ग्राउंड रिपोर्ट #1: मोदी सरकार के काम-काज के बारे में क्या सोचते हैं बनारसी लोग?

वाराणसी का अस्सी घाट

प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में कहा था, “माँ गंगा की सेवा करना मेरे भाग्य में है।” यही नहीं न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने गंगा के प्रति अपनी चिंता प्रकट करते हुए कहा था, “अगर हम गंगा को साफ़ करने में क़ामयाब हो जाते हैं तो इससे देश की 40 प्रतिशत आबादी के लिए एक बड़ी मदद होगी।”

प्रधानमंत्री के पद पर बैठने के कुछ ही समय बाद नरेंद्र मोदी ने जून 2014 में गंगा को पुनर्जीवित करने के लिए महत्वाकांक्षी ‘नमामि गंगे’ परियोजना को प्रारंभ किया। सरकार बनने के बाद अपने पहले ही बजट में मोदी सरकार ने 2037 करोड़ ‘नमामि गंगे‘ परियोजना के लिए स्वीकार किया था। इसके साथ ही अगले पाँच सालों में गंगा की सफ़ाई के लिए 20 हजार करोड़ रूपए खर्च करने की मंजूरी सरकार द्वारा दी गई थी।

सरकार की गंगा के प्रति गंभीरता का पता इसी बात से चलता है कि इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए मोदी सरकार ने अलग से एक मंत्रालय ही बना दिया है। ‘नमामि गंगे’ योजना पर सरकार की गंभीरता और विपक्ष के आरोप प्रत्यारोप के बीच ऑपइंडिया के रिपोर्टर ने ग्राउंड पर जाकर हक़ीक़त जानने की कोशिश की। वाराणसी व प्रयागराज के इस ग्राउंड रिपोर्ट को आप तीन खंडों में पढ़ पाएंगे। इसका पहला हिस्सा आप यहाँ पढ़ रहे हैं।

बाबतपुर हवाई अड्डे से बाहर आते हुए अंग्रेज़ीदाँ लोग, फर्श पर बिछे कालीन व एयर पोर्ट की चकाचौंध को देखकर एक पल के लिए मुझे भरोसा ही नहीं हो रहा था कि मैं बिस्मिल्ला ख़ान के बनारस में हूँ। लेकिन जैसे ही मैं हवाई अड्डे से बाहर निकलकर पार्किंग की तरफ़ बढ़ने लगा दीवारों पर लगी पान की पीक और बनारसी लोगों के अल्हड़ अंदाज़ को देखकर मुझे अहसास हो गया कि मैं सच में मस्तमौला बनारसी लोगों के बीच पहुँच गया हूँ।

आज से दो साल पहले के जिस बनारस को हमने देखा था, वो और आज के बनारस में बहुत फर्क़ आ गया है। हालाँकि, यह बात अलग है कि अंधरा पुल के संकरे रास्ते से गुजरते हुए आज भी हमें जाम का सामना करना पड़ता है, लेकिन कुछ ही समय बाद शहर की चमचमाते सड़कों पर एक्सलेटर दबाकर गाना गुनगुनाते हुए ड्राइवर जाम में लगने वाले समय को मैनेज कर लेता है।

होटल में थोड़ा आराम करने के बाद काशीनाथ सिंह की किताबों में वाराणसी के जिस अस्सी घाट को पढ़ा था, उसे देखने के लिए मैं अपने साथियों के साथ अस्सी घाट पर पहुँच गया। शाम के समय अस्सी घाट पर बैठकर दूर क्षितिज पर डूबते सूर्य को देखना निश्चित रुप से मेरे अंदर एक सकारात्मक उर्जा का संचार कर रहा था।

मेरे नजदीक बैठा एक आदमी मेरी ही तरह गंगा के उस छोर पर डूबते सूर्य के अलौकिक सौंदर्य को महसूस कर रहा था। कुछ ही देर में हमारी बातचीत शुरु हो गई फिर उसने बताया कि उसका नाम धीरेंद्र प्रताप है और वह बनारस के ही लंका क्षेत्र में रहते हैं।

वाराणसी के अस्सी घाट की सफाई तस्वीरों में देखी जा सकती है

धीरेंद्र ने ही मुझे बातचीत के दौरान देश की अध्यात्मिक और सांस्कृतिक नगरी वाराणसी के बारे में बताना शुरु कर दिया। उन्होंने बताया कि दरअसल वाराणसी का ही अपभ्रंश नाम बनारस है। धीरेंद्र के मुताबिक ‘वरूणा’ और ‘असि’ नाम की दो नदियाँ शहर से होकर बहती है, इसी वजह से इस शहर का नाम वाराणसी रखा गया है। यह बात अलग है कि गंगा से मिलने वाली यह दोनों ही नदि एक नाले का रुप ले चुकी है।

जब हमने धीरेंद्र से पूछा कि क्या मोदी जी के आने से बनारस में कुछ बदलाव हुआ है! इस सवाल के जवाब में धीरेंद्र कहते हैं कि आज जहाँ आप बैठे हैं पहले यहाँ चारों तरफ़ गंदगी का अंबार था, लेकिन अब आपको कहीं गंदगी नज़र नहीं आएगी। इसके साथ ही धीरेंद्र कहते हैं कि गंगा का पानी भी पहले की तुलना में अब काफ़ी साफ़ हुआ है। शहर के नाले की गंदगी को गंगा में गिरने से रोक दिया गया है। लेकिन जैसे ही हमने पूछा कि आप चुनाव में वोट किस पार्टी को करेंगे तो धीरेंद्र थोड़ा मुस्कराते हैं और फिर कहते हैं कि अभी मोदी को ही चांस मिलना चाहिए।

धीरेंद्र से बात करने के बाद हमने महसूस किया कि गंगा के उस पार सूर्यास्त होकर अंधेरा छा चुका है लेकिन अस्सी घाट पर शानदार लाइटिंग व्यवस्था की वजह से घाट जगमगा रहा है। धीरेंद्र ने बातचीत में मुझे बताया कि वो ब्राह्मण हैं। बनारस में ब्रह्मणों के ज्यादातर वोट मोदी के यहाँ से चुनाव लड़ने से पहले भी भाजपा के मुरली मनोहर जोशी को ही जाता रहा है।

ऐसे में धीरेंद्र से बात करने के बाद भले ही लोगों की राय जानने के लिए मेरी उत्सुकता बढ़ गई, लेकिन उनसे बात करने के बाद मुझे बहुत ज्यादा संतुष्टि नहीं मिली। इसीलिए मैंने कुछ और लोगों से बात करना उचित समझा।

धीरेंद्र के बाद मैंने घाट पर मौजूद मल्लाह जाति से ताल्लुक रखने वाले गोरखनाथ साहनी से बात करना उचित समझा। गोरखनाथ ने बताया कि ‘नमामि गंगे’ योजना ने काशी के साथ मेरी निजी जिंदगी को भी बदलकर रख दिया है। गोरख की मानें तो गंगा घाट की सफाई के बाद उनकी आमदनी तीन से चार गुणा अधिक हो गई है। पहले कम लोग अस्सी घाट की तरफ़ घूमने के लिए आते थे लेकिन जबसे घाट की सफ़ाई हुई है, घाट पर आने वाले लोगों की संख्या बढ़ गई है। गोरखनाथ से जब पूछा गया कि राहुल गाँधी  बोल रहे हैं, “मोदी चोर है।” इतना सुनते ही गोरखनाथ बोल उठते हैं कि ‘चोर के दाढ़ी में तिनका’ आपने सुना है। जो चोर होते हैं उन्हें दूसरे को चोर ही समझते हैं।

इसके साथ ही अखिलेश व मायावती के सवाल पर गोरखनाथ ने कहा कि अब जात-पात में समाज को बाँटने का समय नहीं रहा है। सीधी सी बात है कि इस सरकार ने मेरे हित में कुछ काम किया है इसलिए माँझी समाज के लोग मोदी जी को ही वोट करेंगे।

इसके बाद घाट पर ही गंगा आरती को देखते समय हमारी मुलाकात गोरखपुर के मदन मिश्रा और उनके परिवार से हुई। मदन जी के बजाय मैंने उनकी पत्नी क्षमा मिश्रा से बात करना ज्यादा उचित समझा। ऐसा इसलिए क्योंकि महिलाएँ सरकार के बारे में क्या सोच रही है, यह जानना बेहद जरूरी है।

वाराणसी घाट पर गंगा में डुबकी लगाते लोग

क्षमा मिश्रा से जब हमने पूछा कि योगी और मोदी की जोड़ी उत्तर प्रदेश में काम कर रही है! इस सवाल के जवाब में क्षमा मिश्रा कहती है कि एक बच्चा को पैदा होने के बाद 20 साल तक पालना-पोसना होता है, तब दो दशक बाद आपके मेहनत का परिणाम दिखता है। मोदी सरकार को आए अभी बस 5 साल हुआ है, ऐसे में मोदी को अभी औऱ समय दिया जाना चाहिए। यदि हम मोदी को ओर कुछ समय देंगे तो फिर सारे विश्व में सिर्फ हम ही हम होंगे।

कॉन्ग्रेस पार्टी ने अभी हाल में प्रियंका गाँधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश के महासचिव की जिम्मेदारी दी है। यही नहीं गोरखपुर ओर बनारस से उनके चुनाव लड़ने की बात भी चारों तरफ सुनाई दे रही है। ऐसे में जब हमने क्षमा मिश्रा से इस संदर्भ में पूछा तो उन्होंने का ‘शेर के मुँह में चूहा’, इतना कहने के बाद थोड़ा ठहर कर क्षमा ने कहा कि जनता विकास चाहती है और मोदी के सामने प्रधानमंत्री पद के लिए कोई दूसरे जोर के उम्मीदवार नहीं हैं। ऐसे में इस बार भी मोदी को ही केंद्र सरकार के लिए चुना जाना चाहिए।

इस बातचीत के बाद अब हमलोग घाट से सीधे होटल के लिए निकल गए। कल सुबह मुझे वाराणसी के कुछ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को देखने के लिए जाना था। ऐसे में हम आपको अपने ग्राउंड रिपोर्ट के अगले सीरिज में बताएंगे कि दो साल पहले और अभी के गंगा में क्या बदलाव हुआ है। सरकार के द्वारा शुरू की गई ‘नमामि गंगे योजना’ कितनी सफल या असफल हुई है। हजारों करोड़ खर्च के बाद जमीनी हकीकत क्या है?

अनुराग आनंद: अनुराग आनंद मूल रूप से (बांका ) बिहार के रहने वाले हैं। बैचलर की पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी करने के बाद जामिया से पीजी डिप्लोमा इन हिंदी पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद राजस्थान पत्रिका व दैनिक भास्कर जैसे संस्थानों में काम किया। अनुराग आनंद को कहानी और कविता लिखने का भी शौक है।