‘जन्म देने वाली माँ से ज्यादा हक उसे पालने वाली का’ – 10 साल की बच्ची के लिए लड़ाई, मद्रास ​हाई कोर्ट का अहम फैसला

मद्रास हाई कोर्ट (फाइल फोटो)

मद्रास हाई कोर्ट ने 10 वर्ष की बच्ची के बेहतर भविष्य को देखते हुए अहम फैसला सुनाया है। तमिलनाडु में बच्ची को जन्म देने वाली और उसे पालने वाली माँ के आमने-सामने आने के बाद अदालत ने यह फैसला दिया है। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया, ”जन्म के कुछ दिन बाद बच्ची को गोद लेने वाली, 10 वर्षों तक उसका लालन-पालन करने वाली माँ को उससे अलग नहीं किया जा सकता, भले ही महिला ने उसे जन्म न दिया हो। लेकिन बच्ची को जन्म देने वाली माँ, पिता और अन्य रिश्तेदार सप्ताह में एक बार उससे मिल सकेंगे।”

हाई कोर्ट में जस्टिस पीएन प्रकाश और जस्टिस आर हेमलता की पीठ ने मामले की सुनवाई कर आदेश पारित कर दिया है। कोर्ट ने सलेम की बाल कल्याण समिति को बच्ची को उसकी पालक माँ को अविलंब सौंपने का आदेश दिया है। बच्ची को लेकर दोनों महिलाओं में विवाद गहराने के बाद प्रशासन ने उसे समिति की देखभाल में रखवा दिया था। कोर्ट ने अपने आदेश में एक बात और साफ कर दी है कि बच्ची के बालिग होने तक उसे जन्म देने वाली माँ सारण्या और पिता शिवकुमार उसे साथ रखने के लिए किसी तरह का अधिकार नहीं जता सकेंगे। 

आपको बता दें कि बच्ची जन्म देने वाली माँ सारण्या की दूसरी बेटी है, जिसे उसने जन्म के 100 दिन बाद ही साल 2012 में अपने पति शिवकुमार की बहन सत्या को गोद दे दिया था। इसके बाद से गोद लेने वाली माँ सत्या और उसका पति रमेश बच्ची की देखभाल कर रहे थे, लेकिन रमेश की जून, 2019 में कैंसर से मृत्यु होने के बाद दोनों परिवारों के बीच विवाद शुरू हो गया, जिससे उनके संबंधों में खटास आ गई।

विवाद के बाद सारण्या ननद सत्या से अपनी बेटी को वापस देने की माँग करने लगी। मामला पुलिस थाने पहुँचा, जहाँ बच्ची को सलेम की बाल कल्याण समिति को सौंप दिया गया। इसके बाद दोनों परिवारों ने बच्ची को वापस पाने के लिए कानूनी लड़ाई शुरू कर दी। दोनों पक्षों ने हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर बच्ची की सुपुर्दगी की माँग की, जिसके बाद हाई कोर्ट ने बच्ची को गोद लेने वाली माँ के पक्ष में फैसला सुनाया।

हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956

भारत में हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956 के अनुसार, गोद लेने संबंधी नियम और प्रक्रिया में बताया गया है कि बच्चे के नाम कोई संपत्ति न हो और उसे गोद दिया जाए, तो गोद देने वाले के यहाँ से उसके सभी कानूनी हक खत्म हो जाते हैं और जिसने उसे गोद लिया है, वहाँ उसे तमाम कानूनी हक मिल जाते हैं। इसके अलावा पर्याप्त शर्तों का पालन करके ही बच्चे को गोद लेना बेहतर माना गया है, वरना कभी भी गोद लेना अवैध हो सकता है। यानी गोद लेने की प्रक्रिया रजिस्टर्ड कानूनी प्रक्रिया है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया