‘त्रिशूर पूरम’ उत्सव पर कई तरह के प्रतिबंध, इतिहास में पहली बार आतिशबाजी पर भी रोक: केरल की वामपंथी सरकार के खिलाफ हिंदुओं में भारी गुस्सा

केरल का त्रिशूर पुरम महोत्सव (साभार: मातृभूमि)

केरल के त्रिशूर शहर में प्रसिद्ध वडक्कुनाथन (शिव) मंदिर में आयोजित होने वाले ‘त्रिशूर पूरम’ उत्सव में शुक्रवार-शनिवार (19-20 अप्रैल 2024) की रात हजारों लोग शामिल हुए। हालाँकि, केरल की वामपंथी सरकार ने यहाँ भारी पुलिस बल भेजकर यहाँ कई तरह प्रतिबंध लगा दिए। त्योहार की रात में होने वाली आतिशबाजी पर रोक लगा दी गई। इसके कारण इस त्योहार के इतिहास में पहली बार आतिशबाजी दिन में करनी पड़ी। इसके कारण हिंदुओं में भारी गुस्सा है।

यहाँ आतिशबाजी से पहले स्वराज दौर में कई प्रतिबंध लगाए जाने के कारण तिरुवंबडी देवास्वोम के सदस्यों की पुलिस के साथ बहस हो गई। इसके बाद देवास्वोम अधिकारी ने पूरम कार्यवाही बंद कर दी। तिरुवंबडी मंदिर में केवल एक हाथी की उपस्थिति में पारंपरिक रीति-रिवाज सादे तरीके से आयोजित की गई। जो आतिशबाजी सुबह 3 बजे निर्धारित थी, वह सुबह 7 बजे हुई। यही नहीं, पुलिस पर हिंदुओं के साथ अभद्रता करने का आरोप भी लगा है।

दरअसल, मंदिर प्रशासन एवं आयोजन समिति के साथ पुलिस का किसी तरह का कोई समन्वय नहीं था। जारी किए गए पासों के बारे में कोई स्पष्टता नहीं थी। उत्सव के दौरान पुलिस के भारी हस्तक्षेप के कारण थिरिवाम्बडी मंदिर में सुबह की पूजा के दौरान हंगामा मच गया। हाथी जुलूस के दौरान भी तनाव बढ़ गया। परमेक्कावु मंदिर में भी इसी तरह की घटनाएँ सामने आईं। पुलिस ने पूरम परिसर में अचानक रस्सी के बैरिकेड लगा दिए, जिससे पूरम आयोजक नाराज हो गए।

पैरामेक्कविल खंड के जुलूस को भी पुलिस बैरिकेड्स का सामना करना पड़ा। केवल एक हाथी और मेले में आने वालों कुछ लोगों ही वहाँ गुजरने की अनुमति दी गई। पूरम आतिशबाजी के लिए लगाए गए बैरिकेड्स के कारण कल रात के जुलूस के दौरान संगीतकारों और हाथियों को रोक दिया गया था। तिरुवम्बदी देवास्वोम ने नादुविलाल जंक्शन के पूरम पंथाल में लाइटें बंद करके इसका विरोध प्रदर्शन किया, जो इतिहास में पहली बार हुआ। दरअसल, पुलिस कमिश्नर ने यहाँ कड़े प्रतिबंध लगाए गए।

केरल के एक हिंदू संगठन के प्रमुख प्रतीश विश्वनाथ ने कहा, “केरल की कम्युनिस्ट सरकार का ऐतिहासिक त्रिशूरपूरम उत्सव में हस्तक्षेप करने का विवादास्पद निर्णय विभाजनकारी राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू त्योहारों का फायदा उठाने का एक और उदाहरण प्रतीत होता है। पूज्य ‘कुदामट्टम’ समारोह के दौरान श्रीराम और रामलला के प्रदर्शन में तिरुवमपडी और परमेक्कव देवास्वोम्स की भागीदारी को भीड़ से अपार तालियाँ और उत्साहपूर्ण समर्थन मिला।”

उन्होंने आगे कहा, “हिंदुओं की सांस्कृतिक एकता का यह प्रदर्शन वामपंथी और कॉन्ग्रेस दोनों गुटों को परेशान करने वाला लग रहा था, जिसके कारण राज्य सरकार को बहुप्रतीक्षित आतिशबाजी प्रदर्शन को अचानक रोकना पड़ा। परंपरा और सांस्कृतिक उत्सव के प्रति इस घोर उपेक्षा ने हजारों समर्पित दर्शकों को हतोत्साहित और निराश कर दिया, जो संकीर्ण राजनीतिक एजेंडे के लिए हिंदुओं के पवित्र कार्यक्रमों का उपयोग करने की परेशान करने वाली प्रवृत्ति को रेखांकित करता है। अब बहुत हो गया है!”

बता दें कि त्रिशूर पूरम उत्सव का सबसे रंगीन कार्यक्रम कुदामट्टम है। यह अनुष्ठान में 15 हाथियों की दो पंक्तियाँ आमने-सामने खड़ी रहती हैं। इस दौरान एक के बाद एक नवीन रूप से डिजाइन किए गए छतरियों को प्रदर्शित किया जाता है। यह त्योहार तिरुवंबडी और परमेक्कावु मंदिरों के बीच मैत्रीपूर्ण प्रतिद्वंद्विता और सौहार्द्र का प्रतीक है।

इस सालाना उत्सव को आमतौर पर राज्य के सभी मंदिर त्योहारों की जननी के रूप में जाना जाता है। इसमें 30 सजे-धजे हाथियों को परामेक्कावु और तिरुवम्बडी मंदिर में सदियों पुराने रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार परेड के लिए एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े किया जाता है। परेड करने वाले हाथियों को अधिकारियों की ओर से फिटनेस प्रमाण पत्र दिया जाता है। 

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया