अगर आप अदालती कार्यवाहियों का हिस्सा रहे हैं या फिर आपने यह व्यवस्था देखी है तो आपको पता होगा कि वकील खड़े होकर बहस करते हैं। कम से कम फ़िल्मों में तो आपने देखा ही होगा। सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर चली 40 दिन की सुनवाई के दौरान रामलला विराजमान की तरफ से पैरवी कर रहे थे के पराशरण। बहस के दौरान कई ऐसे मौके आए जब उन्होंने अपनी दलीलों से मुस्लिम पक्षकारों को पस्त कर दिया।
सुनवाई के दौरान एक दिन मुख्य न्यायाधीश ने पराशरण से पूछा, “क्या आप बैठ कर दलीलें पेश करना चाहेंगे?” लेकिन, उन्होंने कहा, “मिलॉर्ड आप बहुत दयावान हैं लेकिन वकीलों की परंपरा रही है कि वे सुनवाई के दौरान खड़े होकर दलीलें पेश करते रहे हैं और मैं इस परम्परा से लगाव रखता हूँ।” सीजेआई द्वारा इस सवाल को पूछने की वजह थी पराशरण की उम्र। अदालत में घंटों खड़े होकर दलील देने वाले पराशरण 92 साल के हैं।
तमिलनाडु के अधिवक्ता जनरल रहे पराशरण के अनुभवों के बारे में अंदाजा लगाना हो तो जान लीजिए कि वह इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल में ही भारत के अटॉर्नी जनरल रह चुके हैं। हालाँकि, 2016 के बाद पराशरण अदालती कार्यवाहियों में कम ही दिखते हैं और और चुनिन्दा मामलों में ही अदालत जाते हैं। चेन्नई से दिल्ली तक के इस सफ़र में उन्होंने न जाने कितने अच्छे-बुरे दौर देखे।
उन्होंने सबरीमाला मंदिर मामले में भी पैरवी की थी। उन्हें हिंदुत्व का विद्वान माना जाता है। 2012 से 2018 तक राज्यसभा सांसद रह चुके पराशरण 70 के दशक से ही अधिकतर सरकारों के फेवरिट वकील रहे हैं। धार्मिक पुस्तकों का उन्हें इतना ज्ञान है कि वह अदालत में बहस के दौरान भी उनका जिक्र करते रहते हैं। मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजय किशन कॉल के शब्दों में “पराशरण भारतीय वकालत के पितामह हैं जिन्होंने बिना धर्म से समझौता किए भारतीयों के लिए इतना बड़ा योगदान दिया।”
https://twitter.com/ANI/status/1159343015296733184?ref_src=twsrc%5Etfwपराशरण ने सबरीमाला मंदिर विवाद के दौरान महिलाओं की एंट्री की अनुमति न दिए जाने के लिए पैरवी की थी। उन्होंने श्रद्धालुओं की राय अदालत में अपने मजबूत दलीलों के साथ रखी। राम सेतु मामले में तो दोनों ही पक्षों ने उन्हें अपनी साइड करने के लिए सारे तरकीब आजमाए लेकिन धर्म को लेकर संजीदा रहे पराशरण ने रामसेतु सरकार के ख़िलाफ़ पैरवी करना उचित समझा। ऐसा उन्होंने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट से रामसेतु को बचाने के लिए किया। उन्होंने अदालत में कहा, “मैं अपने श्रीराम के लिए इतना तो कर ही सकता हूँ।“
https://twitter.com/AdiShankaraa/status/1160804725899481088?ref_src=twsrc%5Etfwके पराशरण के पिता वेदों के विद्वान थे, अतः कहा जा सकता है कि ये संस्कार उन्हें विरासत में मिले हैं, जिसे उन्होंने एक नया आयाम दिया। बाबरी मस्जिद पक्ष के वकील राजीव धवन को अदालत की रोजाना सुनवाई से दिक्कतें थीं और उन्होंने प्रतिदिन सुनवाई न करने की अपील की थी, जिसे अदालत ने ठुकरा दिया था। लेकिन, क्या आपको पता है इस मामले को लेकर पराशरण का क्या कहना है? वे कहते हैं, “यह मेरी अंतिम इच्छा है कि मरने से पहले मैं इस मामले को अंजाम तक पहुँचा दूँ।“