‘माहवारी के बाद लड़की नहीं दिखा सकती कोई अंग’: बुर्का विवाद पर HC में मँगवाई गई कुरान, आयतें भी पढ़ी गईं, हदीस से हुए तर्क

कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब मामले पर सुनवाई

कर्नाटक के पी यू कॉलेज में बुर्का पहनकर एंट्री न मिलने पर कर्नाटक हाईकोर्ट पहुँची रेशम फारूक की याचिका पर आज (फरवरी 8, 2022) अदालत में चली सुनवाई में लड़कियों के बुर्का को सही ठहराने के लिए दलीलें हदीस से लेकर माहवारी तक पहुँच गईं। अदालत में दलील देते हुए ‘सेकुलर सोच’ तक को मजहबी प्रथाओं से अलग रखने को कहा गया।

मुस्लिम लड़कियों की माँग को जायज बताने के लिए उनकी ओर से पेश वकील देवदत्त कमात ने केरल हाईकोर्ट के फैसले में दिए गए हदीस के हवाले का उल्लेख करते हुए कहा कि लड़कियों की माहवारी शुरू होने के बाद उनके लिए ये ठीक नहीं है कि वो अपने हाथ को छोड़कर शरीर का कोई भी अंग किसी को दिखाएँ। वकील ने कोर्ट में दलील दी कि सेकुलर सोच ये तय नहीं करती कि मजहब के लिए क्या सही है और क्या नहीं। उन्होंने कहा कि मजहबी अभ्यासों को सेकुलर विचारों के आधार पर नहीं आँका जाना चाहिए।

वहीं राज्य की ओर से पेश हुए एडवोकेट जनरल ने छात्रों द्वारा हाईकोर्ट में की गई माँग को लेकर कहा कि अगर छात्रों को किसी तरह की छूट चाहिए तो भी उन्हें कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी के पास जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्होंने इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया क्योंकि ये अधिकार उनकी ओर से कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी को दिए गए हैं कि वो निर्णय लें कि बच्चों की यूनिफॉर्म क्या होगी। जबकि, राज्य द्वारा याचिका का विरोध किए जाने पर वकील देवदत्त कमात ने कहा कि राज्य इस मामले में सहज नहीं है इसलिए वे इस याचिका का विरोध कर रहे हैं।

लड़कियों को कॉलेज बुर्का पहनने की परमिशन दिलवाने के लिए उनके वकील ने संविधान के कुछ अनुच्छेदों का हवाला दिया। कमात ने दलील दी कि बुर्का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (1) के तहत संरक्षित है। इसे केवल अनुच्छेद 19 (6 ) के आधार पर ही प्रतिबंधित किया जा सकता है।

कमात ने बुर्का को जायज ठहराने के लिए मद्रास, बॉम्बे और केरल हाईकोर्ट के फैसलों का उदाहरण देकर साबित करने का प्रयास किया कि ये कुरान द्वारा निर्देशित जरूरी मजहबी क्रिया है। कमात की ओर से बुर्का को सही ठहराने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पुट्टास्वामी फैसले का हवाला दिया गया। वकील ने अपने तर्क देते हुए कहा बुर्का पहनना निजता के अधिकार का एक पहलू है जिसे सुप्रीम कोर्ट के पुट्टास्वामी फैसले द्वारा अनुच्छेद 21 के हिस्से के रूप में मान्यता दी गई।

बता दें कि अदालत ने आज इस मामले की सुनवाई में करते हुए टिप्पणी की थी कि वो हर भावना को किनारे रखकर संविधान के अनुरूप फैसला लेंगे। जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित ने कहा था कि संविधान भगवद गीता से ऊपर है और वह उस शपथ के साथ जाएँगे जो संविधान के मद्देनजर उन्होंने ली। इस सुनवाई के दौरान मामले को समझने के लिए कोर्ट ने बकायदा कुरान की एक कॉपी मँगवाई।

इसके बाद उसके आधार पर आगे की सुनवाई को शुरू किया गया। इस सवाल पर कि क्या बुर्का जरूरी है? कुरान की आयतों के माध्यम से बताया गया कि कुरान की आयत 24.31 और 24.33 ‘हेड स्कॉफ’ की बात करता है। इनमें बताया गया है कि कैसे गले के नीचे का हिस्सा अपने शौहर के अलावा पराए मर्द को नहीं दिखना चाहिए। अब जानकारी के मुताबिक कोर्ट इस मामले में न्यायधीश को दी गई कुरान की प्रति की पुष्टि करेंगे कि वो प्रमाणिक संस्करण है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें जनता की बुद्धिमता और सद्गुण पर पूरा भरोसा है। उन्हें उम्मीद है उनकी बात को अमन में लिया जाएगा।

हिजाब नहीं बुर्के की है माँग

भले ही इस विरोध प्रदर्शन को ‘बुर्का’ के नाम पर किया जा रहा हो, लेकिन मुस्लिम छात्राओं को बुर्का में शैक्षणिक संस्थानों में घुसते हुए और प्रदर्शन करते हुए देखा जा सकता है। इससे साफ़ है कि ये सिर्फ गले और सिर को ढँकने वाले बुर्का नहीं, बल्कि पूरे शरीर में पहने जाने वाले बुर्का को लेकर है। बुर्का सिर ढँकने के लिए होता है, जबकि बुर्का सर से लेकर पाँव। कई इस्लामी मुल्कों में शरिया के हिसाब से बुर्का अनिवार्य है। कर्नाटक में चल रहे प्रदर्शन को मीडिया/एक्टिविस्ट्स भले इसे बुर्का से जोड़ें, ये बुर्का के लिए हो रहा है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया