कश्मीर में 33 साल बाद आर्य समाज ने फिर से खोला अपना स्कूल: आतंकियों के कारण करना पड़ा था बंद, 370 निरस्त होने के बाद बदल रहे हालात

33 साल बाद श्रीनगर में खुला आर्य समाज ट्रस्ट का स्कूल (फोटो साभार: ग्रेटर कश्मीर वेबसाइट)

आर्य समाज ने आखिरकार 35 साल के बाद जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के डाउनटाउन में अपने सबसे पुराने शैक्षणिक संस्थानों में से एक को फिर से खोल दिया है। यहाँ पुराने शहर के महाराजगंज क्षेत्र में स्थित DAV पब्लिक स्कूल में साढ़े तीन दशकों के बाद फिर से छात्र-छात्राओं की आमद शुरू हो गई है।

धीरे-धीरे इस राज्य में 90 के दशक के आतंकवाद के भयावह दौर का खौफ कम होता जा रहा है। लोग अमन-चैन की तरफ लौटने लगे हैं। साल 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से यहाँ के हालात में बदलाव आ रहा है। इसका असर अब दिखने भी लगा है। सबूत इस स्कूल के दोबारा से खुलने के तौर पर सामने है।

दरअसल, आर्य समाज ट्रस्ट का ये स्कूल 1990 के दशक की शुरुआत में अलगाववादी आतंकवाद पनपने की वजह से 33 साल से तक बंद पड़ा रहा था। ‘ग्रेटर कश्मीर‘ को स्कूल की प्रिंसिपल और प्रबंधक समीना जावेद ने बताया कि संस्था को उसी जगह पर, उसी इमारत के अंदर, उसी प्रबंधन के तहत फिर से खोल दिया गया है।

अप्रैल से शुरू हुआ पहला सत्र

मूल रूप से लखनऊ के रहने वाले प्रिंसिपल जावेद ने बताया, “भारत भर में आर्य समाज से संबद्ध सभी स्कूलों को दयानंद आर्य विद्यालय या DAV के नाम से जाना जाता है।” उन्होंने ये भी जानकारी दी कि स्कूल ने इस साल अप्रैल में अपना पहला सत्र शुरू किया। इसके तहत कक्षा 7 तक 35 छात्रों का प्रारंभिक नामांकन था।

उन्होंने बताया, “हमें कक्षा 7 से ऊपर के छात्र मिले थे, लेकिन उन्हें JNV रैनावारी भेज दिया गया।” स्कूल जम्मू-कश्मीर बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन से संबद्ध है और जोनल एजुकेशन ऑफिसर (ZEO) रैनावारी के अधिकार क्षेत्र में आता है।

प्रिंसिपल और प्रबंधक जावेद ने इस बात पर जोर दिया कि स्कूल के छात्रों को उचित मार्गदर्शन और दिशा की जरूरत है। इसके लिए शिक्षक और प्रबंधन दोनों सामूहिक तौर से अपने शैक्षिक अनुभव को बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं।

आसान नहीं था स्कूल को फिर से खोलना

इस स्कूल को उस जगह और इमारत में दोबारा से स्थापित करना आसान नहीं था। इसे लेकर प्रिंसिपल ने कहा, “इसके लिए काफी कोशिशें करने की जरूरत थी, क्योंकि हमें इमारत को नया करना था, इसे सही रूप देना था और कक्षाएँ शुरू करनी थीं।”

उन्होंने आगे कहा, “स्कूल को फिर से खोलने में शुरुआती चुनौतियाँ थीं, लेकिन अब हम हर गुजरते दिन के साथ सकारात्मक बदलाव देख रहे हैं। माता-पिता और समुदाय सामान्य तौर पर सहयोगात्मक रहे हैं।”

लक्ष्य है छात्रों को धर्मनिरपेक्ष माहौल देना

स्कूल की प्रिंसिपल ने इस बात पर जोर दिया कि स्कूल प्रबंधन का पहला लक्ष्य छात्रों को धर्मनिरपेक्ष माहौल और उनके पूरे व्यक्तित्व विकास में योगदान देना है। सत्र की शुरुआत के बाद से ही छात्रों ने पर्यावरण दिवस, योग दिवस, शिक्षक दिवस और अन्य पाठ्येतर गतिविधियों जैसे विभिन्न कार्यक्रमों में सक्रिय तौर से शिरकत करवाई जा रही है।

प्रिंसिपल ने कहा, “हमारा ध्यान पाठ्यक्रम से परे भी है और हमारा लक्ष्य इन छात्रों को अन्य क्षेत्रों के लिए भी तैयार करना है। मैं निजी तौर से एक दिन में छह कक्षाएँ लेती हूँ।” उन्होंने आगे बताया कि स्कूल ने सात शिक्षकों की भर्ती की है। ये सभी स्थानीय लोग हैं जो इस स्कूल को चलाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। प्रिंसिपल जावेद ने कहा, “मेरा मानना है कि शिक्षक किसी भी स्कूल की रीढ़ होते हैं और हमारे शिक्षक स्कूल के सुचारू संचालन के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं।”

स्थानीय संस्था का था स्कूल पर कब्जा

एक अधिकारी ने खुलासा किया कि 90 के दशक की शुरुआत में पुराने शहर में स्कूल बंद होने के बाद एक अन्य स्कूल चलाने के लिए इमारत पर एक स्थानीय संस्था ने कब्जा कर लिया था। उन्होंने अपने स्थानीय स्कूल को डीएवी भवन में स्थानांतरित कर दिया क्योंकि डीएवी स्कूल बंद होने के बाद इसका इस्तेमाल कम हो गया था।

अधिकारी ने बताया, “हालाँकि, 2022 से स्कूल प्रबंधन ने इसे फिर से खोलने की कोशिशें शुरू कीं और इसका नतीजा रहा कि पहला सत्र इस साल अप्रैल में शुरू हो पाया।” दरअसल 1992 में स्कूल की इमारत पर एक स्थानीय शख्स ने कब्जा के बाद यहाँ प्राइवेट स्कूल नक्शबंदी पब्लिक खोला था।

हालाँकि, बाद में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आर्य समाज ट्रस्ट की जम्मू-कश्मीर इकाई के अध्यक्ष अरुण चौधरी ने एक स्थानीय कारोबारी की मदद से स्कूल को दोबारा हासिल कर लिया। नक्शबंदी पब्लिक में पढ़ने वाले छात्रों और उनके पेरेंट्स के विरोध के बावजूद आखिरकार अधिकारियों ने 2022 में ट्रस्ट को संपत्ति का कब्जा वापस सौंप दिया।

वंचित परिवारों के बच्चों के मिलती है शिक्षा

एक रिपोर्ट के मुताबिक, आर्य समाज ट्रस्‍ट का ये स्कूल अभी एक जर्जर इमारत में चल रहा है। यहाँ सराफ कदल इलाके में वंचित परिवारों के छात्र शिक्षा पा रहे हैं। इस पढ़ाई के बदले स्कूल कोई फीस नहीं लेता है। हालाँकि, कुछ पेरेंट्स अपनी मर्जी से 500 रुपए हर महीने का योगदान स्‍कूल को देते हैं। ये पैसा अभी इस मिडिल स्कूल को चलाने में मदद करता है, जिसमें आठवीं क्‍लास तक की कक्षाएँ लगाई जा रही है।

बच्चे भी हैं खुश

कश्मीर घाटी में डीएवी प्रबंधन अगले शैक्षणिक कैलेंडर से अपने सभी बंद पड़े स्कूलों को खोलने का प्लान बना रहा है। इससे छात्रों में खुशी की लहर है। पहले के नक्शबंद पब्लिक स्कूल की 10वीं कक्षा की छात्रा जायका ने कहा, “जब से डीएवी के तहत स्कूल फिर से खुला है, हमारी पढ़ाई का स्तर बढ़ गया है।” जायका की तरह अन्य छात्रों और शिक्षकों में उम्मीद जगी है कि स्कूल फिर से खुलने से श्रीनगर के पुराने शहर क्षेत्र में बेहतर शिक्षा मिलेगी और छात्रों को फायदा पहुँचेगा।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया