रेप आरोपित रिज़वान की SC से जमानत रद्द, पीड़िता ‘सेक्स की आदी’ तर्क पर हाई कोर्ट से मिली था बेल

रेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले पर उठाए सवाल

बलात्कार के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के ज़मानत देने के फ़ैसले को पलटते हुए शुक्रवार (29 नवंबर) को आरोपित की ज़मानत तत्काल प्रभाव से रद्द करने का फ़ैसला सुनाया। इस मामले में डॉक्टर्स की एक रिपोर्ट को आधार बनाया गया था, जिसमें कहा गया था कि 16 साल की लड़की ‘सेक्स की आदी’ थी।

ख़बर के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा बलात्कार के आरोपित रिज़वान को ज़मानत देने वाले फ़ैसले पर कड़ी आपत्ति दर्ज की। CJI की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि कथित घटना के लिए रिज़वान को 3 अप्रैल, 2018 को दी गई ज़मानत को रद्द कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपित को चार सप्ताह के भीतर मुज़फ़्फ़रनगर अदालत में आत्मसमर्पण करने के लिए कहा है।

हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार, लड़की के पिता की शिक़ायत पर यूपी पुलिस द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा-376 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण का 3/4 अधिनियम (POCSO) अधिनियम के तहत FIR दर्ज की गई थी। डॉक्टरों ने लड़की की जाँच की – जो रेडियोलॉजिकल परीक्षण के मुताबिक लड़की की उम्र 16 साल थी।

मजिस्ट्रेट के सामने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-164 के तहत अपने बयान में, लड़की ने दावा किया कि रिज़वान ने बंदूक की नोक पर उसका यौन उत्पीड़न किया। उसने कहा कि जब उसने शोर मचाया तब उसके पिता तुरंत मौक़े पर पहुँचे और रिज़वान को रंगे हाथों पकड़ लिया। इसके बाद उन्होंने FIR दर्ज करवाई।

हाईकोर्ट ने 3 अप्रैल, 2018 के अपने आदेश में रिज़वान के वकील के सबमिशन दर्ज किए। इसके अनुसार,“मेडिकल जाँच रिपोर्ट से पता चलता है कि अभियोजन पक्ष ने पीड़िता को कोई आंतरिक या बाहरी चोट नहीं पहुँचाई… डॉक्टर द्वारा यह भी कहा गया कि उसे सेक्स करने की आदत थी।” आरोपित के वकील ने कहा कि FIR इसलिए दर्ज की गई क्योंकि लड़की के पिता ने घटना को स्वयं देखा। आरोपित 8 दिसंबर, 2017 से जेल में था।”

हाईकोर्ट ने “अपराध की प्रकृति, साक्ष्य, अभियुक्त की जटिलता” को ध्यान में रखा और कहा कि यह ज़मानत देने के लिए एक उपयुक्त मामला था। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत के आदेश को “सेक्स करने की आदत” के रूप में पाया और रिज़वान को दी गई ज़मानत को रद्द करने में दो मिनट नहीं लगाए।

ज़मानत देने के लिए एक आधार के रूप में ‘सेक्स की आदत’ की मेडिकल रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन उत्पीड़न के मामलों में किसी तरह की कोई ढिलाई नहीं होनी चाहिए। इससे पहले 1991 में, बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले को उलटते हुए (एक पुलिस अधिकारी और एक सेक्स वर्कर मामला) सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “केवल इसलिए कि वह सरलता से प्राप्त हो जाने वाली महिला हैं, उनके सबूतों को ख़त्म नहीं किया जा सकता है।”

कोर्ट का कहना था कि इस तरह की महिलाओं को भी निजता का अधिकार है, उनकी पसंद के अनुसार उनकी गोपनीयता पर आक्रमण नहीं किया जा सकता। यदि उनकी इच्छा के विरुद्ध कुछ होता है तो वो उक्त व्यक्ति से अपना बचाव करने की हक़दार हैं। उन्हें भी क़ानून की सुरक्षा पाने का एकसमान अधिकार प्राप्त है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया