नवी मुंबई में सर्वे कर रहे डॉक्टर को मिली 12 साल की प्रेग्नेंट बच्ची, 29 साल का ‘पति’ बार-बार करता था रेप: गर्भपात कराने की भी की कोशिश

प्रतीकात्मक तस्वीर

बाल विवाह एक दंडनीय अपराध है। बावजूद इसके महाराष्ट्र के नवी मुंबई से एक 12 साल की लड़की से 29 साल के युवक के शादी करने और बार-बार जिस्मानी संबंध बनाकर उसे गर्भवती करने का मामला सामने आया है।

मामले का खुलासा होने के बाद आरोपित के खिलाफ IPC, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण एक्ट (POCSO) और बाल विवाह निषेध एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है। 5 जनवरी 2024 को उसे गिरफ्तार किया गया। आरोपित और पीड़िता दोनों मूल रूप से महाराष्ट्र के सितारा जिले के रहने वाले हैं।

मामले का खुलासा 4 जनवरी को हुआ था। नवी मुंबई के पनवेल इलाके में एक डॉक्टर सर्वे कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें 12 साल की यह बच्ची गर्भवती मिली। डॉक्टर ने जाँच की तो पता चला कि बच्ची चार महीने की गर्भवती है। इसके बाद डॉक्टर ने मामले की सूचना पुलिस को दी।

रिपोर्ट के अनुसार करीब 6 महीने पहले आरोपित ने इस बच्ची से शादी की थी। नाबालिग होने के बावजूद वह उसके साथ बार बार संबंध बना रहा था। इससे बच्ची गर्भवती हो गई। आरोपित बच्ची का गर्भपात कराने की भी कोशिश कर रहा था। खंडेश्वर पुलिस स्टेशन के अधिकारी ने आरोपित के खिलाफ मामला दर्ज किए जाने की पुष्टि की है।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार दिसंबर 2021 में बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 लेकर आई थी। इसके जरिए ‘बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (पीसीएमए)’ में संशोधन किया गया था। ताकि पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए विवाह की उम्र 21 वर्ष के बराबर की जा सके जो पहले पुरुषों के लिए 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 वर्ष थी।

वैसे तो बाल विवाह को लेकर बनाया गया कानून हर समुदाय पर लागू होता है, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ को लेकर इसकी स्थिति अब तक स्पष्ट नहीं रही है। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2012 में एक 15 साल की लड़की की अपनी मर्जी से शादी को वैलिड मानते हुए कहा था कि इस्लामिक कानून के मुताबिक लड़की मासिक धर्म शुरू होने के बाद अपनी इच्छा के मुताबिक शादी कर सकती है।

वहीं गुजरात हाई कोर्ट ने 2015 में कहा था कि बाल विवाह निषेध कानून 2006 के दायरे में समुदाय विशेष वाले भी आते हैं। अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एमबी लोकुर और दीपक गुप्ता ने समुदाय विशेष के अलग विवाह कानून को पीसीएमए के साथ मजाक बताया था। सितंबर 2018 में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा था कि समुदाय विशेष पर यह कानून लागू नहीं होता। अदालत का कहना था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ स्पेशल एक्ट है, जबकि पीसीएमए एक सामान्य एक्ट है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया