संन्यासी बनकर नहीं मोड़ सकते घरवालों से मुँह, कोर्ट ने बेटे को दिया परिवार को ₹10000 मासिक देने का आदेश

अहमदाबाद फैमिली कोर्ट ने संन्यासी बेटे को दिया फर्ज निभाने का आदेश

गुजरात के एक फैमिली कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर कोई शख्स संन्यासी बनने का रास्ता चुनता है तो वह अपने माता-पिता की जिम्मेदारी से नहीं भाग सकता। एक मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अपना ये फैसला सुनाया। अदालत ने संन्यास ले चुके 27 वर्षीय धर्मेश गोल नामक शख्स को अपने माता-पिता को 10 हजार रुपए मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है और कहा है कि वो संन्यासी बनकर अपने माता पिता की जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकता।

जानकारी के मुताबिक साल 2015 में नौकरी छोड़ने के बाद धर्मेश संन्यासी बना था। उसने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च से फार्मेसी की हुई है और वे छोटी उम्र में ही गोल इंटरनेशनल सोसॉयटी ऑफ कृष्णा कॉन्शसनेस की गतिविधियों से प्रभावित हुआ।

उसने समाज त्यागकर अक्षय पात्र, टच स्टोन और अन्नपूर्णा नाम की एनजीओ का संचालन शुरू किया और अपनी माँ भीखीबैन और पिता लीलाभाई से हर प्रकार का रिश्ता तोड़ लिया।

माँ-बाप ने अपने बेटे को इस दौरान मनाने की बहुत कोशिश की। लेकिन बेटे ने एक नहीं सुनी। थक-हारकर उन्होंने पुलिस से भी गुहार लगाई, लेकिन जब बेटा घर नहीं लौटा, तो माता-पिता ने उसके ख़िलाफ़ अहमदाबाद फैमिली कोर्ट में उन्हें 50 हजार रुपए का गुजारा भत्ता देने का मुकदमा दायर कर दिया।

याचिका में माता-पिता ने अपनी सभी परेशानियों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि वे शारीरिक रूप से अक्षम हैं और उनके पास आय का भी कोई साधन नहीं है।

लड़के के पिता लीलाभाई ने बताया कि वो 4 वर्ष पूर्व नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उन्होंने अपनी सारी जमा पूँजी बेटे को उच्च शिक्षा देने में खर्च कर दी। उन्हें अपने बच्चे से बड़ी उम्मीद थी कि वो बुढ़ापे में उनकी देखभाल करेगा, लेकिन उसने 4 साल पहले संन्यास ले लिया और उन्हें अकेला छोड़ दिया।

पिता का दावा है कि उन्होंने धर्मेश की शिक्षा पर 35 लाख रुपए खर्च किए थे। लेकिन पढ़ाई पूरी होने के बाद उसने 60,000 प्रति माह की नौकरी करने से मना कर दिया। पिता का कहना है कि उनका बेटा एक पुजारी के बहकावे में आकर एनजीओ चलाने लगा और अब वह एक लाख रुपए कमाता है।

हालाँकि, इस मामले में धर्मेश ने अपनी ओर से कोई दलील नहीं दी। इसलिए कोर्ट इस फैसले पर पहुँचा कि बेटे ने बिना किसी कारण के अपने माता-पिता को छोड़ा है। कोर्ट ने कहा कि परिजनों ने काफी मशक्कत के साथ बच्चे का पालन-पोषण करते हुए उसकी जरूरतों को पूरा किया।

अदालत ने आगे कहा, “न्याय का यह सिद्धांत है कि बेटे को कमाने के बाद अपने परिजनों की देखभाल करनी चाहिए।” कोर्ट ने धर्मेश की न्यूनतम आय 30 से 35 हजार रुपए मासिक आँकते हुए माता-पिता को 10 हजार रुपए मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।

इसके अलावा कोर्ट ने ये भी कहा कि गुजारे भत्ते की रकम इतनी ज्यादा नहीं होनी चाहिए की बेटे के लिए सजा बन जाए। और इतनी कम भी नहीं होनी चाहिए कि माता-पिता अपना भरण-पोषण न कर पाएँ। हालाँकि, बता दें कि कोर्ट का फैसले आने के बाद भी परिजन इस भत्ते की रकम से संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि वो इसके इजाफे के लिए हाई कोर्ट में अपील करेंगे।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया