दलबदलू नेताओं पर लगे जुर्माना, केरल हाई कोर्ट ने दी सलाह: कहा- यह लोकतंत्र के लिए अभिशाप, अर्थदंड का भी कानून बनाए विधायिका

केरल हाईकोर्ट (साभार: देसी कानून)

दल-बदल विरोधी कानूनों के बावजूद इस तरह के काम करने वाले नेताओं को लेकर केरल उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने उम्मीद जताई है कि दल-बदलू नेताओं पर वित्तीय दंड लगाने वाला एक कानून बनाया जाएगा। न्यायमूर्ति बेचू कुरियन थॉमस ने कहा कि यह लोकतंत्र के लिए अभिशाप है और वर्तमान दल-बदल विरोधी कानून इस प्रथा को रोकने में प्रभावी नहीं हैं।

न्यायालय ने कहा, “राजनीतिक दलबदल का आचरण न केवल उस पार्टी के साथ विश्वासघात करता है जिसके टिकट पर उम्मीदवार ने चुनाव लड़ा, बल्कि उन लोगों की इच्छा के साथ भी विश्वासघात करता है जिन्होंने उम्मीदवार को चुना। चुनाव के बाद पाला बदलना इसको लेकर बनाए गए कानून की प्रभावशीलता को भी खत्म कर देता है।”

न्यायालय ने आगे कहा, “ऐसे प्रयास लोकतंत्र के लिए ही खतरा होंगे। दलबदल विरोधी कानून की कठोरता को दूर करने के लिए दल-बदलुओं द्वारा अपनाए गए सरल तरीकों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए।” कोर्ट ने कहा कि अगर इस पर विचार नहीं किया गया तो इसका उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा।

कोर्ट ने कहा कि दल बदलने वाले राजनेता को कानून के तहत अयोग्य घोषित कर दिया जाता है, लेकिन उन्हें किसी अन्य महत्वपूर्ण नतीजे का सामना नहीं करना पड़ता है। दूसरी ओर, उप-चुनाव कराने के कारण राजकोष पर वित्तीय बोझ पड़ता है। इसलिए, न्यायालय ने सुझाव दिया कि विधायिका दल-बदल विरोधी कानून में वित्तीय दंड शामिल करने पर विचार करे।

न्यायालय ने कहा, “न्यायालय की सोच है कि दल-बदल के कृत्यों के लिए कड़े वित्तीय दंड शामिल करने पर विचार करने का समय आ गया है। जब तक दल-बदल करने वाले को आर्थिक दंड महसूस नहीं होता, तब तक उन बुरे कृत्यों का निवारण दल-बदल विरोधी कानून के जरिए जारी रहेगा। न्यायालय को पूरी उम्मीद है कि विधायिका इस पर ईमानदारी से विचार करेगी।”

दरअसल, यह टिप्पणी केरल राज्य चुनाव आयोग के एक आदेश को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केरल हाईकोर्ट ने की। केरल राज्य चुनाव आयोग ने एक आदेश दिया था, जिसमें थोडुपुझा नगर परिषद के सदस्य मैथ्यू जोसेफ को अयोग्य घोषित करने से इनकार कर दिया था। वे साल 2020 में परिषद के लिए चुने गए थे। इसके बाद इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

गौरतलब है कि राजनीतिक दल केरल कॉन्ग्रेस (एम) दो गुटों में विभाजित हो गया था – जोस के मणि के नेतृत्व वाला केसीएम और पीजे जोसेफ के नेतृत्व वाला केसीएम यानी केसीएमपीजेजे। केसीएम को भारत के चुनाव आयोग और उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ‘दो पत्तियाँ’ प्रतीक दिया गया था। वहीं, केसीएमपीजेजे को ‘चेंडा’ (ड्रम) प्रतीक दिया गया था।

केसीएम लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट का हिस्सा था, जबकि केसीएमपीजेजे यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट गठबंधन का हिस्सा था। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि जोसेफ ने केपीएमजेजे के सदस्य के रूप में चुनाव लड़ा और जीता, लेकिन निर्वाचित होने के बाद, उन्होंने स्वेच्छा से केसीएमपीजेजे के साथ अपनी सदस्यता छोड़ दी और केसीएम में शामिल हो गए। याचिकाकर्ताओं ने केरल स्थानीय प्राधिकरण (दलबदल निषेध) अधिनियम, 1999 की धारा 3ए के तहत उन्हें अयोग्य ठहराने की माँग की।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया