CDS रावत को ‘वॉर क्रिमिनल’ कहने वाली कश्मीरी शिक्षिका सब्बा हाजी अब जेल से बाहर: दुबई में पैदा हुई, भारतीय होने पर शर्मिंदगी

भारत के खिलाफ जहर उगलने वाली कश्मीर की सब्बा हाजी (फ़ाइल फोटो)

हाल ही में दिवंगत सीडीएस जनरल बिपिन रावत (Bipin Rawat) को इंस्टाग्राम पर ‘वॉर क्रिमिनल’ कहने वाली कश्मीर के एक स्कूल की पूर्व निदेशक सब्बा हाजी को जमानत पर रिहा कर दिया गया है। हालाँकि, यह पहली बार नहीं था, जब सब्बा ने इस तरह के शब्दों का प्रयोग किया हो। वह लंबे समय से भारत और भारतीय सैनिकों के खिलाफ जहर उगलती रही हैं। वर्ष 2010 में हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित लेख में उसने कहा था कि वह खुद को भारतीय कहने पर सम्मानित महसूस नहीं करती हैं। यहाँ तक कि वह अपने आपको भारत से जोड़कर देखना भी पसंद नहीं करती हैं।

उसने कहा था, “मैं 28 साल की हूँ। आज भी जब भी मुझे फॉर्म में अपनी राष्ट्रीयता भरना पड़ता है, तो मैं ‘इंडियन’ लिखने से पहले काफी कई बार सोचती हूँ। इस एक बात को लेकर लगभग 20 सालों से मुझे पीड़ा होती रही है, क्योंकि जब मैं 8 साल की थी, तो मुझे पता चला कि जम्मू-कश्मीर राज्य हमारे लिए किसी दलदल से कम नहीं है।” उसने वर्ष 2010 के लेख में कहा था, “मेरे परिवार के सदस्य और यहाँ के छोटे बच्चे भारत के प्रति अपनी नाराजगी जताते हैं। कश्मीर में कोई भी अपने बच्चों को ‘आजादी’ मंत्रों और सत्ता के खिलाफ जाना नहीं सिखाता है। मैंने बचपन में जाने-अनजाने में अपने परिवार और आस-पास के लोगों से जो महसूस किया था, वही अपने जेहन में बिठा लिया। ठीक वैसे ही जैसे मुझे खुद को भारत का निवासी बताने में हिचकिचाहट होती है।”

ट्विटर पर पाकिस्तान का समर्थन करने वाली हाजी ने कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले से ताल्लुक रखती हैं, लेकिन वह दुबई में पैदा हुई और कश्मीरियों के बीच पली-बढ़ी हैं। वह कश्मीर में अपनी छुट्टियाँ बिताने के लिए आती थीं और वहाँ बिताए गए समय के दौरान उन्होंने महसूस किया कि पूरे क्षेत्र के ​लोगों में भारत के खिलाफ नफरत है। भारत सरकार और उसके सुरक्षाबलों ने यहाँ के नागरिकों के दैनिक जीवन को बहुत प्रभावित किया है, जिसे हम समझ नहीं सकते।”

उसने यह भी दावा किया था कि कैसे कश्मीर में सुरक्षाबलों द्वारा पुरुषों को उठाया जा रहा था और महिलाओं की निगरानी की जा रही थी। उनका कहना है कि उस वक्त महिलाओं और पुरुषों का अचानक से गायब हो जाना, कर्फ्यू, यातनाएँ देना, मौत और दुख का अंधेरा काल था। फिर उसने ‘हिंसक उग्रवादियों’ के बारे में बात की और कहा कि वे ज्यादातर गैर-कश्मीरी थे। हालाँकि, उन्होंने यह उल्लेख नहीं किया कि उन्हें पाकिस्तान द्वारा समर्थन दिया गया था, जो लंबे समय से घाटी में आतंकवाद को पोषित कर रहा है।

इसके बाद 1990 के दशक के अंत में कश्मीरी हिंदुओं के पलायन के बारे में बोलते हुए उसने बताया कि कैसे भारत और पाकिस्तान ने इस दौरान बड़ी भूमिका निभाई थी। इनमें वह कश्मीरी भी शामिल थे, जिन्होंने धमकी और दबाव के चलते आंदोलन को सांप्रदायिक रूप देने का समर्थन किया। भारत के बारे में वह कैसा महसूस करती हैं, इस बारे में सब्बा ने कहा था कि वह भारतीय इतिहास, संस्कृति, रंग, भोजन, भाषा, त्योहारों से प्यार करती हैं, लेकिन यह वह चेहरा है, जो भारत में लोग जानते हैं। इससे इतर वह वो है ही नहीं जिसे कश्मीर के लोग देखते हैं। इस दौरान वह कश्मीर को इस तरह से संदर्भित करती हैं, जैसे कि वह भारत से अलग हो। भारत के स्वतंत्रता सेनानियों की अलगाववादियों से तुलना करते हुए उन्होंने कहा था, “हमें सबसे ज्यादा दुख इस बात से पहुँचता है कि आपके भगत सिंह एक शहीद हैं, जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक उग्र राष्ट्रवादी हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि मुझे लगता है कि मैं ना तो भारतीय हूँ और ना ही पाकिस्तानी हूँ। हाजी ने कहा था कि अधिकांश कश्मीरी वास्तव में मानते हैं कि हम भारत या पाकिस्तान का हिस्सा हैं ही नहीं। कश्मीर में ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ यही सब कुछ है। उन्होंने तब उल्लेख किया कि कैसे पिछली पीढ़ी ने हथियार उठाए थे, युवा पीढ़ी जो शिक्षित है वह कैसे अतीत की भूलों से सीखी है।

हाजी ने इस लेख में कहा था, “जहाँ तक पाकिस्तान का सवाल है, पाकिस्तान के बारे में मैंने केवल किताबों में पढ़ा है। इसके अलावा मैं इसके बारे में अपने पाकिस्तानी दोस्तों, पीटीवी और उनके टीवी शो को देखने के बाद जान पाई हूँ। मैं कभी पाकिस्तान नहीं गई। हालाँकि, मुझे यहाँ जाना अच्छा लगेगा। मैं उनकी क्रिकेट टीम से भी प्यार करती हूँ। यह पाकिस्तान के प्रति मेरा लगाव ही है।”

वह बताती हैं कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है, यही वजह है नहीं तो वह भारत की राष्ट्रीयता नहीं अपनाती। उसने लिखा, “अधिकांश कश्मीरी स्वाभाविक रूप से अध्ययन या काम करने के लिए भारत आते हैं। तो ऐसा कहना कि अगर हम भारत के खिलाफ हैं तो हम यहाँ क्यों आते हैं इसका कोई औचित्य नहीं है। यह मुझसे वैसा ही पूछने जैसा है कि मेरे पास भारतीय पासपोर्ट क्यों है? अगर कोई विकल्प होता तो मैं शायद ही इसे लेती।”

अपना पक्ष रखते हुए उसने तब दावा किया था कि किसी कश्मीरी का भारत विरोधी रुख अपनाने का मतलब यह नहीं है कि वह पाकिस्तान समर्थक ही हो और कृपया, पाकिस्तानी कहकर कश्मीरी आंदोलन को बढ़ावा ना दें। हम इसे स्वीकार नहीं करते हैं। उसने जनमत संग्रह का आह्वान करते हुए कहा, “हमें अपना जनमत संग्रह दें, जिसका वादा संयुक्त राष्ट्र के शासन के तहत किया गया था। इसका ‘लोकतंत्र’ के विचार से लेना-देना है, एक ऐसा विचार जिस पर भारतीयों को बहुत गर्व है। खुद से लिया गया निर्णय वही है, जो हम चाहते हैं।”

अपने निजी ब्लॉग पर उन्होंने 2015 में एक और पोस्ट लिखी थी, जिसमें वह अनुच्छेद-370 को लागू करने के ​खिलाफ थीं। कश्मीरी एकजुट क्यों नहीं होंगे के सवाल का जवाब देते हुए कि उन्होंने कहा, “आपको यह समझना चाहिए कि कश्मीरियों के जबरन एकीकरण का यह विचार वास्तव में वहाँ की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। इसे हर मौके पर दोहराया जाता है और ये कश्मीरियों को अपना बनाने के लिए कुछ नहीं करते हैं।”

उसने कहा कि भले ही वह 90 के दशक में कश्मीर में पली-बढ़ी नहीं थी, लेकिन बड़े होने के दौरान घाटी में दो महीने की छुट्टी में उन्होंने जो कुछ भी देखा, उससे आहत हो जाती हैं। हर बार कोई ना कोई कश्मीर में हिंसा कहता है, तो हम यहाँ किस हिंसा की बात कर रहे हैं। हमें उसे समझने की जरूरत है। मुझे संदेह है कि आपको बच्चों को ‘आतंकवादियों’ के रूप में याद करने के बहुत सारे मामले मिले होंगे। उन्होंने कहा कि उन्हें आतंकवादी कहा जाता है। उन्होंने कहा, “मैं कहूँगी कि हर कश्मीरी परिवार में हम सबके बीच एक आतंकवादी है। उनके बढ़ते कदमों से कश्मीर वर्षों को बर्बाद हो रहा है। ये लोगों के दैनिक जीवन में हस्तक्षेप कर रहा है, जिससे उनका जीवन भी प्रभावित हो रहा है।”

यह स्वीकार करने के बाद कि कश्मीर में अधिकांश परिवारों में कम से कम एक व्यक्ति ‘आतंकवादी’ के रूप में बड़ा हो रहा है। उसने कहा, “कश्मीरी बच्चों में सेना, बीएसएफ और सीआरपीएफ के प्रति खासा नाराजगी देखी गई है। लेकिन आपको कश्मीर में 90 के दशक में बड़े हो रहे बच्चों के बीच आक्रोश और गुस्से की अनगिनत कहानियाँ मिलेंगी, जहाँ वे या तो व्यक्तिगत रूप से या फिर सेना, बीएसएफ सीआरपीएफ की पूछताछ और कार्रवाई से पूर्वाग्रह में हैं। इसके अलावा वे सुरक्षा बलों को अपने घर में घुसकर अपने परिवार के सदस्यों (पुरुषों, महिलाओं, बूढ़े, जवान) को उनके सामने पीटना, फर्नीचर तोड़ना, घर में तोड़फोड़ करना, बच्चों के प्रमाण पत्र, किताबें आदि फाड़ देने से भीतर से प्रभावित हुए हैं। उसने अपने ब्लॉग में कहा था, ” कश्मीर में आपके अपने पड़ोस में कुछ मीटर की दूरी पर तलाशी ली जा रही होती थी। लोगों को कार्रवाई के लिए बुलाया जा रहा होता था, कर्फ्यू का पालन करना, अपमानित होने के अलावा उन्हें कई चीजों का सामना करना पड़ता था।”

सब्बा ने कहा था कि कैसे कश्मीर में बच्चों के लिए भारत केवल वर्दी में अत्याचार करता है। उन्होंने कहा, “भारत में नेताओं और छाती पीटने वाले देशभक्तों द्वारा स्थानीय मीडिया, प्रेस, लेखकों और बुद्धिजीवियों के माध्यम से कश्मीरियों की कोसा जाता है। उनको भारत विरोधी बताकर अपमानित किया जाता है।”

इस साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक शख्स ने उनसे फोन करके पूछा था कि क्या उनके स्कूल में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया है, तो सब्बा आगबबूला हो जाती हैं। उन्होंने इस पर कहा कि यह क्या ‘बकवास’ है। इस सवाल से नाराज सब्बा हाजी ने उस शख्स को जवाब दिया कि आज रविवार था इसलिए झंडा नहीं फहराया गया। इसके बाद उसने बिना किसी सबूत के कहा कि इस कॉल के पीछे भारत सरकार का हाथ था।

सब्बा हाजी के ट्वीट्स

उनके ट्वीट से तो ऐसा ही लगता है कि कश्मीर में एक स्कूल की निदेशक स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय ध्वज फहराना ही नहीं चाहती थी। यह वास्तव में चिंता का विषय है, क्योंकि वह ऐसी स्थिति में हैं, जहाँ वह बच्चों को देश के प्रति अच्छे संस्कार देने में सक्षम हैं। बच्चे देश का भविष्य हैं, जब तक उन्हें सही राह पर नहीं लाया लाएगा, वे गुमराह होते रहेंगे और इसका परिणाम कश्मीर को भुगतना पड़ता रहेगा।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया