दिल्ली दंगों की प्लानिंग का वॉट्सऐप चैट, OpIndia के हाथ आए एक्सक्लुसिव सबूत से समझिए क्या हुआ 24 फरवरी को

पूरी प्लानिंग के साथ दिल्ली दंगों को दिया अंजाम!

दिल्ली में हुआ हिंदू विरोधी दंगा स्वतःस्फूर्त नहीं था। इसके लिए साजिश रची गई थी। यह साजिश रची गई थी सड़क पर, घरों में हुए मीटिंग में और डिजिटल मीडियम में भी। ऑपइंडिया को इन दंगों की प्लानिंग को लेकर वॉट्सऐप ग्रुप का एक चैट सबूत कै तौर पर हाथ लगा है।

दिल्ली दंगों की प्लानिंग का वॉट्सऐप चैट-1

विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त इन दो वॉट्सऐप चैट को देख कर यह स्पष्ट है कि दंगों की प्लानिंग की गई थी। स्पष्ट यह भी है कि इसी ग्रुप में कुछ लोग हिंसा और दंगों की प्लानिंग को लेकर नाराज थे और लोगों को समझाने की कोशिश भी कर रहे थे।

दिल्ली दंगों की प्लानिंग का वॉट्सऐप चैट-2

पहले ऊपर के दो स्क्रीनशॉट को देखिए। यह 24 फरवरी 2020 की बातचीत है। इसमें अतहर युसूफजाई नाम का आदमी पहले कह रहा है, “नूर-ए-इलाही एरिया में बुरी तरह दंगा भड़क चुका है, दंगाई बसों में भरकर लोनी और पड़ोस के क्षेत्रों से लाए गए हैं। ‘क्या सभी सोच रहे है कि यह आइडिया (हिंसा का) सही है?’ ‘मुझे नहीं लगता है।” आगे अतहर मैसेज में कह रहा है, “CAA-समर्थक ग्रुप और पुलिस काफी सख्ती दिखा रही है, इसलिए बड़ा नुकसान हो सकता है।”

इसके बाद अनस तनवीर नाम का आदमी भी हिंसा की प्लानिंग को लेकर ग्रुप के अन्य लोगों को समझा रहा है। प्रोटेस्ट और हिंसा की प्लानिंग को लेकर वो एक तरह से लोगों को जगजाहिर कर धमकी भी दे रहा है। पुलिस मुख्यालय को घेरने की बात पर भी अनस तनवीर ने दिल्ली में रेड अलर्ट होने का तर्क देते हुए इसे बढ़िया आइडिया नहीं बताया। अनस की बात पर सहमति जताते हुए चिराग पटनायक ने भी हामी भरी है।

24 फरवरी से पहले वॉट्सऐप ग्रुप में क्या?

24 को हिंसा नहीं करने, हिंसा की प्लानिंग करने वालों को उजागर करने की बात होती है। इसका अर्थ क्या है? स्पष्ट है कि इससे पहले इसी ग्रुप में हिंसा की योजना बनाई गई होगी। जो इससे सहमत होंगे, वो खुश होंगे। जो असहमत रहे होंगे, उनके स्क्रीनशॉट बाहर आ रहे हैं।

दिल्ली दंगों में हिंसा की प्लानिंग इससे पहले भी इन्हीं ग्रुपों में से बाहर आ चुका है। ओवैस सुल्तान खान (Owais Sultan Khan) की एक पोस्ट के मुताबिक, पिंजरा तोड़ की लड़कियों ने वहाँ का महिलाओं को भड़काया कि वो सड़क जाम कर दें। खान ने यह भी लिखा कि वो इसके पक्ष में नहीं हैं क्योंकि इन लड़कियों ने पहले भी दरियागंज में मजहब विशेष की महिलाओं को विरोध में आगे कर दिया, पुलिस से लड़ गईं और फरार हो गईं, जिस कारण वहाँ की महिलाओं को पुलिस उठा कर ले गई।

ओवैस खान का फेसबुक पोस्ट

इन लड़कियों के समूह को अभिजात्य वर्ग का बताते हुए ओवैस खान ने स्पष्ट शब्दों में लिखा कि इनकी फंतासियों के चक्कर में सीलमपुर और ट्रांस-यमुना का इलाका काफी तनावपूर्ण स्थिति में है। ध्यान रहे कि दंगों की पूरी तैयारी इस समय हो चुकी थी और इन इलाकों में अगले दिन व्यवस्थित तरीके से आगजनी, हत्या और रक्तपात होना तय था।

इसी तरह के एक अन्य चैट में ओवेस सुल्तान खान का मैसेज पढ़कर यही समझ आ रहा है कि ओवेस लगातार साजिशकर्ताओं को समझाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं थी।

उक्त अनस तनवीर के बारे में हमारे सूत्र ने बताया कि वह एक वकील है जो कि CAA विरोधी आंदोलनों में आंदोलनकारियों को बचाने में, उन्हें कानूनी सहायता देने में अग्रणी रहा है। यहाँ पर, जब उसे लग गया कि दंगाइयों की योजना बड़ी है, और शायद नियंत्रण से बाहर जा सकती है तब वह बगुला भगत बनने की कोशिश करता पाया गया। यही बात उसके चैट्स में मौजूद है।

ऑपइंडिया लगातार ऐसे सबूत इकट्ठा कर रहा है ताकि लोगों को पता चले कि लाशों की संख्या गिनने वाले लोग सतही तौर पर भले ही हिन्दुओं और दिल्ली पुलिस के ऊपर यह दंगा थोप दें, लेकिन जिस तरह की गहन योजना बन रही थी, वह बताती है कि दंगे पूर्वनियोजित ही नहीं, बल्कि वृहद तौर पर प्लान किए गए थे।

जैसा कि कई चार्जशीटों में खुलासा हुआ है, कि दंगों की प्लानिंग लगातार अलग-अलग जगहों पर चल रही थी। ताहिर हुसैन की चार्जशीट में 8 जनवरी 2020 को उमर खालिद और खालिद सैफी से बातचीत का जिक्र है। उसी तरह भजनपुरा में रतनलाल जी की हत्या वाली चार्जशीट में चाँद बाग वाली मीटिॉग का जिक्र है। हम चार्जशीट पढ़ते जा रहे हैं और पता चलता जा रहा है कि प्लानिंग कई स्तर पर, सटीक और क्लिनिकल तरीके से चल रही थी।

लेकिन, इन स्क्रीनशॉट्स से यह पता चलता है कि वास्तव में ये लोग दंगा करने के लिए आतुर थे और जमीनी मीटिंग से ले कर डिजिटल तक, इनके ग्रुप में बस यही बात चल रही थी कि कैसे दंगे कराने हैं, कैसे पुलिस पर ही ब्लेम डालना है और कैसे लोकल लोगों का उपयोग कर के कुछ लोगों की राजनैतिक, मजहबी और वैचारिक घृणा को अंजाम तक पहुँचाना है। उन्हें यह भी पता होगा कि इस हिंसा में लाशें गिरेंगी। कुछ लोग सँभल गए जब उन्हें इसके विस्तार का पता चला, लेकिन कुछ नासमझ और मजहबी उन्माद से ग्रस्त दंगाई नहीं रुके क्योंकि उन्हें लगा था कि वो दिल्ली में आग लगा कर सत्ता पलट देंगे।

भला हो दिल्ली पुलिस का जिसने समय रहते इन पर काबू पा लिया, वरना यह दंगा क्या रूप लेता, और इसकी विभीषिका कितनों को लील जाती, शायद हम कल्पना नहीं कर सकते।

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