कश्मीर के बारे में आपको नैरेटिव के दलालों ने ये बताया था क्या?

जम्मू कश्मीर के वाल्मीकि समुदाय के लोग (बाएँ); मल साफ़ करता एक नवयुवक (प्रतीकात्मक चित्र)

कश्मीर में वाल्मीकि होते हैं। क्या हुआ, कश्मीरी वाल्मीकियों के बारे में नहीं सुना है? कोई बात नहीं, हम बता देते हैं। पुराने ज़माने के सूखे शौचालयों से मल सर पर उठा कर ले जाने वालों की जरुरत होती थी। आजादी के बाद कश्मीर में जब ऐसे सर पर मैला उठाने वालों की जरुरत पड़ी तो पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के पंजाब और अन्य प्रान्तों से ले जाकर कई वाल्मीकि परिवारों को Manual Scavenging यानि सर पर मल ढोने के लिए वहाँ की सरकार ने बुला कर बसा लिया।

इन लोगों से ये वादा किया गया कि इन्हें स्थायी नागरिक का दर्जा दिया जायेगा। मगर इस स्थायी नागरिकता के साथ शर्त ये थी कि आने वाले परिवार और उनकी आगे की पीढियाँ सिर्फ सर पर मल ढोने का काम ही करेंगी। शर्त ये थी कि वो लोग और उनकी आने वाली नस्लें अन्य नौकरी-रोजगार-व्यवसाय जैसा काम हरगिज़ नहीं कर सकते!

कश्मीर का वाल्मीकि सर पर मल ढोने के लिए कश्मीरी कानून के हिसाब से बाध्य है। जी हाँ, कश्मीर का संविधान अलग होता है। बाकी भारत में जहाँ किसी से ये काम करवाना अपराध है वहीं कश्मीर में हिन्दू समाज का एक हिस्सा सर पर मल ढोने के लिए क़ानूनी तौर पर बाध्य है। राजनैतिक धोखा इस समुदाय के साथ ये भी हुआ कि उन्हें आज भी स्थायी निवासी का दर्ज़ा नहीं मिला है। कश्मीरी हिन्दुओं के साथ ये अन्याय 1957 से जारी है। साठ साल में तीन पीढियाँ गुजर गई, मगर समाज का एक हिस्सा सर पर मल ढोता है!

क्या दल-हित चिंतकों ने आपको उनके बारे में बताया है? नहीं बताया होगा। उनकी आय के स्रोत विदेशी हैं, तो एजेंडा भी कहीं और के आदेश पर ही तय होता है। जाहिर है कानून बना कर कश्मीरी हिन्दुओं के शोषण पर उनके कलम कि स्याही सूख जाती है। उनकी नजर दिल्ली में अपना दरबार सजाने के सपने देखती है, इसलिए दलहित चिंतकों को दिल्ली से उत्तर में कश्मीरी वाल्मीकि समाज की ओर देखते ही रतौंधी हो जाती है। नोटों की भारी गड्डियाँ भारत को तोड़ने के लिए जबान पर रखी जाती है, उसके वजन से कश्मीरी हिन्दुओं कि बात करते वक्त उनकी जबान नहीं चल पाती।

जबरन दलित-सवर्ण के मुद्दे खड़े करते दलहित चिंतकों कि दहाड़ती आवाज को हम कश्मीरी वाल्मीकियों के मुद्दे पर खौफ़नाक ख़ामोशी में बदलते देखते हैं। हमें भारत निस्संदेह एक मजेदार देश लगता है।

Anand Kumar: Tread cautiously, here sentiments may get hurt!