जय श्री राम और मुस्लिम टोपी: बरकत अली ने समाज में फैलाया जहर, मीडिया ने भी दिया साथ – CCTV से खुला राज

मुस्लिम युवक मोहम्मद बरकत अली (फोटो साभार: HT)

हरियाणा के गुरुग्राम में जामा मस्जिद के पास शनिवार (मई 25, 2019) की रात कथित तौर पर एक मुस्लिम युवक (बरकत अली) की टोपी फेंकने और जबरन जय श्री राम बुलवाने के मामले में एक नया खुलासा हुआ है। पुलिस ने इस मामले की गंभीरता को लेते हुए इसकी तहकीकात करनी शुरू की। शुरुआती जाँच में पुलिस ने उक्त इलाके में लगे सीसीटीवी के तकरीबन 50 फुटेज देखे, जिसमें सामने आया कि मुस्लिम युवक के साथ मारपीट हुई थी। लेकिन इस दौरान न तो किसी ने उसकी टोपी फेंकी और न ही उसकी शर्ट फाड़ी गई। इतना ही नहीं, शिकायतकर्ता मुस्लिम युवक को रोकने वाला आरोपी नहीं, बल्कि कोई अन्य व्यक्ति था।

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सीसीटीवी फुटेज को देखने पर शिकायतकर्ता मुस्लिम युवक के आरोप बिल्कुल निराधार हो गए हैं। इसे देखने के बाद ये बात निकल कर सामने आ रही है कि दोनों युवकों के बीच कहासुनी के बाद हाथापाई हुई और इस दौरान मुस्लिम युवक की टोपी गिर गई, जिसे उसने खुद ही उठाकर अपनी जेब में रखा, किसी दूसरे ने उसकी टोपी को हाथ तक नहीं लगाया। अब ये तो सामान्य सी बात है कि अगर दो लोगों के बीच में हाथापाई होगी, तो टोपी का नीचे गिरना तो स्वाभाविक है।

लेकिन सामान्य रिपोर्टिंग में मीडिया गिरोह को मसाला नहीं मिलता। इसलिए मुस्लिम की टोपी गिरी है, तो इसमें जबरन सांप्रदायिकता वाला एंगल ठूँसा गया, जो प्राय: ऐसे मामलों में गिरोह द्वारा हर बार करते देखा गया है। इससे पहले भी कई ऐसी घटनाएँ सामने आ चुकी हैं, जब मामूली सी मारपीट की घटना होती है, लेकिन कुछ मीडिया हाउस इसे सांप्रदायिकता का रंग देकर भुनाने की कोशिश करते हैं। ऐसा ही कुछ इस मामले में भी किया गया। ऊपर द हिंदू के हेडलाइन से लेकर नीचे द वायर और इंडिया टुडे तक की रिपोर्ट देख लीजिए, माजरा समझ में आ जाएगा। ‘आरोपी ने ऐसा कहा’ लिखने के बजाय ये लोग डायरेक्ट हेडलाइन ऐसी लिखते हैं मानो सही में पूरी घटना इन्होंने अपनी आँखों से देखी हो। कोट-अनकोट का कॉन्सेप्ट को इन लोगों ने मानो भूला ही दिया हो।

जाँच के बाद पुलिस अधिकारी आरोपी की पहचान करने में जुटे हुए हैं, जिसके लिए सीसीटीवी फुटेज को साफ करवाने के लिए लैब भेजा गया है। हालाँकि पुलिस का भी यही कहना है कि शराब के नशे में की गई मामूली सी मारपीट की घटना को कुछ असामाजिक तत्व सांप्रदायिकता का रंग देने का प्रयास कर रहे हैं।

गौरतलब है कि मुस्लिम युवक बरकत अली ने आरोप लगाया था कि वो शनिवार (मई 25, 2019) की रात मस्जिद से नमाज पढ़कर अपने घर जा रहा था। तभी रास्ते में 6 युवकों ने उसे रोका और टोपी उतारकर जय श्री राम बोलने के लिए बोला। बरकत का कहना है कि जब उसने ऐसा करने से मना किया तो युवकों ने उसके साथ मारपीट की। वहीं, अब बरकत का कहना है कि वह गुरुग्राम में असुरक्षित महसूस कर रहा है और वो शहर छोड़कर जाना चाहता है। मगर कमिश्नर ने उसे सुरक्षा का आश्वासन देते हुए जाँच पूरी होने तक गुरुग्राम में ही रूकने के लिए कहा है।

आए दिन ऐसा देखने को मिलता है कि सेलीब्रिटी मीडिया में आई खबरों की सच्चाई को जाने बिना ही उस पर अपना ज्ञान और विचार बाँटना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के तौर पर पूर्व क्रिकेटर और नवनिर्वाचित सांसद गौतम गंभीर के हालिया ट्वीट को लिया जा सकता है, जिसमें उन्होंने मुस्लिम युवक के मामले पर अपने विचार पेश किए थे। ऐसा करना एक सेलीब्रिटी को शोभा नहीं देता। इन लोगों को सिर्फ घटना के आधार पर नहीं, बल्कि जाँच में सामने आई हुई बातों के आधार पर अपनी बात रखनी चाहिए और इसके लिए उन्हें घटना की जाँच होने तक का इंतजार करना चाहिए।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया