सकते हैं और स्थानीय लोगों की राय भी सुन सकते हैं। पीड़ित हिन्दुओं का कहना है कि उनका दुख-दर्द कोई मीडिया वाले नहीं दिखा रहे। वे आक्रोशित और हतोत्साहित हैं। वे पीड़ित भी हैं और मीडिया का एक बड़ा वर्ग उन्हें दंगाई दिखाने में भी लगा हुआ है। दो स्कूलों की इस कहानी से स्पष्ट पता चलता है, कि कौन पीड़ित है और कौन दंगाई ?

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अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.