ज्ञानवापी हिंदुओं की, वहाँ जबरदस्ती पढ़ी जा रही नमाज: बोले अधिवक्ता जैन- कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का मतलब इस्लाम की ताकत

ज्ञानवापी और कुव्व्त उल इस्लाम (बाएँ से दाएँ) (फोटो साभार: हिंदू/ट्रिप एडवाइजर)

वाराणसी के ज्ञानवापी विवादित ढाँचे (Gyanvapi Controversial Structure, Varanasi) सहित हिंदुओं के दर्जनों के केस लड़ चुके वकील हरिशंकर जैन ने कहा कि जिस पूजा स्थल कानून के आधार पर मुस्लिम सुनवाई रोकने की माँग कर रहे हैं, वहीं हिंदुओं की जीत का आधार बनेगा।

उन्होंने कहा कि विवादित परिसर में शिवलिंग का मिलना इस बात को स्पष्ट करता है कि वहाँ पहले मंदिर था और उसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई है। इसलिए इस मस्जिद को गिराई जानी चाहिए और मंदिर हिंदुओं को सौंप दिया जाना चाहिए।

हरिशंकर जैन ने कहा कि तहखाने के बीचों-बीच आदि विश्वेश्वर का स्थान है और शिवलिंग पहले यहीं स्थापित था। उन्होंने कहा कि मस्जिद अब भी पुराने मंदिर की नींव पर खड़ा है। उन्होंने कहा कि मंदिर को तोड़कर उस पर जबरदस्ती कब्जा किया गया और उसके बाद वहाँ नमाज पढ़ी जाने लगी।

उन्होंने कहा कि विवादित ढाँचा परिसर की वीडियोग्राफी हो चुकी है। इसी बहाने पर शिवलिंग की भी वैज्ञानिक जाँच हो जाएगी और जो लोग इस पर सवाल खड़ा कर रहे हैं, उनकी भी जुबान बंद हो जाएगी।

69 वर्षीय हरिशंकर जैन 1989 से हिंदुओं का केस बिना फीस लिए लड़ रहे हैं। पिछले 33 सालों में वे 110 केस लड़ चुके हैं। इनमें ज्ञानवापी, कुतुब मीनार, ताजमहल, मथुरा, टीले वाली मस्जिद और भोजशाला सहित 7 बड़े केस शामिल हैं। उनका साथ उनके अधिवक्ता बेटे विष्णु जैन देते हैं।

उन्होंने कहा कि देश में जहाँ-जहाँ मंदिर तोड़े गए हैं और जिसके प्रमाण हैं, उनकी वे लड़ाई लड़ेंगे। दैनिक भास्कर से बातचीत में हरिशंकर जैन ने कहा कि जिस मामले में पुख्ता प्रमाण मौजूद नहीं हैं, उसकी लड़ाई वे नहीं लड़ते हैं। 

दिल्ली के कुतुब मीनार मामले में वकील जैन ने कहा कि यहाँ 27 हिंदू-जैन मंदिरों को तोड़कर उनके मलबे से मस्जिद का निर्माण किया गया है। इसे कुव्वत-उल-इस्लाम नाम दिया गया, यानी इस्लाम की ताकत।

उन्होंने कहा कि वह मस्जिद नहीं, इस्लाम की ताकत का प्रतीक है कि देखो हिंदुओं हम तुम्हारे मंदिर तोड़ सकते हैं। इस बात के प्रमाण उपलब्ध हैं कि इस मस्जिद को 27 मंदिरों को तोड़ने के बाद बनवाया गया है।

हरिशंकर जैन ने कहा कि हिंदुओं के लिए सारे केस वे अपने खर्चे पर लड़ते हैं। उनकी कमाई का आधा लिटिगेशन में ही चला जाता है। जैन का कहना है कि उनके पीछे न कोई संगठन है और न ही वे किसी से चंदा लेते हैं। वे अपनी सुरक्षा की भी माँग नहीं करते, क्योंकि यह एक तरह का स्टेटस सिंबल है। उन्हें यह पसंद नहीं है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया