बात हो किसी का गला काट देने की तो क्या छूटेगी आपकी हँसी? कन्हैया लाल पर ‘खुशी’ नहीं छिपा पाए निजामुद्दीन दरगाह के दीवान, देखें Video

हजरत निजामुद्दीन की दरगाह के दीवान अली मूसा निजामी कन्हैया लाल का जिक्र आते ही हँस पड़े

किसी इंसान का गला रेते जाने पर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी? आपकी इंसानियत जिंदा होगी तो आप यकीनन नहीं हँसेंगे। लेकिन, दिल्ली की हजरत निजामुद्दीन की दरगाह के दीवान अली मूसा निजामी कन्हैया लाल का जिक्र होते ही हँस पड़े।

उदयपुर में 28 जून 2022 को मोहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद ने कन्हैया लाल का गला काट डाला था। निजामी ने भी इसे ‘गलत’ बताया। लेकिन मेरे लिए यह देखना आश्चर्यजनक था कि वे जवाब देने से पहले हँस पड़े। ये वही निजामी थे जो कुछ देर पहले ही मुझे बता रहे थे कि 84 साल की उम्र होने के कारण उन्हें जिंदगी का बड़ा तजुर्बा है। जो तबलीगी जमात की मरकज की आलोचना करते हुए खुद को उस सूफीवाद का पहरेदार बता रहे थे जो उनके शब्दों में अमन-मो​हब्बत बढ़ाता है। जिसका आकर्षण ऐसा है कि हिंदू, मुस्लिम, सिख- सारे कौम के लोग खिंचे चले आते हैं।

ऊपर के वीडियो में आप देख सकते हैं कि कैसे कन्हैया लाल का सवाल आते ही निजामी हँसने लगते हैं। फिर बताते हैं कि वह गलत है। जब हमने उनसे पूछा कि कन्हैया लाल की हत्या को जब वे गलत मानते हैं तो ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगने पर उन जैसे लोग आगे आकर इसकी निंदा क्यों नहीं करते? उन्होंने माना कि यह नारा लगाना भी गलत है। उन्होंने कहा, “ये सब नहीं करना चाहिए। क्यों माहौल खराब करते हो। अच्छा-खासा माहौल है।” अपनी दलीलों में वे कथित गंगा-जमुनी तहजीब का भी हवाला देने लगते हैं।

गौरतलब है कि कन्हैया लाल की हत्या के बाद अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह से जुड़े लोगों के वीडियो भी सामने आए थे। इस दरगाह के एक खादिम गौहर चिश्ती के कनेक्शन उदयपुर की निर्मम हत्या से भी सामने आए थे। मीडिया रिपोर्टों में बताया गया था कि कन्हैया लाल की हत्या के बाद हत्यारे शरण लेने के लिए गौहर चिश्ती के पास अजमेर ही आ रहे थे, लेकिन रास्ते में पकड़े गए।

गौर करने वाली बात यह है कि लिबरल गैंग आए दिन जिस गंगा-जमुनी तहजीब की दुहाई देता रहता है, जिन सूफियों को ‘संत’ बताया जाता है, उसके दो बड़े केंद्र अजमेर और निजामुद्दीन की दरगाह हैं। बावजूद नूपुर शर्मा पर भड़काऊ बातें, भारत को हिला देने की धमकी, कन्हैया लाल के हत्यारों से कनेक्शन, कन्हैया लाल के सवाल पर हँसी… ये सब बताते हैं कि तबलीगी जमात का मरकज और हजरत निजामुद्दीन की दरगाह एक ही गली में नहीं हैं, सोच के स्तर पर भी दोनों एक जैसे हैं। शायद यही कारण है कि जिस दरगाह को श्रद्धा का केंद्र बताया जाता है, वहाँ तक जाने के लिए आप जिस रास्ते से गुजरते हैं, उसके दोनों ओर गोश्त के बड़े-बड़े टुकड़े लटके नजर आते हैं और इन दुकानों के पास ही गुलाब की पत्तियाँ भी बिक रही होती है।

(निजामुद्दीन की दरगाह पर आने वाले हिंदू 60% तक कम हो गए हैं, ग्राउंड रिपोर्ट इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ें)

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