‘हिन्दुओं पर हमला था हिंसक भीड़ का मकसद, मीटिंग में चुन लिया था टारगेट’: दिल्ली दंगों में AAP के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन पर आरोप तय

दिल्ली 2020 हिन्दू विरोधी दंगों में ताहिर हुसैन पर हिन्दुओं पर हमले का आरोप तय ( फाइल फोटो)

दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के हिन्दू विरोधी दंगों में आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन पर आरोप तय कर दिए हैं। कोर्ट ने यह माना है कि हिंसक भीड़ के पास हिन्दुओं पर हमले का मकसद था। पुलिस के जाँच अधिकारी द्वारा इस हिंसा के जमा वीडियो फुटेज भी इस कार्रवाई में अहम रोल अदा किए। इन फुटेज के आधार पर कोर्ट ने यह माना है कि दंगों में ताहिर हुसैन ने सक्रिय भागीदारी निभाई है।

बार एन्ड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले की सुनवाई कड़कड़डूमा कोर्ट के सत्र न्यायाधीश पुलत्स्य कर रहे हैं। ताहिर हुसैन के साथ रियासत अली, गुलफाम, शाह आलम, रशीद शैफी, अरशद कय्यूम, लियाकत अली, मोहम्मद शादाब, मोहम्मद आबिद और इरशाद अहमद पर भी इसी केस में आरोप तय हुए। इन सभी पर दंगे भड़काने की धारा 147, हथियारों के साथ हिंसा की धारा 148, नफरत फैलाने की धारा 153- A, कानून व्यवश्ता बिगाड़ने की धारा 188, सामान्य चोट पहुँचाने की धारा 323, और डकैती की धारा 395 IPC के तहत आरोप तय हुए हैं।

सभी आरोपित पर आरोप तय करते हुए कोर्ट ने माना कि ताहिर हुसैन के घर पर जमा हिंसक भीड़ के हर सदस्य का मकसद हिन्दुओं को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुँचाना था। कोर्ट ने यह भी माना कि हिन्दुओ पर हमले के लिए ताहिर हुसैन के घर को एक बेस के तौर पर प्रयोग किया गया। आरोपितों पर चार्ज फ्रेम करते हुए कोर्ट ने कहा कि सभी आरोपितों पहले से हुई मीटिंग में मिले टारगेट पर काम कर रहे थे।

न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में यह भी बताया कि सबूतों से पता चलता है कि भीड़ ने तोड़फोड़ और आगजनी की थी। कोर्ट के मुताबिक ताहिर हुसैन के घर पर सोची समझी साजिश के तहत जमा हिंसक भीड़ में कईयों के पास गोली चलाने वाले हथियार भी थे। आगे हुई टिप्पणी में हिंसा के दौरान ताहिर हुसैन को अपने छत पर सक्रिय बताया गया है। कोर्ट ने मौजूद सबूतों के आधार पर ताहिर हुसैन के वकील की दलील में दम नहीं पाया कि आरोपित खुद ही हिंसा काबू करने के लिए पुलिस को फोन कर रहा था। ताहिर हुसैन पर 17 दिसम्बर 2022 को UAPA के तहत दर्ज केस आरोप तय होंगे।

ताहिर हुसैन के वकील ने एक तर्क और भी दिया कि पुलिस ने FIR दर्ज करने में देरी की। बचाव पक्ष के इस तर्क पर कोर्ट का मनाना था कि पुलिस हिंसा को काबू करने पर ज्यादा केंद्रित थी और वो कोविड-19 के नियमावली का पालन भी कर रही थी। ऐसे में FIR दर्ज करने के लिए जरूरी गवाहों के बयान में देरी होना लाजमी है। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ FIR में देरी के आधार पर ताहिर हुसैन के खिलाफ जमा तमाम सबूतों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इस मामले में पुलिस का पक्ष सरकारी वकील मधुकर पांडेय ने रखा जबकि आरोपितों की तरफ से तारा नरूला, सलीम मालिक, दिनेश कुमार तिवारी, जेड बाबर चौहान और शवाना ने बहस की।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया